शरीयत या भारतीय कानून: मुसलमानों के इस बड़े मसले पर भी विचार करेगा सुप्रीम कोर्ट
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शरीयत या भारतीय कानून: मुसलमानों के इस बड़े मसले पर भी विचार करेगा सुप्रीम कोर्ट

Supreme Court Muslims: जब से वक्फ संशोधन कानून बना है देश के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन और हिंसा की घटनाएं हुई हैं. मामला सुप्रीम कोर्ट में है. न्यायालय ने वक्फ संशोधन अधिनियम की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने के लिए केंद्र को सात दिन का समय दिया है. इस बीच एक और मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया है.

शरीयत या भारतीय कानून: मुसलमानों के इस बड़े मसले पर भी विचार करेगा सुप्रीम कोर्ट

वक्फ कानून पर चल रही बहस के बीच सुप्रीम कोर्ट अब इस विवादास्पद मुद्दे पर भी विचार करेगा कि क्या मुस्लिम समुदाय को पैतृक संपत्तियों और स्व-अर्जित संपत्तियों के मामले में शरीयत के बजाय धर्मनिरपेक्ष भारतीय उत्तराधिकार कानून के दायरे में लाया जा सकता है. साथ ही इससे उनकी आस्था पर भी असर न पड़े. SC ने इस पर अपनी सहमति जता दी है.

चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने केरल के त्रिशूर जिले के निवासी नौशाद के. के. की याचिका पर संज्ञान लिया. नौशाद ने कहा है कि वह धर्म के रूप में इस्लाम का त्याग किए बिना शरीयत के बजाय उत्तराधिकार कानून के तहत आना चाहते हैं. पीठ ने उनकी याचिका पर केंद्र और केरल सरकार को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा है.

संपत्ति का सवाल है

याचिका में कहा गया कि शरीयत के तहत एक मुस्लिम व्यक्ति अपनी संपत्ति का केवल एक तिहाई हिस्सा ही वसीयत के माध्यम से दे सकता है और सुन्नी मुसलमानों में यह अधिकार गैर-उत्तराधिकारियों तक ही सीमित है. इसमें कहा गया, ‘शेष दो-तिहाई हिस्सा निर्धारित इस्लामी उत्तराधिकार सिद्धांतों के अनुसार कानूनी उत्तराधिकारियों के बीच वितरित किया जाना चाहिए. इससे कोई भी विचलन, तब तक अमान्य माना जाएगा जब तक कि कानूनी उत्तराधिकारी सहमति न दें. वसीयत की स्वतंत्रता पर यह प्रतिबंध गंभीर संवैधानिक चिंताओं को जन्म देता है.’

याचिका में तर्क दिया गया कि धार्मिक उत्तराधिकार नियमों का अनिवार्य अनुप्रयोग संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) जैसे प्रमुख प्रावधानों का उल्लंघन करता है. इसमें कहा गया कि मुसलमानों को वसीयत बनाने की वही स्वतंत्रता नहीं दी जाती जो अन्य समुदायों के सदस्यों को दी जाती है, यहां तक ​​कि धर्मनिरपेक्ष विशेष विवाह अधिनियम के तहत विवाह करने वाले मुसलमानों को भी यह स्वतंत्रता नहीं दी जाती. इससे मनमाना और भेदभावपूर्ण वर्गीकरण पैदा होता है.

याचिकाकर्ता ने विधायिका को यह निर्देश दिए जाने का अनुरोध किया कि वह धार्मिक पहचान के बावजूद सभी व्यक्तियों के लिए वसीयत संबंधी स्वायत्तता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक संशोधनों या दिशानिर्देशों को लागू करने पर विचार करे. नोटिस जारी करते हुए पीठ ने इस याचिका को इसी मुद्दे पर लंबित समान मामलों के साथ संलग्न करने का आदेश दिया.

इससे पहले, पिछले साल अप्रैल में पीठ ने अलप्पुझा निवासी एवं ‘एक्स-मुस्लिम्स ऑफ केरल’ की महासचिव सफिया पी एम की याचिका पर विचार करने पर सहमति व्यक्त की थी. याचिका में कहा गया था कि वह एक नास्तिक मुस्लिम महिला हैं और वह अपनी पैतृक संपत्तियों का निपटान शरीयत के बजाय उत्तराधिकार कानून के तहत करना चाहती हैं. इसी तरह ‘कुरान सुन्नत सोसाइटी’ ने 2016 में एक याचिका दायर की थी जो शीर्ष अदालत में लंबित है. अब तीनों याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई होगी.

वक्फ के मुद्दे पर क्या हुआ

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वस्त किया कि वह 5 मई तक 'वक्फ बाय यूजर' समेत वक्फ की संपत्तियों को न तो गैर-अधिसूचित करेगी और न ही केंद्रीय वक्फ परिषद व बोर्ड में कोई नियुक्ति करेगी.

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