Maharashtra Political Crisis: BJP के 'मास्टरस्ट्रोक' के आगे फ्लॉप हो गई शिवसेना, एक तीर से ऐसे साधे दो निशाने
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Maharashtra Political Crisis: BJP के 'मास्टरस्ट्रोक' के आगे फ्लॉप हो गई शिवसेना, एक तीर से ऐसे साधे दो निशाने

Maharashtra Political Crisis: शिवसेना के अस्तित्व को लेकर भी अब सवाल खड़े हो गये हैं क्योंकि एकनाथ शिंदे ने हिन्दुत्व और बालासाहेब के सिद्धांतों का हवाला देकर ही पार्टी से किनारा किया था. अब उनके मुख्यमंत्री बनने से शिवसेना का बागी गुट मजबूत होगा जिसका सीधा असर शिवसेना के जनाधार पर पड़ने वाला है. 

Maharashtra Political Crisis: BJP के 'मास्टरस्ट्रोक' के आगे फ्लॉप हो गई शिवसेना, एक तीर से ऐसे साधे दो निशाने

Maharashtra Political Crisis: महाराष्ट्र की सियासत में अब तक का सबसे बड़ा उलटफेर देखने को मिला है. बीजेपी ने शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे को सूबे का नया मुख्यमंत्री बनाने का फैसला लिया है और वह शाम को CM पद की शपथ लेने जा रहे हैं. बीजेपी के इस दांव से न सिर्फ सूबे में फिर से उसकी सरकार बनने जा रही है बल्कि महाराष्ट्र में पार्टी ने हिन्दुत्व को एजेंडे को मजबूती देने का काम किया है. ऐसे में बीजेपी की रणनीति के आगे शिवसेना पूरी तरह फ्लॉप हो चुकी है. 

शिंदे होंगे महाराष्ट्र के नए CM

शिंदे ने सीएम बनाए जाने के फैसले के बाद प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह का आभार जताया साथ ही कहा कि बड़ी पार्टी ने बड़ा दिल दिखाया है. क्योंकि संख्याबल के हिसाब से देवेंद्र फडणवीस का मुख्यमंत्री बनना तय माना जा रहा था लेकिन आखिर में बीजेपी के मास्टर स्ट्रोक के आगे शिवसेना धरासाई हो गई है. पहले ही अपने ही बगावत झेल रही शिवसेना को शिंदे के मुख्यमंत्री बनने से और बड़ा झटका मिल गया है.

महाराष्ट्र में शिवसेना में बगावत से न केवल 31 महीने पुरानी महा विकास आघाड़ी (एमवीए) सरकार गिर गई बल्कि इससे शिवसेना की जमीन भी खिसकती आ नजर आ रही है. राजनीतिक दल के अस्तित्व को लेकर भी अब सवाल खड़े हो गये हैं क्योंकि शिंदे ने हिन्दुत्व और बालासाहेब के सिद्धांतों का हवाला देकर ही पार्टी से किनारा किया था. अब उनके मुख्यमंत्री बनने से शिवसेना का बागी गुट मजबूत होगा जिसका सीधा असर शिवसेना के जनाधार पर पड़ने वाला है. 

हिन्दुत्व विरोधी होने का आरोप

शिवसेना पर आरोप लग रहे हैं कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) और कांग्रेस से गठबंधन करके उसने अपनी कट्टर हिंदुत्व की विचारधारा को छोड़ दिया था. फडणवीस और शिंदे ने भी अपनी साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में यही बात दोहराई है. फडणवीस ने कहा कि शिवसेना ने हिन्दुत्व विरोधी पार्टियों के साथ जाकर सरकार बनाई और सत्ता के लिए विचारधारा के साथ समझौता किया. उन्होंने कहा कि चुनाव में बीजेपी को बहुमत मिला था लेकिन कुर्सी के लिए शिवसेना ने धोखेबाजी की है.  

बगावत के बाद उद्धव ठाकरे ने बुधवार रात को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और सप्ताह से चल रहा नाटकीय घटनाक्रम अपने क्लाइमेक्स की ओर पहुंच चुका है. लेकिन इस घमासान के अंत को बीजेपी ने अपने फैसले से और ज्यादा रोचक बना दिया है क्योंकि बगावत के बाद से ही नई सरकार में फडणवीस का मुख्यमंत्री बनना तय माना जा रहा था लेकिन शिंदे को CM पद देकर पार्टी ने एक तीर से दो निशाने लगा दिए हैं. एक ओर पार्टी सरकार में वापसी कर रही है तो दूसरी ओरे एक शिवसैनिक को मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी ने हिन्दुत्व की विचारधारा को धार देने का काम किया है.

एमवीए के साथ जाना पड़ा महंगा

इसी हिन्दुत्व के नाम पर राज्य सरकार के वरिष्ठ मंत्री एकनाथ शिंदे ने पार्टी के खिलाफ विद्रोह किया था और बड़ी संख्या में विधायक उनके खेमे में चले गये थे.बागी विधायकों का कहना है कि उन्हें ठाकरे की मुखालफत के लिए मजबूर होना पड़ा क्योंकि वे महा विकास आघाड़ी के सहयोगी दलों से संबंध तोड़ने की उनकी मांग पर ध्यान नहीं दे रहे थे, जबकि उन्हें बार-बार बताया जा रहा था कि ये दल शिवसेना को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं.

बागी खेमे के विधायकों का यह भी कहना रहा कि एनसीपी और कांग्रेस से गठजोड़ के बाद बाल ठाकरे की ओर से स्थापित शिवसेना हिंदुत्व के रास्ते से हट रही है. शिंदे ने बगावत का झंडा बुलंद करने के बाद यह तक कह दिया कि उनकी पार्टी असली शिवसेना है और वह हिंदुत्व की रक्षा करना चाहती है. ऐसे में शिंदे को मुख्यमंत्री बनाने से बीजेपी हिन्दू वोट बैंक की सबसे बड़ी दावेदार बन चुकी है जिसपर सूबे में अबतक शिवसेना का कब्जा था. 

शिवसेना के सामने कई चुनौती

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार अब ठाकरे के सामने कई चुनौतियां हैं. इनमें पार्टी पर कंट्रोल कायम रखने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ना और बाल ठाकरे की राजनीतिक विरासत को बचाना, पार्टी में नई जान फूंकना और कार्यकर्ताओं में विश्वास पैदा करना शामिल हैं.जानकारों के अनुसार शिवसेना की विचारधारा कमजोर पड़ गई है और ठाकरे को उनकी कट्टर हिंदुत्व की पहचान फिर से पाने में मुश्किलें आएंगी. अगर वह अभी इस ओर ध्यान नहीं देते तो एकनाथ शिंदे के ये आरोप सच साबित हो जाएंगे कि ठाकरे ने हिंदुत्व के रास्ते को छोड़ दिया है.

सरकार जाती देख उद्धव ने बुधवार को औरंगाबाद का नाम संभाजीनगर करके इस दिशा में थोड़ा प्रयास जरूर किया है लेकिन राजनीतिक पंडितों की मानें तो ठाकरे के लिए नरम हिंदुत्व की बात करना कारगर नहीं होगा.अगर शिंदे निर्वाचन आयोग में जाते हैं तो शिवसेना के चुनाव चिह्न ‘तीर कमान’ के इस्तेमाल पर रोक लगाई जा सकती है. उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली शिवसेना आगामी स्थानीय निकाय चुनाव नये चुनाव चिह्न पर कैसे लड़ेगी जिसमें बीएमसी का अहम चुनाव भी है.

उद्धव ने लिया गलत फैसला?

हालांकि ठाकरे के करीबी लोगों को लगता है कि बागी खेमा पार्टी और उसके चुनाव चिह्न पर दावा नहीं कर सकता क्योंकि मूल राजनीतिक दल अभी अस्तित्व में है.उन्हें यह भी लगता है कि ठाकरे को मुंबई से अपना मोह छोड़ देना चाहिए और अगर वह पार्टी के आधार को मजबूत करना चाहते हैं तो उन्हें ग्रामीण क्षेत्रों में पैठ बढ़ानी चाहिए. जानकार यह भी कहते हैं कि ठाकरे का उनके निजी सचिव मिलिंद नरवेकर और शिवसेना के नेताओं अनिल परब व अनिल देसाई समेत कुछ लोगों पर अत्यधिक भरोसा करना भी कुछ वरिष्ठ पार्टी नेताओं को रास नहीं आया.

कुछ विश्लेषकों ने कहा कि ठाकरे का विधान परिषद से भी इस्तीफा उचित कदम नहीं है. भाजपा से संघर्ष के लिए विधान परिषद के मंच का इस्तेमाल करना चाहिए था और शिंदे खेमे की सच्चाई सामने लानी चाहिए थी.लेकिन उन्होंने पीछे हटते हुए फ्लोर टेस्ट से पहले ही अपना इस्तीफा सौंप दिया जिसके बाद नई सरकार का रास्ता साफ हो चुका है. 

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