Karnataka Chief Minister Race Siddaramaiah: आपने 1990 के दशक में आई फिल्म का वो गीत सुना होगा जिसके बोल थे 'वो सिकंदर ही दोस्तों कहलाता हैं, हारी बाज़ी को जीतना जिसे आता हैं'. ये पंक्तिया कर्नाटक के सीएम पद की रेस (Karnataka cm race) में डीके शिवकुमार (DK Shivkumar) पर भारी पड़े सिद्दारमैया (Siddaramaiah) पर एकदम सटीक बैठती हैं जो अपने सियासी हुनर से एक बार फिर मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं. सिद्धारमैया को कर्नाटक की राजनीति का जादूगर यूं हीं नहीं कहा जाता. आज उनकी सियासत से जुड़ा ऐसा किस्सा आपको बताने जा रहे हैं जब वो वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे पर भारी पड़ गए थे.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

सिद्धारमैया कर्नाटक की सियासत के 'जादूगर'


जैसे अशोक गहलोत को राजस्थान की सियासत का जादूगर माना जाता है. कुछ वैसी ही काबिलियत और हैसियत सिद्धारमैया, कर्नाटक में रखते हैं. लोकदल की टिकट से चुनाव जीतकर अपने पॉलिटिकल कैरियर की शुरुआत करने वाले सिद्धारमैया कर्नाटक की राजनीति के माहिर खिलाड़ी रहे हैं. सही शॉट लगाने के मामले में उनकी टाइमिंग इतनी जबरदस्त होती है कि उनके विरोधी बस ताकते रह जाते हैं और वो पलक झपकते ही गेंद को बाउंड्री के पार पहुंचा देते हैं. उम्र के इस पड़ाव में भी वो कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष, आलाकमान के सबसे भरोसेमंद और पार्टी के सबसे रईस नेता डीके शिवकुमार पर भारी पड़ गए.


सिद्धारमैया का सियासी सफर


सिद्धारमैया अपना लक्ष्य (मुख्यमंत्री पद) हासिल करने से पहले रुके नहीं. पहले लोकदल फिर जनता दल, आगे जनता दल सेक्युलर (JDS) और फिर कांग्रेस हर दल में रहते हुए सिद्धारमैया अच्छे अच्छों पर भारी पड़े, जो भी उनकी राह में आया उसे उन्होंने किनारे लगा दिया. सिद्धारमैया का कद ऐसे कैसे बढ़ गया कि वो एक-एक करके अपने विरोधियों को आउट करते गए. वो आज की तारीख में भी 10 साल पुरानी स्थिति में खड़े होकर विजेता बनकर उभरे हैं. वेटरन सिद्धारमैया अकेल अपने दम पर पूरी कांग्रेस पार्टी पर तब भारी पड़े, जब कर्नाटक कांग्रेस में उनके पास कोई पद भी नहीं था.


सिद्धारमैया ने खरगे के साथ कर दिया था 'खेल'


कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से पहले मल्लिकार्जुन खरगे 2013 के विधानसभा में कर्नाटक में कांग्रेस के मुख्यमंत्री बनने वाले थे, लेकिन तब बस सात साल पहले एचडी देवगौड़ा की पार्टी से निकाले गए सिद्धारमैया ने उनके आगे से सीएम पद की कुर्सी 'गायब' करते हुए खुद मुख्यमंत्री बन गए थे. उस वक्त भी कांग्रेस में CM पद के दो बड़े दावेदार थे. सबसे बड़ी दावेदारी मल्लिकार्जुन खरगे की थी, जो कि तत्कालीन मनमोहन सिंह की सरकार में मंत्री थे. वहीं दूसरे दावेदार सिद्धारमैया थे. हालांकि उस रेस में एम वीरप्पा मोइली और तत्कालीन कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष जी परमेश्वर का नाम भी चला था, पर आखिरी बाजी सिद्धारमैया के नाम रही थी.


कांग्रेस हाईकमान ने एके एंटनी, मधुसूदन मिस्त्री, लुईजिन्हो फलेरियो और जितेंद्र सिंह को पर्यवेक्षक बनाकर कर्नाटक भेजा था. जिन्होंने जीते हुए सभी 121 विधायकों से बात की. इसके बाद सीक्रेट वोटिंग हुई और फिर कांग्रेस आलाकमान ने सीक्रेट वोटिंग के जरिए जो नाम तय किया वो सिद्धारमैया का था. उन्हें खरगे और बाकी दूसरे नेताओं के मुकाबले ज्यादा विधायकों का समर्थन मिला था और सिद्धारमैया सीएम पद की रेस जीत गए थे.