DNA Analysis: प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान सायरन का उपयोग हवाई हमलों की चेतावनी देने के लिए होने लगा. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सायरन का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया गया था. युद्ध का जो आधुनिक सायरन आज आप सुनते हैं इसे एयर रेड सायरन कहा जाता है. इसका पहली बार इस्तेमाल सितंबर 1939 को लंदन में द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान ही किया गया था.
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DNA Analysis: प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान सायरन का उपयोग हवाई हमलों की चेतावनी देने के लिए होने लगा. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सायरन का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया गया था. युद्ध का जो आधुनिक सायरन आज आप सुनते हैं इसे एयर रेड सायरन कहा जाता है. इसका पहली बार इस्तेमाल सितंबर 1939 को लंदन में द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान ही किया गया था. अभी आप द्वितीय विश्वयुद्ध को दौरान इस्तेमाल होने वाले सायरन को देख रहे हैं. ये सायरन शहर में अलग-अलग जगहों पर लगाए गए थे. उस समय सायरन से दो तरह के अलर्ट निकलते थे. पहला अलर्ट, जिसमें आवाज बढ़ता और घटता रहता था, जो चेतावनी का संकेत था. दूसरा अलर्ट, एक स्थिर आवाज में होता था जिसके जरिए हालात के सामान्य होने की जानकारी दी जाती थी.
1990 के दशक तक शीत युद्ध चलता रहा और पूरी दुनिया में सायरन सिस्टम का इस्तेमाल होता रहता था. रूस के विघटन के बाद शीत युद्ध खत्म हो गया और फिर धीर-धीरे सायरन सिस्टम का इस्तेमाल भी बेहद कम हो गया. 2022 में जब रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ तो इस दोनों देशों में सायरन सिस्टम का खूब इस्तेमाल हुआ और अभी भी हो रहा है. अभी आप यूक्रेन में इस्तेमाल हो रहे सायरन सिस्टम को देख रहे हैं. यूक्रेन में सायरन सिस्टम कैसे काम करता है और सायरन सिस्टम कितना बदल चुका है इस पर थोड़ी देर में हम आपको यूक्रेन से एक ग्राउंड रिपोर्ट भी दिखाएंगे.
रूस- यूक्रेन युद्ध के अलावा अभी के समय में इजरायल भी एयर रेड सायरन का अक्सर इस्तेमाल हो रहा है. आधुनिक सायरन पूरी तरह से डिजिटल और स्वचालित हो चुका है जो सैटेलाइट, रडार और इंटरनेट के साथ जुड़ा होता है. जैसे ही हमले का अंदेशा होता है आधुनिक सायरन से अलर्ट जारी होने लगता है. आज पूरे इजरायल में 3000 से ज्यादा एयर रेड सायरन लगे हुए हैं. मैं भी इजरायल जा चुका है इस दौरान मैंने वहां की सुरक्षा तैयारियों को बेहद करीब से देखा है. रूस, यूक्रेन, इजरायल में सायरन का इस्तेमाल युद्ध की वजह से हो रहा है. लेकिन अब हम आपको यूक्रेन और इजरायल के अलावा पूरी दुनिया में सायरन के इस्तेमाल से जुड़ी कुछ दिलचस्प जानकारी बताते हैं ये ऐसी जानकारी है जो सामान्य तौर पर पढ़ने और सुनने को नहीं मिलती है.
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— Zee News (@ZeeNews) May 6, 2025
फ्रांस में अभी भी हर महीने के पहले बुधवार को दोपहर में 1 मिनट के लिए सायरन के जरिए अलर्ट जारी किया जाता है. इस सायरन का इस्तेमाल टेस्टिंग के लिए होता है. नॉर्वे में साल में दो बार सायरन अलर्ट की टेस्टिंग की जाती है. जनवरी और जून महीने के दूसरे हफ्ते के बुधवार को दोपहर 12 बजे ये टेस्टिंग की जाती है. अमेरिका में राष्ट्रीय स्तर पर सायरन अलर्ट का कोई सिस्टम नहीं है हालांकि अलग-अलग राज्यों में स्थानीय स्तर पर अपना-अपना सिस्टम है. अमेरिका में अलर्ट के लिए सायरन के बजाय मोबाइल एप का इस्तेमाल किया जाता है. अमेरिका में डेढ़ साल पहले 4 अक्टूबर 2023 को दोपहर 2 बजे पूरे देश में लोगों के मोबाइल पर आपातकालीन अलर्ट भेजकर टेस्टिंग की गई थी.
चीन भी हर वर्ष या हर 6 महीने पर सायरन का परीक्षण करता रहता है. चीन के नानजिंग में हर वर्ष 13 दिसंबर को सुबह 10 बजे सायरन का परीक्षण किया जाता है. इस सायरन का इस्तेमाल नानजिंग नरसंहार की याद में किया जाता है. इसके अलावा चीन अलग-अलग मौकों पर भी उन हिस्सों में जहां सीमा विवाद है, सायरन का परीक्षण करता रहता है. तुर्किए में भी सायरन लगे हैं, हालांकि वहां की मीनारों में लगे स्पीकर का भी इस्तेमाल सायरन के तौर पर किया जाता है. संयुक्त अरब अमीरात में 2017 में बेहद आधुनिक सायरन सिस्टम को बनाया था. ये सिस्टम एक साथ मोबाइल पर मैसेज भेजता, रेडियो-टीवी पर भी अलर्ट जारी कर देता है. इंडोनेशिया और थाइलैंड ने 2004 में आई सुनामी के पहले अलर्ट के तौर पर सायरन का इस्तेमाल किया था.
सिंगापुर में अभी 284 सायरन लगे हुए हैं जिसकी टेस्टिंग हर महीने की 1 तारीख को दोपहर में किया जाता है. हालांकि इस दौरान युद्ध या अलर्ट जैसा कोई आवाज नहीं निकलता है बल्कि संगीत को बजाया जाता है. दक्षिण कोरिया ने 15 दिसंबर 2010 को पूरे देश में 1975 के बाद सबसे बड़ा मॉक ड्रील किया था. ये मॉक ड्रील दोपहर 2 बजे शुरू हुआ था और करीब 20 मिनट तक चला था. उत्तरी कोरिया के साथ तनाव के बीच ये मॉक ड्रील किया गया था. बेल्जियम हर तीन महीने पर पहले गुरुवार को हवाई हमले के सायरन का परीक्षण करता था. हालांकि 2018 के बाद इसे बंद कर दिया है. बेल्जियम में अब एक एप के जरिए देशभर के लोगों को अलर्ट दिया जाता है.
युद्ध की स्थिति में नागरिकों की सुरक्षा के लिए सरकार हर मुमकिन कदम उठा रही है. लेकिन DNA में आज हम सरकार को एक सुझाव देना चाहते हैं. जिस तरह से कोरोना काल में केंद्र सरकार ने एक एप जारी किया था. उसी तरह से एक एप युद्ध के हालात के लिए भी तैयार किया जाए. एक ऐसा ऐप जो युद्ध की स्थिति में लोगों को पहले ही हमले को लेकर अलर्ट कर दे. एक ऐसा ऐप जिसके जरिए लोग एक क्लिक के जरिए सरकार को किसी हमले की जानकारी दे सकें. हम आज ये सुझाव क्यों दे रहे हैं इसकी वजह भी बता देता हूं. मैंने कई युद्ध कवर किए हैं. इजरायल में हमास के रॉकेट अटैक के बीच वहां रिपोर्टिंग कर चुका हूं. सीरिया वॉर को भी अपनी आंखों से देखा है ये ऐसे बैटलफील्ड थे जहां कब आसमान से मिसाइलें बरस जाएं. कोई नहीं जानता लेकिन यहां की सरकारों ने लोगों के लिए ऐसा ऐप तैयार कर लिया है जिसके जरिए लोगों को पहले से अलर्ट कर दिया जाता है. इसका फायदा ये होता है कि लोगों के पास किसी सेफ बंकर में जाने के लिए वक्त मिल जाता है.
यूक्रेन में लोगों को मोबाइल पर नोटिफिकेशन मिलने पर 2 मिनट से 20 मिनट तक का वक्त मिल जाता है. इजरायल में भी डेढ़ मिनट से 10 मिनट तक का वक्त लोगों के पास होता है. जंग सिर्फ हथियारों से नहीं लड़ी जाती है. बल्कि आज के जमाने में तकनीक से भी लड़ी जाती है. हमारे देश में एयर रेड अलर्ट और EVACUATION का जो मॉकड्रिल आज हो रहा है. वो कई देशों में रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा बन चुका है. आपके फोन पर जिस तरह WHATSAPP पर नोटिफिकेशन आता है. यूक्रेन में तो हर पांच मिनट पर लोगों के मोबाइल पर एयर रेड वॉर्निंग बज जाता है.