न साबुन था, न सर्फ... फिर कैसे चमचमाते थे रानी-महारानियों के कपड़े? यूं होती थी सफाई
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न साबुन था, न सर्फ... फिर कैसे चमचमाते थे रानी-महारानियों के कपड़े? यूं होती थी सफाई

Soap And Surf Introduction In India: साबुन और डिटर्जेंट पाउडर हमारी साफ-सफाई में महत्वपूर्ण येगदान देते हैं. क्या आप जानते हैं कि इनसे पहले कपड़े और शरीर की सफाई के लिए क्या इस्तेमाल होता था? 

न साबुन था, न सर्फ... फिर कैसे चमचमाते थे रानी-महारानियों के कपड़े? यूं होती थी सफाई

Soap And Surf Introduction In India: हम सभी कपड़े धोने के लिए साबुन और सर्फ का इस्तेमाल करते हैं. वहीं भारत में साल 1888 के समय में पहली बार साबुन की मशीन का प्रोडक्शन शुरु हुआ था. वहीं डिटर्जेंट भी 20वीं सदी में ही भारत में आया. ऐसे में सोचने वाली बात ये है कि आखिर इससे पहले प्राचीन समय के लिए अपने कपड़ों को कैसे साफ करते थे? वहीं बिना साबुन के आखिर उनके कपड़े कैसे चकाचक साफ रहते थे? 

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सफाई के लिए प्राकृतिक उत्पाद  
भले ही केमिकला के जमाने में आजकल ऑर्गेनिक चीजों को बढ़ावा दिया जा रहा है, लेकिन प्राचीन समय के लोग केवल प्रकृति पर ही निर्भर थे. वे साफ-सफाई से लेकर हर चीज में प्राकृतिक उत्पादों का ही इस्तेमाल करते थे. कपड़े धोने की बात करें तो 1500-500 ईसा पूर्व यानी वैदिक काल में लोग शरीर और कपड़ों की धुलाई के लिए हल्दी,शिकाकाई, नीम और रीठा का खूब इस्तेमाल करते थे. ध्यान देने वाली बात ये है कि नीम-हल्दी जैसी ये चीजें बैक्टीरिया से भी लड़ने में मदद करती हैं. 

आधुनिक साबुन की शुरुआत
बता दें कि भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान आज से लगभग 130 साल पहले आधुनिक साबुन की शुरुआत हुई थी. लीवर ब्रदर्स इंग्‍लैंड ने आधुनिक साबुन को पहली बार भारतीय बाजार में उतारा था. पहले तो कंपनी साबुन को ब्रिटेन से भारत इंपोर्ट करवाके उसकी मार्केटिंग करती थी, लेकिन भारतीय बााजर में इसकी मांग बढ़ने से यहां साबुन की फैक्ट्री लगाई गई. देश में साल 1897 में पहली बार नॉर्थ वेस्‍ट सोप कंपनी ने देश की पहली साबुन फैक्ट्री लगाई. यहां नहाने के साथ और कपड़े साफ करने के साबुन बनते थे. भारत में साबुन का कारोबार खूब फला फूला. 

प्राचीन समय में साबुन 
प्राचीन समय की बात करें तो पहले राजघरानों में केवल धोबी ही कपड़े धोया करते थे. भारत में रीठा का पेड़ होता है. उस दौरान बाल और कपड़े धोने के लिए इसका खूब इस्तेमाल होता था. आज भी कई ऑर्गेनिक प्रोडक्ट्स में इसका खूब इस्तेमाल होता है. रीठे के छिलतके से निकलने वाले झाग से कपड़े साफ किए जाते थे. इससे कपड़ों में कीटाणु भी नहीं लगते. इसके अलावा इससे बाल भी साफ रहते हैं. पहले के लोग कपड़ों को गर्म पानी की भट्टी में उबालते थे फिर इसे ठंडा कर मैल निकालने के लिए पत्थरों में पीटते थे. महंगे या राजघरानों के कपड़ों में रीठा डालकर इन्हें उबाला जाता था. फिर इसे हाथ या ब्रश से पत्थर या लकड़ी पर रगड़ा जाता था. पहले भारत के गांवों में नदी-तालाब के किनारे रेह नाम का एक सफेद पाउडर मिलता था, जिसे पानी में मिलाकर उसमें कपड़े भिगोए जाते थे. इसके बाद कपड़ों को थापी से रगड़कर साफ किया जाता था. बाद में नदी-समुद्र में मिलने वाले सोडे से भी कपड़े धोए जाते थे. 

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भारत में साबुन की क्रांति 
भारत में वनस्पति तेलों और क्षार से बनने वाले पारंपरिक साबुन मध्यकाल में पहुंचे थे. 18वीं और 19वीं सदी में इनका खूब उत्पादन हुआ. वहीं 1950 के दशक में भारत में सिंथेटिक डिटर्जें की एंट्री हुई और 1960 के दशक में हिंदुस्तान यूनिलीवर ने 'सर्फ' नाम से डिटर्जेंट पाउडर मार्केट में उतारा. यह भारत का पहला लोकप्रिया डिटर्जेंट ब्रांड बना. 

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