स्‍पीकर खुद पार्टी के सदस्‍य होते हैं, क्‍या उन्‍हें किसी सदस्‍य की अयोग्‍यता पर फैसला लेना चाहिए?
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स्‍पीकर खुद पार्टी के सदस्‍य होते हैं, क्‍या उन्‍हें किसी सदस्‍य की अयोग्‍यता पर फैसला लेना चाहिए?

सुप्रीम कोर्ट ने संसद से विचार करने का आग्रह किया है कि स्पीकर जो खुद किसी पार्टी के सदस्य होते हैं, क्या उन्हें MP/MLA की अयोग्यता पर फैसला लेना चाहिए? मणिपुर में दलबदल करने वाले एक MLA के मामले पर फैसले में SC ने कहा- अयोग्यता पर निर्णय के लिए निष्पक्ष स्थायी व्यवस्था बनाना बेहतर रहेगा.

स्‍पीकर खुद पार्टी के सदस्‍य होते हैं, क्‍या उन्‍हें किसी सदस्‍य की अयोग्‍यता पर फैसला लेना चाहिए?

नई दिल्‍ली: सुप्रीम कोर्ट ने संसद से विचार करने का आग्रह किया है कि स्पीकर जो खुद किसी पार्टी के सदस्य होते हैं, क्या उन्हें MP/MLA की अयोग्यता पर फैसला लेना चाहिए? मणिपुर में दलबदल करने वाले एक MLA के मामले पर फैसले में SC ने कहा- अयोग्यता पर निर्णय के लिए निष्पक्ष स्थायी व्यवस्था बनाना बेहतर रहेगा.

स्पीकर की ओर से विधायकों और सांसदों को अयोग्य ठहराए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया है कि ऐसे मामलों की जांच के लिए एक स्वतंत्र संस्था का गठन किया जाना चाहिए. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि स्पीकर की भूमिका पर एक बार फिर से विचार होना चाहिए और स्पीकर लंबे समय तक ऐसी याचिकाओं को अपने पास नहीं रख सकते हैं.

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सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि संसद को अयोग्यता याचिकाओं पर फैसला करने के लिए स्पीकर को विशेष शक्तियां देने के औचित्य पर विचार करना चाहिए. इस टिप्पणी का कर्नाटक विधायकों को अयोग्य करार देने की पृष्ठभूमि में खासा महत्व है. इस पर बीते साल शीर्ष कोर्ट द्वारा फैसला किया गया था. न्यायमूर्ति आर.एफ. नरीमन की अगुआई वाली तीन सदस्यीय पीठ ने इस प्रक्रिया में अधिक निष्पक्षता लाने पर जोर देते हुए कहा कि संसद सांसदों और विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिकाओं को तय करने के लिए स्पीकर के पास विशेष शक्तियां देने की बजाय एक स्वतंत्र और स्थायी निकाय बना सकती है.

शीर्ष कोर्ट की यह टिप्पणी मणिपुर में वन और पर्यावरण मंत्री टी. श्यामकुमार की अयोग्यता पर आई है. श्यामकुमार कांग्रेस के टिकट पर जीते थे, लेकिन राज्य में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार में शामिल हो गए. फैसले में शीर्ष कोर्ट ने कहा कि स्पीकर अनिश्चित समय के लिए अयोग्यता याचिका को रोके नहीं रख सकते. कोर्ट ने जोर दिया कि स्पीकर के लिए जरूरी है कि मामले पर उचित समय अवधि के भीतर फैसला ले और सिफारिश की कि अयोग्यता याचिकाओं पर तीन महीने के भीतर फैसला होना चाहिए.

पीठ ने कहा कि स्पीकर की स्वतंत्रता को लेकर कई बार सवाल उठाए गए हैं. पीठ ने सवालिया लहजे में कहा, "क्या स्पीकर एकमात्र व्यक्ति है जिसे अयोग्यता याचिकाओं पर फैसला लेने की जिम्मेदारी दी जाए, खास तौर से जब वह भी एक राजनीतिक दल का सदस्य है?"

कोर्ट ने कहा कि दलबदल जैसे मामले को लेकर अयोग्य करार देने पर संसद या विधानसभा के चुने हुए सदस्यों को बने रहने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. मणिपुर मामले में शीर्ष कोर्ट ने स्पीकर को अयोग्यता याचिका पर 4 हफ्ते के भीतर फैसला लेने को कहा है.

(इनपुट: सुमित कुमार के साथ)

 

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