नई दिल्ली: देशभर में रविवार रात आसमान कुछ अलग दिखाई देगा और उल्कापिंडों (Meteoroid) की बौछार से आकाश जगमगा उठेगा. उल्कापिंडों की बौछार की खास खगोलीय घटना है, लेकिन यह 13 दिसंबर की रात चरम पर होगी. नासा की रिपोर्ट के अनुसार पीक ऑवर्स के दौरान प्रति घंटे में 120 जेमिनीड उल्कापिंडों को देखा जा सकता है.


कैसे देख सकते हैं उल्कापिंडों की बौछार


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एमपी बिड़ला तारामंडल के निदेशक और जाने-माने खगोल वैज्ञानिक देवीप्रसाद दुआरी ने पीटीआई से बात करते हुए कहा, 'जेमिनिड (Geminid) के नाम से जानी जाने वाली उल्कापिंडों (Meteoroid) की यह बौछार साल की सबसे बड़ी उल्का पिंडों की बौछार होगी. जेमिनिड उल्कापिंडों की बौछार की सबसे अच्छी बात है कि कोई भी इसे देख सकता है और इसके लिए दूरबीन की आवश्यकता नहीं है.


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क्या भारत में दिखाई देगी उल्का बौछार?


आकाश साफ रहने पर जेमिनीड उल्का बौछार भारत के हर हिस्से से दिखाई देगी. देवीप्रसाद दुआरी ने बताया कि रात करीब 1-2 बजे पीक ऑवर्स के दौरान प्रति घंटे 150 उल्काएं दिखाई दे सकती हैं. Space.com के अनुसार, रात 2 बजे उल्कापिंडों की बौछार चरम पर होगी, हालांकि इसे रात 9-10 बजे भी देखा जा सकता है.


पहली बार कब देखी गई थी बौछार


अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के अनुसार, जैमिनिड उल्कापिंडों की बौछार पहली बार 1800 के दशक के मध्य में देखी गई थी, लेकिन उस समय बौछारें इतनी ज्यादा नहीं थीं और प्रति घंटे सिर्फ 10-12 उल्कापिंडों को ही देखा गया था. खगोलविदों के अनुसार, इस बार पीक आवर्स के दौरान एक घंटे में 120 जेमिनीड उल्का देखी जा सकती हैं. जेमिनिड चमकीले होते हैं और पीले रंग के होते हैं.


क्यों होती है उल्कापिंडों की बारिश


साल की एक निश्चित अवधि में आकाश से आते एक नहीं, बल्कि कई उल्कापिंड देखने को मिलते हैं, जिन्हें उल्कापिंड बौछार कहा जाता है. ये बौछार अक्सर उस समय होती है, जब पृथ्वी विभिन्न उल्का तारों के सूरज के निकट जाने के बाद छोड़ी गई धूल के बचे मलबे से गुजरती है. उल्का पिंड चमकदार रोशनी की जगमगाती धारियां होती हैं, जिन्हें अक्सर रात में आसमान में देखा जा सकता है. खगोल वैज्ञानिक देवीप्रसाद दुआरी ने बताया कि जब धूल के कण जितनी छोटी एक चट्टानी वस्तु बेहद तेज गति से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करती है, तो घर्षण के कारण प्रकाश की खूबसूरत धारी बनती है.


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