इस परम्परा को रोकने के लिए पुलिस प्रशासन ने लाख जतन कर लिए लेकिन नाकाम रहा. कई बार तो ऐसा मौका होता है कि युवा पुलिस तक को शिकार बना डालते हैं.
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केकड़ी: शहर में बरसों से दिवाली के अगले दिन बाजार में एक दुसरे पर पटाखें फेंके जाने का खेल अब परम्परा का रूप ले चुका है. यह समाज की जड़ में इस कदर रम चूका है कि प्रशासन भी अब बेबस नज़र आने लगा है. एक बार फिर दिवाली का मौका है. दिन भी वही है दस्तूर भी वही. दिवाली के दूसरे दिन शहर के बाजार में सुबह से ही एक दुसरे पर पटाखे फेंकने का दौर चल रहा है.
दिन में महिलाएं और बच्चे राम राम के लिए बाजार में निकलते हैं तो युवा वर्ग उन पर पटाखे फेंकता है. नोजवान टोलियों के रूप मे झुंड के झुंड पटाखों से हमला करते हैं. सबसे चौकाने वाली बात यह है कि पटाखों को आदमियों महीलाओं पर फेका जाता हैं. युवा पटाखों की जगह सुतली बम फेकते हैं. शाम होते होते तो बाजार में पटाखों के धुंए के गुबार से धुंध सी छा जाती है.
इस परम्परा को रोकने के लिए पुलिस प्रशासन ने लाख जतन कर लिए लेकिन नाकाम रहा. कई बार तो ऐसा मौका होता है कि युवा पुलिस तक को शिकार बना डालते हैं. पुलिस को भी मैदान छोड़कर भागना पड़ता है. इस अंधी दौड़ में कई लोगों का झुलस जाना मौत होना या आगजनी की घटना आम बात है. इस पटाखेबाजी से हर साल झुलसने से नोजवानों की मौत भी होती है और पटाखे से करीब दो से तीन दजर्न लोग झुलसते हैं.
इसके बावजूद अंगारो की होली थमने का नाम नही ले रही है. ऐसी स्थिति तब है जब चप्पे चप्पे पर पुलिस बल तेनात हैं. पिछले कुछ सालों में ऐसे लोगों पर मुकदमे बाज़ी भी की गई लेकिन इसका इन लोगों पर कोई असर नहीं हुआ. अब भी इनकी कारगुजारियां बदस्तूर ज़ारी है. असामाजिक तत्त्वों से निपटने के लिए जिला प्रशासन पुलिस लाइन से हर साल जाब्ता भेजता हैं इसके अलावा भिनाय सावर सरवाड सहीत आसपास के थानों का जाब्ता भी मगवाया जाता हैं. साथ ही आरएसी की एक टुकड़ी भी तेनात कि जाती है. इसके बावजूद पटाखा युद्ध थमने का नाम नही ले रहा हैं. जिससे बाज़ार सुनसान विरान नजर आते हैं.