'अशोक चक्र' से सम्मानित नजीर वानी की पत्नी ने कहा, 'उनके शहीद होने पर नहीं रोई...'
‘अशोक चक्र’ से वानी को सम्मानित करने की घोषणा के बाद महजबीन ने कहा, ‘‘जब मुझे बताया गया कि वह नहीं रहे, मैं रोई नहीं थी. मेरे भीतर एक ताकत थी जिसने मुझे आंसू बहाने नहीं दिए.’’
- लांस नायक नजीर वानी नवंबर में शहीद हुए
- उस दौरान सुरक्षा बलों ने 6 आतंकी मार गिराए
- मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया गया
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नई दिल्ली: कहते हैं ना कि कच्ची उमर का प्यार बड़ा खास होता है. लांस नायक नजीर अहमद वानी और महजबीन के लिए भी उनका प्यार बड़ा ही खास था. 15 साल पहले दक्षिण कश्मीर के स्कूल में पहली नजर में ही दोनों एक दूसरे को दिल दे बैठे थे. वानी करीब डेढ़ महीने पहले शोपियां में आतंकवादियों के खिलाफ एक अभियान के दौरान शहीद हो गए. इसके कई हफ्ते गुजरने के बाद महजबीन कहती हैं वानी का प्यार और उनका निडर होना, मुझे हर पल हिम्मत देता है कि मैं अपने दोनों बच्चों को अच्छा नागरिक बनाऊं.
शांतिकाल के सर्वोच्च सैन्य सम्मान ‘अशोक चक्र’ से वानी को सम्मानित करने की घोषणा के बाद महजबीन ने कहा, ‘‘जब मुझे बताया गया कि वह नहीं रहे, मैं रोई नहीं थी. मेरे भीतर एक ताकत थी जिसने मुझे आंसू बहाने नहीं दिए.’’ उन्होंने कहा, ‘‘वह मुझसे बहुत प्यार करते थे. वह मेरे नूर थे. वह हमेशा आसपास के लोगों को खुश रखना और उनकी समस्याओं को सुलझाना सिखाते थे.’’
आतंक का रास्ता छोड़ थामी थी सेना की बंदूक, आतंकी से लड़ते हुए सीना हुआ छलनी
उन्होंने कहा, ‘‘शिक्षक होने के नाते, मैं राज्य के लिए अच्छे नागरिक विकसित करने के लिए प्रतिबद्ध हूं. युवाओं को सही दिशा दिखाना मेरा लक्ष्य है. मैं इसकी प्रेरणा अपने पति से लेती हूं. वह दुनिया में सबसे अच्छे हैं.’’
दोनों की मुलाकात और बाकी जिंदगी के बारे में बात करते हुए महजबीन ने बताया, ‘‘हम स्कूल में मिले. पहली नजर का प्यार था. वह बहुत अच्छे पति थे. हमेशा हमारी रक्षा की.’’ उन्होंने बताया कि 25 नवंबर को वानी के शहीद होने की खबर जब मिली तो वह अपने मायके में थीं. वानी ने एक दिन पहले ही उसे फोन करके हाल-चाल पूछा था. सब ठीक था, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था.
शहीद नजीर वानी
जम्मू और कश्मीर में आतंकवाद का रास्ता छोड़कर भारतीय सेना में शामिल हुए शहीद लांस नायक नजीर अहमद वानी को इस साल मरणोपरांत अशोक चक्र के लिए चुना गया है. वह पिछले साल नवंबर में शोपियां में आतंकियों से हुई मुठभेड़ में शहीद हुए थे. उस दौरान सुरक्षा बलों ने 6 आतंकियों को मार गिराया था. बता दें कि अशोक चक्र भारत का शांति के समय दिया जाने वाला सर्वोच्च वीरता पुरस्कार है. शहीद लांसनायक को आतंकियों के खिलाफ वीरता से लड़ने के लिए दो बार सैन्य पदक भी मिला.
जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों से लोहा लेते हुए जान गंवाने वाले लांस नायक नजीर अहमद वानी की कहानी दिलचस्प है. नजीर अहमद वानी पहले आतंकवादी थे, लेकिन जब उन्हें इस बात का अहसास हुआ तो उन्होंने देश विरोधी ताकतों से नाता तोड़ दिया. इसके बाद वह भारतीय सेना में शामिल होकर राष्ट्र सेवा में जुट गए.
अधिकारियों के अनुसार 38 वर्षीय वानी कुलगाम के अश्मुजी के रहने वाले थे. वह 25 नवंबर को भीषण मुठभेड़ के दौरान शहीद हो गए थे. शुरू में आतंकी रहे वानी बाद में हिंसा का रास्ता छोड़ मुख्यधारा में लौट आए थे. वह 2004 में सेना में शामिल हुए थे. अधिकारियों ने बताया कि वानी दक्षिण कश्मीर में कई आतंकवाद रोधी अभियानों में शामिल रहे. जिस मुठभेड़ में वह शहीद हुए, उस समय वह 34 राष्ट्रीय रायफल्स का हिस्सा थे. इसके अलावा वह जम्मू और कश्मीर लाइट इंफैंट्री रेजीमेंट में भी रहे थे.
जम्मू-कश्मीर के चेकी अश्मुजी गांव के रहने वाले शहीद लांसनायक नजीर वानी के परिवार में पत्नी और दो बच्चे हैं. उनके सुपुर्द-ए-खाक के समय सेना के बड़े अफसर भी शामिल हुए थे. शहीद के पिता इस दौरान अत्यधिक दुखी थे. बेटे को खो देने का दुख उनकी आंखों से आंसू के रूप में बाहर आ रहा था.
एक सैन्य अफसर ने उनके पास पहुंचकर उन्हें गले लगा लिया था. उन्हें सांत्वना दी और ढांढस बंधाया था. उनको गले लगाने की तस्वीर सेना ने अपने ट्विटर अकाउंट पर शेयर की थी, जो काफी भावुक करने वाली थी. इसमें सेना ने शहीद के पिता को ढांढस बंधाते हुए लिखा 'आप अकेले नहीं है.' वानी के सुपुर्द-ए-खाक में 500 से 600 ग्रामीण मौजूद थे. वानी को 21 तोपों की सलामी भी दी गई थी.
(इनपुट: एजेंसी भाषा से भी)