जुड़वां बच्चे ओम्फालोपैगस होते हैं, उनका पेट आपस में मिला होता है' चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार, ऐसे मामलों में नवजात के जीवित रहने की दर सिर्फ 5 से 25 प्रतिशत है.
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लखीमपुर खीरी: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के लखीमपुर खीरी (Lakhimpur Kheri) में एक गरीब दलित परिवार के घर जुड़वा बच्चियों के जन्म के बाद खुशियों के साथ एक संकट भी साथ आया है. दरअसल नवजात बच्चियां आपस में जुड़ी हुईं हैं इसके बाद परिजनों ने आर्थिक मदद की अपील की है. ताकि सर्जरी के खर्च का इंतजाम करके नवजात शिशुओं का शरीर अलग किया जा सके.
नॉर्मल होम डिलीवरी से हैरान हुए डॉक्टर
वहीं दूसरी ओर लखीमपुर खीरी में डॉक्टर इस बात को लेकर आश्चर्यचकित थे कि गुरुवार को जन्मी जुड़वा बच्चियों की डिलीवरी घर पर सुरक्षित रूप से हुई' डॉ. एसके सचान ने कहा, "हम आश्चर्यचकित हैं कि होम डिलीवरी में संयुक्त जुड़वा बच्चे बच गए, जो ऐसे मामलों में संभावित कई जटिलताओं को देखते हुए दुर्लभ है'.
ऐसे केस में जीवित रहने की दर सिर्फ 25 प्रतिशत
जुड़वां बच्चे ओम्फालोपैगस होते हैं, उनका पेट आपस में मिला होता है' चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार, ऐसे मामलों में नवजात के जीवित रहने की दर सिर्फ 5 से 25 प्रतिशत है. इस तरह के जुड़वा आमतौर पर एक लिवर के साथ पैदा होते हैं, लेकिन कई बार कुछ मामले अलग भी होते हैं, जिनमें छोटी आंत और पेट का निचला हिस्सा जुड़ा रहता है'.
एकदम स्वस्थ्य हैं आपस में जुड़ी हुईं जुड़वा बेटियां
आमतौर पर संयुक्त शिशुओं को उनकी शारीरिक रचना के कारण सीजेरियन सेक्शन डिलीवरी की आवश्यकता होती है, लेकिन इस मामले में वे घर पर एक सामान्य प्रसव के माध्यम से पैदा हुई'. नवजातों को शुक्रवार सुबह उनके पिता सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले गए, जहां कर्मचारियों ने कहा कि वे स्वस्थ हैं' वहां से जुड़वा बच्चों को मेडिकल परीक्षण के लिए लखनऊ के एक अस्पताल में भेजा गया है'
मुख्य चिकित्सा अधिकारी (Chief Medical Officer) डॉ. मनोज अग्रवाल ने संवाददाताओं से कहा कि संयुक्त जुड़वा बच्चों की मृत्युदर बहुत अधिक है और उस पर लड़कियों के जन्म पर जीवित रहने की संभावना और कम हो जाती है' उन्होंने कहा, "हम शिशुओं के इलाज की संभावना की जांच करेंगे'.
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