4-5 अस्पतालों में धक्के खाने के बाद भी वेंटिलेटर न मिलने से मौत, जानें पूरा मामला
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4-5 अस्पतालों में धक्के खाने के बाद भी वेंटिलेटर न मिलने से मौत, जानें पूरा मामला

मरीज के बेटे का कहना है कि अस्पताल प्रशासन, डॉक्टर्स और नर्सिंग स्टाफ के गैर जिम्मेदाराना रवैये के चलते उसके पिता की मौत हुई है.

4-5 अस्पतालों में धक्के खाने के बाद भी वेंटिलेटर न मिलने से मौत, जानें पूरा मामला

मुंबई: महाराष्ट्र के मुंबई में 52 साल के एक शख्स की मौत सिर्फ इसीलिए हो गई क्योंकि उसे 4 से 5 अस्पतालों में धक्के खाने के बाद भी वेंटीलेटर नहीं दिया गया. 12 मई को पहली बार एडमिट हुए मरीज की 11 दिनों बाद अस्पताल के चक्कर काटते हुए 22 मई को कोरोना वायरस (Coronavirus) की वजह से मौत हो गई. मरीज के बेटे का कहना है कि अस्पताल प्रशासन, डॉक्टर्स और नर्सिंग स्टाफ के गैर जिम्मेदाराना रवैये के चलते उसके पिता की मौत हुई है.

  1. 12 मई को पहली बार अस्पताल में एडमिट हुआ था मरीज
  2. 21 मई को कोरोना मरीज की मौत हो गई
  3. अस्पताल के गेट पर मरीज ने दम तोड़ दिया

मुंबई में वीले पारले के कूपर हॉस्पिटल में एडमिट 52 साल के मरीज ने मौत से पहले एक वीडियो बनाकर वेंटिलेटर उपलब्ध करवाने की गुहार लगाई. जिसमें वो मुंह पर ऑक्सीजन मास्क लगाए हुए दिख रहे हैं.

बता दें कि 12 मई को पहली बार कांदिवली ईस्ट में रहने वाले शख्स को तबियत खराब होने की वजह से कांदिवली ईस्ट के ही DNA हॉस्पिटल में एडमिट करवाया गया था. जब मरीज का हालत ज्यादा खराब हुई तो DNA हॉस्पिटल में उन्हें किसी बड़े अस्पताल में ले जाने के लिए कहा गया. इसके बाद मरीज का बेटा उन्हें कांदिवली वेस्ट के शताब्दी हॉस्पिटल ले गया लेकिन वहां लाइन बहुत लंबी थी. इसके बाद ये लोग लगभग 20 किलोमीटर का फासला तय करके विले पार्ले के कूपर हॉस्पिटल गए. वहां पहले तो डॉक्टर ने ऑक्सीजन न होने की बात कहकर मरीज को एडमिट करने के आनाकानी की. फिर बहुत रिक्वेस्ट करने के बाद कूपर हॉस्पिटल में एडमिट किया गया. इसके बाद डॉक्टर की बात झूठ निकली और हॉस्पिटल में तुरंत ऑक्सीजन उपलब्ध हो गई.

लेकिन 15 मई के बाद जब मरीज की तबियत और ज्यादा खराब होने लगी तो पता चला कि वो कोरोना संक्रमित हो चुका है. इसके बाद मरीज के बेटे ने डॉक्टर्स से पिता को वेंटिलेटर दिए जाने की मांग की. इस पर उससे कहा गया कि वेंटिलेटर सिर्फ इमरजेंसी मामलों के लिए है, कोरोना मरीजों के लिए नहीं है. ऐसे में मरीज के बेटे ने जब बाहर से खुद वेंटिलेटर की व्यवस्था करने की बात कही तो हॉस्पिटल प्रशासन ने इसको ये कह कर खारिज कर दिया कि बाहर के वेंटिलेटर को सरकारी हॉस्पिटल में अनुमति नहीं दी जा सकती है.

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इसके बाद 18 मई को कूपर हॉस्पिटल से निकालकर एक बार फिर मरीज को कांदिवली ईस्ट के DNA हॉस्पिटल में लाया गया ताकि यहां उन्हें वेंटीलेटर दिया जा सके. कूपर हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होते वक्त मरीज को लगभग खाली हो चुका ऑक्सीजन सिलेंडर दिया गया, जो जोगेश्वरी आते-आते रास्त में ही खत्म हो गया. इसकी वजह से मरीज हांफने लगा. जब ये लोग DNA हॉस्पिटल पहुंचे तो यहां भी मरीज को एडमिट करने से मना कर दिया गया. इसके बाद मरीज को फिर से वापस कूपर हॉस्पिटल ले जाया गया. यहां कूपर हॉस्पिटल में मरीज को 21 मई तक बिना वेंटिलेटर के रखा गया.

इसके बाद बहुत कोशिश करने पर कूपर हॉस्पिटल से 30 किलोमीटर दूर मुंबई सेंट्रल इलाके में स्थित नायर हॉस्पिटल में मरीज को वेंटिलेटर उपलब्ध करवाने की बात पक्की हुई. लेकिन इतने दिनों के संघर्ष के बाद जैसे ही नायर हॉस्पिटल के गेट पर एंबुलेंस पहुंची, मरीज ने दम तोड़ दिया. 

लापरवाही सिर्फ यहीं तक नहीं रुकी, 21 मई की सुबह ही पुलिस को मरीज की मौत की खबर दे दी गई थी, लेकिन पुलिस शाम 4 बजे के बाद आई. फिर तमाम औपचारिकताएं को पूरी करने के बाद मरीज का अंतिम संस्कार हो सका.

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