अस्पतालों में बेड की मारामारी, क्या दिल्ली का हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर दम तोड़ चुका है?
कोरोना बेड की किल्लत को देखते हुए दिल्ली सरकार ने 22 प्राइवेट अस्पतालों में कोरोना बेड्स की संख्या 20% से ज्यादा करने का फैसला किया है.
नई दिल्ली: दिल्ली के प्राइवेट अस्पतालों में कोरोना बेड की किल्लत को देखते हुए दिल्ली सरकार ने 22 प्राइवेट अस्पतालों में कोरोना बेड्स की संख्या 20% से ज्यादा करने का फैसला किया है.
ये अस्पताल हैं-अपोलो, बत्रा, फोर्टिस, मैक्स, बीएल कपूर, महाराजा अग्रसेन, वेंकटेश्वर, शांति मुकुंद, होली फैमिली आदि.
इन अस्पतालों में अभी 1441 कोरोना बेड हैं, लेकिन अब इनकी संख्या बढ़ाकर 3456 हो जाएगी.
इससे पहले दिल्ली सरकार ने आदेश दिया था कि दिल्ली के 50 बेड से ज्यादा क्षमता के जितने भी अस्पताल/नर्सिंग होम हैं वो 20% बेड कोरोना के लिए रिजर्व करें.
लेकिन डॉक्टर सवाल उठा रहे हैं कि यह फैसला कितना सही है. अगर एक ही अस्पताल में कोरोना और दूसरे मरीज एक साथ इलाज कराएंगे तो संक्रमण कम होने की जगह एक से दूसरे को फैलने का खतरा बढ़ जाएगा.
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अस्पतालों की दलील है कि इसकी जगह कुछ अस्पतालों को पूरी तरह से कोरोना वायरस के इलाज के लिए अलग कर दिया जाए जिससे दूसरे मरीजों को इंफेक्शन होने का खतरा न रहे.
दिल्ली सरकार का खुद का आकलन यह कहता है कि 15 जून तक 44 हजार केस हो जाएंगे दिल्ली में. 30 जून तक 1 लाख केस हो जाएंगे.
अगर यह मान लिया जाए कि इनमें से एक तिहाई मरीजों को भी अस्पताल की जरूरत पड़ती है तो भी बेड कम पड़ना तय है.
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