प्रधानमंत्री के सुप्रीम कोर्ट जाने और CJI से मिलने में कुछ गलत नहीं : जस्टिस लोकुर
पूर्व न्यायाधीश ने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री को सार्वजनिक कार्यक्रम में आमंत्रित करने में कुछ भी गलत नहीं था. सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे खोलना पूरी तरह से सही था.’’
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नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मदन बी लोकुर ने बुधवार को कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सुप्रीम कोर्ट परिसर में आने और प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) रंजन गोगोई से मिलने में कुछ भी गलत नहीं है. उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों को राजनीतिक दायरे से दूर रहना चाहिए लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि वे एकांतवास में रहें.
पूर्व न्यायाधीश ने कहा, ‘‘मुझे नहीं पता आपका दूरी से क्या अर्थ है? क्या आप यह कह रहे हैं कि मुझे प्रधानमंत्री को चेहरा नहीं देखना चाहिए? प्रधानमंत्री को सार्वजनिक कार्यक्रम में आमंत्रित करने में कुछ भी गलत नहीं था. सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे खोलना पूरी तरह से सही था.’’
उनसे सीजेआई रंजन गोगोई के प्रधानमंत्री की सीजेआई का अदालती कक्ष देखने की इच्छा पर सहमत होने के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘‘आप इसमें बहुत ज्यादा गहराई में जा रहे हैं और इसे बहुत ज्यादा खींच रहे हैं.’’ गौरतलब है कि प्रधान न्यायाधीश गोगोई ने 25 नवंबर को बिमस्टेक देशों (बांग्लादेश, भूटान, म्यांंमार, नेपाल और थाईलैंड) के न्यायाधीशों के लिए आयोजित रात्रि भोज में प्रधानमंत्री को आमंत्रित किया था.
सीजेआई के रूख पर लोकूर ने नहीं दिया जवाब
न्यायमूर्ति एमबी लोकुर ने प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई द्वारा सीबीआई मामले और राजनीतिक रूप से संवेदनशील अयोध्या जमीन मालिकाना हक विवाद मामले की सुनवाई आदि के सवालों पर कोई जवाब नहीं दिया. तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ बागी तेवर दिखाते हुए 12 जनवरी, 2018 को प्रेस कांफ्रेंस करने वाले सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ न्यायाधीशों में शामिल लोकूर ‘द लीफलेट’ की ओर से ‘भारतीय न्यायपालिका की स्थिति’ विषय पर आधारित सत्र पर बोल रहे थे.
सीबीआई मुद्दे पर नहीं दिया कोई जवाब
लोकुर ने इस सवाल का कोई जवाब नहीं दिया कि क्या अंतरिम निदेशक के तौर पर एम नागेश्वर राव की नियुक्ति को चुनौती देने वाली सीबीआई के पूर्व निदेशक आलोक वर्मा की याचिका पर प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई को मंगलवार को सुनवाई करनी चाहिए थी. सीबीआई के निदेशक का चयन करने वाली समिति में न्यायमूर्ति गोगोई भी शामिल हैं.
'12 दिसंबर का फैसला सार्वजनिक नहीं होने से निराश हूं'
पूर्व न्यायाधीश मदन बी लोकुर ने न्यायमूर्ति प्रदीप नंदराजोग और न्यायमूर्ति राजेंद्र मेनन को शीर्ष अदालत में पदोन्नत नहीं करने से पैदा विवाद पर बुधवार को अपनी चुप्पी तोड़ी. उन्होंने इन दोनों न्यायाधीशों के नामों को बीते दिसंबर में कथित रूप से मंजूरी देने वाले कॉलेजियम के प्रस्ताव को सार्वजनिक नहीं करने पर निराशा जताई.
इस मामले में विवाद उस समय पैदा हो गया था, जब सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाले पांच न्यायाधीशों के कॉलेजियम ने 10 जनवरी को नये प्रस्ताव में न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना को वरिष्ठता क्रम को नजरअंदाज करते हुए उच्चतम न्यायालय में पदोन्नत करने की सिफारिश की थी. इन दोनों न्यायाधीशों ने बीते शुक्रवार को पद की शपथ ली.