राजस्थान के इस इलाके में है अनोखा रिवाज, दशहरे के 4 दिन बाद होता है रावण दहन
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राजस्थान के इस इलाके में है अनोखा रिवाज, दशहरे के 4 दिन बाद होता है रावण दहन

पूरे देश में दशहरे के दिन रावण को जलाया जाता है. लेकिन राजस्थान(Rajathan) के झुंझुनूं(Jhunjhunu) जिले के बिसाऊ(Bisau) कस्बे में रावण दहन पूर्णिमा से एक दिन पहले होता है.

 

शनिवार रात को भी देश में रावण दहन किया गया.

संदीप केडिया, झुंझुनूं: ना तो रावण(Rawan) का वो हंसना और ना ही राम(Ram) के संदेश देने वाले शब्द. फिर भी एक ऐसी रामलीला(Ramleela) से आपको रूबरू करवाते हैं जो ना केवल 15 दिनों तक चलती है. बल्कि बिना संवाद के सभी को मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जीवन की सारी कहानी बयां कर जाती है.

इस रामलीला में दशहरे(Dussherra) के दिन नहीं, बल्कि पूर्णिमा के दिन रावण दहन होता है. वहीं रावण के भाई मेघनाथ(Meghnath) और कुंभकरण(Kumbhkaran) के साथ उसके दत्तक पुत्र नारांतक(Narantak) का भी पुतला जलाया जाता है.

पूरे देश में दशहरे के दिन रावण को जलाया जाता है. लेकिन राजस्थान(Rajathan) के झुंझुनूं(Jhunjhunu) जिले के बिसाऊ(Bisau) कस्बे में रावण दहन होता है पूर्णिमा से एक दिन पहले. यानि कि दशहरे के चार दिन बाद. बीती रात को भी बिसाऊ में रावण दहन किया गया. मौका था मूक रामलीला का. 

जी, हां बिसाऊ की मूक रामलीला ना तो आपने कभी देखी होगी और ना ही सुनीं होगी. बीती रात को जब रावण दहन किया गया तो बड़ी संख्या में ना केवल बिसाऊ कस्बे के, बल्कि पास पड़ोस के गांवों और मूक रामलीला देखने के लिए आने वाले अन्य जगहों के लोग भी पहुंचे.

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यह है बिसाऊ की मूक रामलीला
अब आपको बताते है कि आखिर मूक रामलीला क्या है? मूक रामलीला बिसाऊ की विश्व प्रसिद्ध रामलीला है. जिसमें सभी पात्र बिना कोई संवाद किए रामलीला का मंचन करते है. 

इसमें राम, लक्ष्मण, सीता, भरत और नारद जैसे किरदारों के चेहरे सजाए जाते है तो शेष सभी किरदार मुखौटे में होते है. खास बात यह होती है कि इसमें कोई भी किरदार बोलता नहीं है. लेकिन ढोल नगाड़ों की धुन रामलीला को मनोरंजन से भरपूर बना देती है. साथ ही कलाकार अपने इशारों से दर्शकों को वो सब संदेश दे देते है. जो एक रामलीला में दिया जाता है. 

पूरे देश में जब दशहरे के दिन रावण के पुतले को जलाया जाता है. उस दिन यहां पर रावण के भाई कुंभकरण, इसके अगले दिन मेघनाथ और फिर पूर्णिमा से दो दिन पहले रावण के दत्तक पुत्र नारान्तक का पुतला जलाया जाता है. बीती रात को पूर्णिमा से एक दिन पहले रावण का पुतला दहन किया गया. 

तीसरी पीढ़ी के कलाकार कर रहे है मंचन, नए भी जुड़ रहे है
इस मूक रामलीला में अभिनय करने वाले कलाकार भी रामलीला का इंतजार रहता है. हर साल इसमें नए कलाकार भी जुड़ते है तो वहीं पुराने कलाकारों का भी प्रमोशन होता रहता है. राम का अभिनय करने वाले कमल मिश्रा ने बताया कि पहले वे भरत और ब्रह्माजी का अभिनय करते थे. लेकिन अब दो साल से उन्हें राम बनने का मौका मिलता है. खास बात यह है कि कमल मिश्रा अपने परिवार की तीसरी पीढी भी है. जो मूक रामलीला में अभिनय कर रहे है. इससे पहले उनके दादा और पिता भी अभिनय कर चुके है. वहीं नारद का रोल कर रहे अशोक जांगिड़ ने बताया कि वह पहले दर्शक के रूप में आता था. लेकिन अब चार सालों से उसे अभिनय का मौका मिल रहा है. जिससे उसे खुशी मिलती है. साथ ही अभिनय के वक्त फिलिंग भी काफी धर्ममय हो जाती है. 

175 साल पहले जोहड़ में साध्वी ने शुरू किया था 'खेल'
पुराने जानकारों की मानें तो मूक रामलीला बिसाऊ के एक जोहड़ में करीब 175 साल पहले एक साध्वी ने की थी. साध्वी जमुना रामभक्त थी. वह शाम को बच्चों को बुलाती और उन्हें दो दलों, रावणादल तथा रामादल में बांटकर खेल खिलाती. इसी खेल में रामलीला के सभी किरदार और सभी संदेश छुपे होते थे. साध्वी द्वारा शुरू की गई यह मूक रामलीला अलग-अलग स्थानों से होते हुए अब बिसाऊ कस्बे के गढ़ के पास होती है. जो उस वक्त के तत्कालीन राज परिवार ने शुरू करवाई थी. अब गढ़ के पास मुख्य रास्ते पर मिट्टी डलवाकर सड़क को ही मंच मानकर कलाकार अपना प्रदर्शन करते है. 

मुंबई में प्रवासियों ने बनाया ट्रस्ट, पैसों के ब्याज से होता है मंचन
बिसाऊ की इस रामलीला को लेकर दावा किया जाता है कि बिना कोई संवाद, बिना कोई मंच के होने वाली मूक रामलीला विश्व में केवल बिसाऊ में ही होती है. यही कारण है कि पिछले बिसाऊ वेलफेयर ट्रस्ट के ट्रस्टी और प्रवासी उद्योगपति कमल पोद्दार ने इस रामलीला को विश्व धरोहर में शामिल करवाने के लिए भी कोशिश शुरू कर दी है. ताकि पूरे देश के लोगों को इस अनूठी और बेमिसाल रामलीला के बारे में पता चले. साथ ही इस रामलीला को आगे भी जीवित रखा जा सके. रामलीला के आयोजन को लेकर प्रवासी लोगों ने मुंबई में एक ट्रस्ट भी बना रखा है. जिसमें जमा पैसों के ब्याज से ही रामलीला का मंचन होता है. साथ ही इसमें प्रवासी महावीर सोती और कमल पोद्दार बड़ा सहयोग हर साल करते है.

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