महाराष्‍ट्र : अस्‍पताल के बाहर 4 घंटे तड़पने के बाद हिरण की मौत, नहीं पहुंचे डॉक्‍टर
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महाराष्‍ट्र : अस्‍पताल के बाहर 4 घंटे तड़पने के बाद हिरण की मौत, नहीं पहुंचे डॉक्‍टर

हिंगोली के शेगाव खोडके गांव के पास कुछ गांंववालों को रास्ते के किनारे हिरण घायल स्थिति में दिखा था. उसे किसी गाडी ने टक्कर मारी थी.

महाराष्‍ट्र : अस्‍पताल के बाहर 4 घंटे तड़पने के बाद हिरण की मौत, नहीं पहुंचे डॉक्‍टर

मुंबई/हिंगोली (गजानन देशमुख) : नरभक्षी बाघिन अवनी को मारने के बाद विवादों में फंसे महाराष्ट्र के वन विभाग के ढुलमुल रवैये की वजह से एक हिरण की जान चली गई. सही वक्त पर इलाज ना मिलने की वजह से हिंगोली में एक हिरण की मौत वन विभाग के वेटेनरी अस्पताल के बाहर प्राण छोड दिए. लगभग चार घंटे से भी जादा हिरण अस्पताल के बाहर तडपता रहा. लेकिन कोई भी वन विभागकर्मी अस्पताल पहुंचा. गांववालों के अनुसार बार बार लगातार फोन करने के बावजूद वनकर्मी नहीं आए, जिसकी वजह से गंभीर रूप से घायल हिरण की मौत हो गई.

हिंगोली के शेगाव खोडके गांव के पास कुछ गांंववालों को रास्ते के किनारे हिरण घायल स्थिति में दिखा था. उसे किसी गाडी ने टक्कर मारी थी. जिसमें वह गंभीर रुप से घायल हो गया था. पैर के हिस्से में फ्रैक्‍चर भी था. गांववालों ने तुरंत हिरण को उठाया और वह उसे लेकर चार किलोमीटर दूर पशुओं के  अस्पताल पहुंचे. लेकिन अस्पताल पर ताला लगा हुआ था.

आमतौर पर शनिवार को अस्पताल खुला रहता है. लेकिन ताला लगा देख गांववालों ने प्राणीमित्रों को बुलाया. घायल हिरण को गेटपर ही रखा गया था. प्राणी मित्रों ने लगातार अस्पताल के डॉक्टर और वनविभाग के अफसरों को फोन करना शुरू कर दिया. लेकिन कोई भी कर्मी चार घंटे से अधिक समय तक अस्पताल नहीं पहुंचा. तब तक तड़प तड़प कर हिरण की मौत हो गई.

लोगों ने बताया कि "अगर सही वक्त पर वनविभाग के जानवरों के डॉक्टर और अन्य स्टाफ आ जाता तो हिरण की जान बच सकती थी. हादसे की वजह से हिरण को अंदरुनी चोटें जादा आई थीं. पैरों में फ्रैक्‍चर हुआ था. जब यहांपर लाया गया तब इलाज मिलता तो शायद यह हिरण बच सकता था. लेकिन वनविभाग के कर्मी वक्त पर नहीं आए और एक मासूम बेजुबान जानवर की जान चली गई. चार घंटे तक वह तडपता रहा.

गांववालों ने बताया कि "हम लगातार फोन कर रहे थे. हमने तो यह भी कह दिया की आप जहां होंगे वहां से लेने के लिए किसी को भेजते है. लेकिन वनविभाग के कर्मी अभी आता हूं, बाद में आता हूं ऐसी ही करते रहे. एक डॉक्टर को फोन किया तो उसने बताया की वह दिवाली के छुट्टी पर है, जो ड्यूटी पर उससे संपर्क किया जाए."  

छह घंटे बाद वनविभाग के कर्मी आए. लेकिन तब तक घायल हिरण की मौत हो चुकी थी. उसका तुरंत पोस्टमार्टम किया गया. शेगाव खोडके के निवासी संजय देशमुख ने कहा "पोस्टमार्टम के लिए जो जल्दबाजी कर रहे थे, वह अगर वक्त पर आते तो एक मासूम जान बच जाती थी. क्या हिरण की जान की कोई किमत नही होती."

अब गांववालों ने अस्पताल के वनविभाग के कर्मीयों के खिलाप जांच की मांग की है. अपना काम करने में लापरवाही बरतने वाले इन लोगों के खिलाफ सख्‍त से सख्‍त कारवाई करने की मांग गांववाले और प्राणीमित्र कर रहे है.

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