कल्याण के पास हरीश्चंद्रगड़ पर अटके थे ट्रेकर्स, बचाई गई 30 ट्रेकर्स की जान
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कल्याण के पास हरीश्चंद्रगड़ पर अटके थे ट्रेकर्स, बचाई गई 30 ट्रेकर्स की जान

औरंगाबाद से 14 ट्रैकर्स का ग्रुप मुंबई से सटे कल्याण स्थित हरीश्चंद्रगड़ पर 24 नवंबर की रात को ही पहुंचा था. 25 नबंवर को मुंबई से और एक ग्रुप उनके साथ यहां आया.

कल्याण के पास हरीश्चंद्रगड़ पर अटके थे ट्रेकर्स, बचाई गई 30 ट्रेकर्स की जान

चंद्रशेखऱ भुयार, कल्याण/मुंबई: औरंगाबाद और मुंबई से कल्याण के हरीश्चंद्रगड़ पर ट्रैकिंग के लिए गए 30 ट्रैकर्स को आखिरकार आठ घंटे से भी ज्यादा की जद्देजेहद के बाद बचाया जा सका. आस पडोस के ट्रैकर्स ग्रुप नें इन सभी को सही सलामत नीचे उतारा. बीती रात से यह सभी ट्रैकर्स हरीश्चंद्रगड़ पर अटके थे. 

औरंगाबाद से 14 ट्रैकर्स का ग्रुप मुंबई से सटे कल्याण स्थित हरीश्चंद्रगड़ पर 24 नवंबर की रात को ही पहुंचा था. 25 नबंवर को मुंबई से और एक ग्रुप उनके साथ यहां आया. कुल मिलाकर 30 ट्रैकर्स 25 की रात को रॅपलिंग के जरिए नीचे उतरने वाले थे. इस दौरान 1800 फुट की उंचाई के पहले 1000 फुट और बाद में 400-400 के अंतराल के साथ सभी लोग नीचे उतरनेवाले थे. लेकिन रॅपलिंग के रास्ते में मधुमक्खी का छत्ता होने की वजह से इनको अपना रूट बदलना पड़ा जिसके चलते यह सभी लोग हरीश्चंद्रगड़ पर ही अटके पडे रहे. 

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रात को किसी एक ग्रुप से मुंबई के एक ट्रैकर्स टीम को फोन किया गया. जिसमें उनके अटके होने की बात बताई गई. ऐसे में रातोरात कल्याण, नाशिक और औरंगाबाद से ट्रैकिंग टीम हरीश्चंंद्रगड़ के पास पहुंची. रेस्क्यू के लिए पहुंचे शिवगर्जना गिर्यारोहण संस्था के ट्रैकर्स नें बताया की बीती रात से ही आसपास के सभी ट्रैकर्स यहां पर आना शुरु हो गए. सुबह होते ही इन लोगों को नीचे लाने के लिए रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू हो गया. सुबह 11 बजे के आसपास पांच लोगों को नीचे उतारा गया. पहले 500 फुट से रॅपलिंग करके उन्हें उतारा गया. 

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इन सभी को नीचे उतारने में स्थानीय आदिवासियों की काफी मदद हुई. बाकी बचे लोगों को रॅपलिंग के जरिए नीचे उतारने के लिए लगभग आगे के पांच घंटे से भी ज्यादा की जद्दोजेहद करनी पडी. औरंगाबाद के ट्रैकर्स ने बताया की मुंबई के किसी ट्रैकर से मधुमक्खियों के कारण रातभर हरिश्चंद्रगड़ पर रुकने की बात होने के बाद कोई भी कम्युनिकेशन नहीं हुआ, जिसके कारण आसपास के ट्रैकर्स को बुलाया गया. हालांकी सभी ट्रैकर्स अपने साथ रहने और खाने का प्रबंध करके आए थे.  रात तो को उतरने का फैसला इसलिए टाला गया क्योंकि वह जोखिम भरा होता. ऐसे में कोई भी कम्युनिकेशन व्यवस्था ना होने की वजह से ट्रैकर्स तक पहुंचना मुश्किल हो गया. 

लगभग साढ़े पांच बजे सभी 30 ट्रैकर्स को बेस कैम्प तक लाया गया और उसके बाद सभी को नजदीक के बेलपाड़ा गांव में ले जाया गया. जहां जाने के लिए उन्हें लगभग तीन घंटे का सफर पैदल तय करना था. 

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