Lock down में मां की नौकरी गई तो बच्चे ने उठाई ये जिम्मेदारी, सुनकर होगी हैरानी
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Lock down में मां की नौकरी गई तो बच्चे ने उठाई ये जिम्मेदारी, सुनकर होगी हैरानी

कोरोना काल में सोनू सूद जैसे कई लोग मानवता की सेवा के लिए मिसाल बन कर सामने आए है. लेकिन बहुत से लोग ऐसे भी है जो दूसरों के दुखड़े को सोशल मीडिया पर शॉर्ट फिल्म की तरह स कर खुद का चैनल को चमका रहे हैं. कौन सच्चा है और कौन झूठा अभी साफ नहीं हुआ है.

फोटो साभार : (ANI)

मुंबई :  कोरोना काल के साइड इफेक्ट खत्म होने का नाम नहीं ले रहे हैं. Lockdown के दौरान पलायन की तस्वीरों ने हम सभी को झकझोर दिया था. लेकिन दुखद बात ये है कि सरकार की कई कोशिशों के बावजूद कोरोना काल में नौकरी गवाने वाले लोगों की हालत में सुधार नहीं आया है.

  1. कोरोना काल के Sideeffect की कहानी
  2. बहन की पढ़ाई के लिए शुरू किया काम
  3. व्यवस्था पर सवाल, हौसलों पर हैरानी
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भिंडी बाजार की कहानी
देश की आर्थिक राजधानी का एक नाबालिग बच्चा अपनी बहन की Online class के लिए चाय की दुकान पर काम करने को मजबूर है. Lockdown में 14 साल के सुभान की मां की नौकरी छूट गई थी लेकिन मुश्किल हालातों के आगे झुकने के बजाए उसने परिवार की वर्तमान जरूरतें पूरी करने के लिए भविष्य दांव पर लगा दिया. कच्ची उम्र से इमानदारी और मेहनत का पाठ सीख चुके सुभान को कोई और काम नहीं मिला तो उसने रेहड़ी पर चाय बेचना शुरू कर दिया.  

कम उम्र में उठा पिता का साया
सुभान के पिता की मृत्यु 12 साल पहले हो गई थी, तब वो सिर्फ दो साल का था. उसकी मां ने मेहनत से परिवार आगे बढ़ाया. सुभान की मां एक स्कूल में बस अटेंडेट की नौकरी करती थीं लेकिन कोरोना काल में दुनिया भर के स्कूल बंद हुए तो लॉकडाउन में उनका वो काम भी छिन गया.

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महानायकों की जरूरत
कोरोना काल में सोनू सूद जैसे कई लोग मानवता की सेवा के लिए मिसाल बन कर सामने आए है. लेकिन बहुत से लोग ऐसे भी है जो दूसरों के दुखड़े को सोशल मीडिया पर शॉर्ट फिल्म की तरह स कर खुद का चैनल को चमका रहे हैं. कौन सच्चा है और कौन झूठा अभी साफ नहीं हुआ है. लेकिन सच्चाई ये है कि सैकड़ो लोग मदद के इंतजार में हैं. उनके पास कोई सरकारी या गैरसरकारी संगठन नहीं पहुंच पाया है.

देश की राजधानी दिल्ली में खाना बनाकर आजीविका चलाने वाले बुजुर्ग दंपत्ति की कहानी सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद कुछ लोग मदद तो कुछ सेल्फी खिंचाने के लिए भी पहुंचे लेकिन उनकी हालत में अभी तक कोई खास सुधार नहीं आया है.

सरकार को भी ऐसा तंत्र विकसित करने की जरूरत है ताकि खेलने कूदने की उम्र में कोई और बच्चा पढ़ाई छोड़कर रोजी रोटी कमाने के लिए मजबूर न हो सके.
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(इनपुट एएनआई से)

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