2013 में ओडिशा में आए भीषण चक्रवाती तूफान फेलिन के कारण ज्यादा जान-माल का नुकसान नहीं हुआ लेकिन मात्र आंधी/बवंडर के कारण इतनी बड़ी तबाही कैसे हुई?
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वैसे तो हर साल इस सीजन में अंधड़/बवंडर आते ही रहते हैं लेकिन इस बार पिछले एक हफ्ते के दौरान उत्तर भारत में चली धूल भरी आंधियों ने भारी तबाही मचाई. इसके चलते पिछले बुधवार(2 मई) को केवल एक दिन के भीतर ही 129 लोगों की मौत हो गई. उसके बाद मौसम विभाग द्वारा फिर से धूल भरी आंधियों की आशंका व्यक्त करने के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय को एडवाइजरी जारी करनी पड़ी. मौसम विभाग ने बताया कि दो मई का अंधड़ तीव्रता के लिहाज से पिछले छह सालों में सबसे भीषण था. इसके साथ ही इस कारण पिछले पांच वर्षों में सबसे ज्यादा मौतें अबकी बार हुईं. इससे पहले 21 अप्रैल, 2015 को बिहार में आए अंधड़ के चलते 65 लोग मारे गए थे. इसके साथ यह सवाल उठ रहा है कि 2013 में ओडिशा में आए भीषण चक्रवाती तूफान फेलिन के कारण ज्यादा जान-माल का नुकसान नहीं हुआ लेकिन मात्र आंधी/बवंडर के कारण इतनी बड़ी तबाही कैसे हुई?
दरअसल इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह बताया जा रहा है कि हर साल इस तरह की मानसून पूर्व गतिविधियां आम बात होती हैं और इसके साथ ही इसमें स्थानीयता का पुट होने के कारण ये एक तरह की लोकल सूचनाएं होती हैं. इसका असर यह होता है कि मास मीडिया भी इसको प्रमुखता से कवर नहीं करता और मौसम विभाग की सूचनाएं इतनी प्रमुखता नहीं पातीं. लिहाजा सूचनाएं तो जारी हुईं लेकिन उनको ज्यादा तवज्जो नहीं दी गई. इस कारण सूचनाओं का प्रवाह लोगों और सरकार तक इस तरह नहीं पहुंचा कि सतर्कता के संबंध में कोई एडवाइजरी जारी की जा सके. इस कारण जान-माल की तबाही का इतना बड़ा मंजर देखने को मिला.
बवंडर/तूफान ने इस कारण लोगों को डराया और मचाई तबाही...
चक्रवात फेलिन (cyclone phailin)
ओडिशा में अक्टूबर, 2013 में सबसे खतरनाक किस्म का चक्रवाती तूफान फेलिन आया था. 1999 में ओडिशा में आए चक्रवात के बाद फेलिन सबसे भयानक ट्रॉपिकल साइक्लोन था. मौसम विभाग ने इसके बारे में चेतावनी जारी की. ओडिशा सरकार समेत पूरे देश में इसके बारे में पहले से ही अलर्ट घोषित हुआ. इसका नतीजा यह हुआ कि भारत ने इसके प्रभाव से लोगों से बचाने के लिए 23 साल के बाद चलाए गए सबसे बड़े कार्यक्रम में करीब साढ़े पांच लाख लोगों को आंध्र प्रदेश और ओडिशा के तटीय इलाकों से हटाकर सुरक्षित जगह पर पहुंचाया. सरकार ने इससे बचाव के लिए पर्याप्त इंतजाम किए. तकरीबन 500 साइक्लोन कैंप बनाए गए. हर कैंप में करीब 1500 लोगों के रहने की व्यवस्था थी. उसके ग्राउंड फ्लोर में पशुओं को भी सुरक्षित रखने का इंतजाम किया गया था. इतने पुख्ता इंतजाम का असर यह हुआ कि जन धन की न्यूनतम हानि हुई.
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अंधड़/तूफान और ट्रॉपिकल साइक्लोन में अंतर
आंधी वातावरण की वह बिगड़ी हुए दशा है जिसमें तेज हवाएं होती हैं. उच्च दबाव के क्षेत्र के केंद्र में कम दबाव की स्थितियां उत्पन्न होने के कारण आंधी की दशाएं उपजती हैं. इसमें धूल, नमी के कारण इनको अंधड़, तूफान जैसी विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया जाता है. धूल भरी आंधी/अंधड़(duststorm) या बवंडर, धूल, मिट्टी और रेत के घने बादलों से भरी ऐसी तेज हवाएं होती हैं जो मुख्य रूप से शुष्क और अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में साल के इन्हीं महीनों में देखने को मिलती हैं. अंधड़ बेतहाशा गर्मी की वजह से उपजते हैं और इसमें बादलों में उपस्थित जल धरती तक पहुंचने से पहले ही वाष्प बनकर उड़ जाता है. इस कारण इसमें उपस्थित धूल शुष्क होती है और तेज हवाएं इनको धरती से 500 मी ऊपर तक ले जाती हैं. इन हवाओं की रफ्तार 100 किमी/घंटे और कुछ मामलों में तो 130किमी/घंटे तक होने के कारण ये भीषण रूप अख्तियार कर लेती हैं और जान-माल के लिहाज से भारी तबाही लाती हैं.
इसके साथ ही जब इन हवाओं की रफ्तार 50 किमी/घंटे के आस-पास होती है और इसमें बिजली जोरदार ढंग से कड़कती है और उपस्थित नमी के कारण बारिश होती है तो इसको ओलावृष्टि/तूफान (Thunderstorm) कहते हैं. केंद्र में कम दबाव के कारण जब चारों ओर चक्रवाती हवाओं की स्थितियां बनती हैं तो उसको ट्रॉपिकल चक्रवात(tropical cyclone) कहा जाता है. दरअसल ये उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में उत्पन्न होते हैं, इसलिए ही इनको ट्रॉपिकल साक्लोन कहा जाता है.