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नई दिल्लीः राष्ट्रीय युवा दिवस के मौके पर कर्नाटक के एक सरकारी स्कूल का दृश्य रुला देने वाला था. इस स्कूल में एक अध्यापक की विदाई की दास्तान सुन आपकी आंखों में भी आंसू आ जाएंगे. इस अध्यापक का दूसरे स्कूल में ट्रांसफर हो गया और उनके छात्रों ने जिस तरह रो-रो कर उन्हें विदाई दी, इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि हमारे देश में कैसे छोटे-छोटे शहरों और गांवों में बड़े-बड़े नायक छिपे हुए हैं, जिनकी तरफ़ कोई ध्यान नहीं देता.
ये ख़बर कर्नाटक के बीदर ज़िले से आई है. और इस टीचर का नाम है, बिरप्पा कडील-मट्टी. वो पिछले 14 वर्षों से इस सरकारी स्कूल में बच्चों को अंग्रेज़ी विषय की पढ़ाई करा रहे थे. लेकिन पिछले दिनों उनका ट्रांसफर बीदर ज़िले से दूर कोप्पल के एक दूसरे सरकारी स्कूल में हो गया. और इसके बाद जब स्कूल के लोगों ने उन्हें विदाई देने के लिए एक Farewell Party रखी तो इसमें जो कुछ भी हुआ, वो इन बच्चों और इस अध्यापक के लिए अभूतपूर्व था.
आज कल के ज़माने में किसी अध्यापक को बच्चों से ऐसी विदाई मिलना असाधारण बात है. ये एक अध्यापक पर निर्भर करता है कि वो अपने छात्रों के लिए गुरु बनना चाहता है या टीचर बनना चाहता है. आजकल कोचिंग सेंटर्स में गुरु नहीं होते, टीचर होते हैं. वो कड़वी बातें नहीं कहते. सख्ती भी नहीं दिखाते. और शायद इसीलिए ऐसे टीचर्स को आज कल ज्यादा महत्व नहीं मिलता है. लेकिन एक गुरु की ताक़त क्या होती है, वो आप इस वाकये से समझ सकते हैं
भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य की परम्परा का उल्लेख प्राचीन काल से मिलता है. और हिन्दू धर्म में भी गुरु को ईश्वर के समान माना गया है, जो अपने शिष्यों में सिर्फ़ ज्ञान का प्रचार प्रसार नहीं करता, बल्कि उनमें नैतिक मूल्यों और संस्कारों को भी विकसित करता है. और गुरु मंत्र में भी यही कहा गया है कि..गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर हैं. 15वीं सदी के महान कवि संत कबीर दास ने भी अपने एक दोहे में गुरु के महत्व का उल्लेख किया है. ये दोहा है.....
'गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, का के लागूं पाय'
'बलिहारी गुरु आपने, गोबिंद दियो बताय'
इसका मतलब है कि गुरु और गोविन्द एक साथ खड़े हों तो किसे प्रणाम करना चाहिए, गुरु को या गोबिन्द को?..कबीर कहते हैं कि ऐसी स्थिति में गुरु के चरणों में शीश झुकाना उत्तम है, क्योंकि उनकी कृपा से ही गोबिंद के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है. गोबिन्द का अर्थ यहां भगवान से है.
संत कबीर दास ने गुरु-शिष्य के संबंध में भी एक दोहा लिखा है....
'गुरु कुम्हार.. शिष कुम्भ है... गढ़ि गढ़ि.. काढ़ै खोट'
'अन्तर हाथ सहार दै.. बाहर बाहै चोट'
इसका मतलब है.. गुरु एक कुम्हार के समान होता है और शिष्य एक घड़े के समान होता है. जिस प्रकार कुम्हार कच्चे घड़े के अन्दर हाथ डालकर, उसे हल्की-हल्की चोट मारते हुए उसे आकर्षक रूप देता है, उसी प्रकार एक गुरु अपने शिष्य को एक सम्पूर्ण व्यक्तित्व में तब्दील करता है.
ये भी विडम्बना है कि जिन पश्चिमी देशों को ज्यादा सभ्य, सजग और कर्तव्यनिष्ठ माना जाता है, उन देशों में गुरु-शिष्य की ऐसी परम्परा है ही नहीं. वहां स्कूलों और कॉलेजों में शिक्षक और गुरु नहीं होते. बल्कि उनकी जगह Coaches होते हैं, जिनके लिए बच्चों को पढ़ाना एक प्रोफेशन से ज्यादा कुछ नहीं है. और इसे आप एक उदाहरण से भी समझ सकते हैं.
अमेरिका के Chicago में सैकड़ों छात्रों ने फीस बढ़ाने के विरोध में वहां की 17 बड़ी Universities और प्रोफेसर्स के ख़िलाफ़ कोर्ट में मुकदमा कर दिया है. यानी एक तरफ़ तो अमेरिका के वो छात्र हैं, जो फीस बढ़ाने पर अपने टीचर्स को कोर्ट में ले जाते हैं. और दूसरी तरफ़ भारत के ये छात्र हैं, जो अपने टीचर का ट्रांसफर होने पर उनके चरण स्पर्श करके उनका आशीर्वाद लेते हैं.
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