सनी देओल का 'तारीख पे तारीख' डायलॉग हुआ सच, 2 रेलकर्मी चोरी के मामले में 36 साल बाद हुए बरी
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सनी देओल का 'तारीख पे तारीख' डायलॉग हुआ सच, 2 रेलकर्मी चोरी के मामले में 36 साल बाद हुए बरी

Tarikh Pe Tarikh: सनी देओल की फिल्म 'दामिनी' में डायलॉग था, 'तारीख पे तारीख' जो अब चोरी के दो आरोपियों के मामले में सच होता दिखा है. इन आरोपियों को 36 साल बाद बरी किया गया. 

फोटो साभार: वीडियोग्रैब

Tarikh Pe Tarikh: कई बार बॉलीवुड के डायलॉग लोगों को असली जिंदगी से कनेक्टेड लगते हैं. ऐसे में सनी देओल का फेमस डायलॉग 'तारीख पे तारीख' भी दो पूर्व रेलवे कर्मचारियों को लेकर सच लग रहा है. रेल संपत्ति की मामूली चोरी के आरोप में पश्चिम रेलवे के दो पूर्व कर्मचारी 36 साल बाद आखिरकार निर्दोष साबित हुए और आरोप से बरी हो गए. यह न्याय में देरी का एक चौंकाने वाला उदाहरण है.

जन्मदिन पर मिला बड़ा गिफ्ट

वकील महेंद्र डी. जैन ने कहा कि ये दोनों कर्मचारी मुंबई में जोगेश्वरी के जावर बच्चूभाई मर्चेट और उत्तर प्रदेश के गजधर प्रसाद वर्मा हैं. मुंबई सेंट्रल के 36वें कोर्ट के मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट जेसी ढेंगले ने 30 मार्च को फैसला सुनाते हुए दोनों को बरी कर दिया. यह मर्चेट के लिए एक लंबे समय से प्रतीक्षित जन्मदिन का गिफ्ट भी बन गया. वह 30 मार्च 1947 को पैदा हुआ था.

3 मार्च 1986 को हुए थे गिरफ्तार 

उन्हें पश्चिम रेलवे के महालक्ष्मी डिपो से कुछ तांबे के केबल और लकड़ी के तख्ते चोरी करने के आरोप में तीन अन्य - अरुण एफ. पारिख, सचिन पी. पारिख और रमेश रमाकांत कदले के साथ 3 मार्च 1986 को गिरफ्तार किया गया था. उनके वकील ने कहा कि उन्हें रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) द्वारा गिरफ्तार किया गया था और रेलवे संपत्ति (गैरकानूनी कब्जा) अधिनियम, 1966 के तहत संबंधित धाराओं के तहत दोषी साबित होने पर अधिकतम 5 साल की सजा का प्रावधान किया गया था.

एक मामले में बरी, दूसरे में जमानत 

मुकदमे के शुरुआती चरण में दो पारिखों को दोषी ठहराया गया और उन्हें एक महीने की जेल की सजा सुनाई गई, जबकि कदले को मामले से बरी कर दिया गया. मर्चेट मुख्य ट्रैक्शन फोरमैन थे और वर्मा ट्रक ड्राइवर थे. दोनों ने गिरफ्तारी के बाद जमानत हासिल कर ली थी.

सबूतों के आभाव में हुए बरी 

फैसले में देरी के कारणों का हवाला देते हुए जैन ने कहा कि कुछ आरोपियों ने रिहाई के लिए आवेदन किया था और सिर्फ एक को रिहा किया गया. इसके अलावा अन्य कुछ बड़े व छोटे पहलुओं के कारण स्थगन और 'तारीख पे तारीख' के साथ कानूनी चक्कर चलता रहा. आखिरकार 36 साल बाद सबूतों के अभाव में दोनों को बरी कर दिया गया.

आरोप के दाग के साथ जीते रहे

इस समय दोनों वृद्ध पूर्व-डब्ल्यूआर कर्मचारी - मर्चेट (75) और वर्मा (72) मुंबई में रह रहे हैं. वे साढ़े तीन दशक तक आरोप के दाग के साथ जीते रहे. जैन ने बताया, 'यह वास्तव में दुखद बात है कि मामला 36 वर्षो के बाद अपने तार्किक निष्कर्ष पर पहुंचा और इस बात की कठोर वास्तविकता को दर्शाता है कि कैसे लंबित मामले निर्दोष लोगों को प्रभावित कर सकते हैं, उनके जीवन को बर्बाद कर सकते हैं, उनके परिवार को तोड़ सकते हैं और एक 'आरोपी' होने के सामाजिक आघात को झेल सकते हैं.'

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दोनों रहते हैं बीमार 

दोनों का स्वास्थ्य खराब रहता है. इतने वर्षो के बाद बरी किए जाने के बावजूद कानून से इनका पीछा छूटता नहीं दिख रहा है, क्योंकि अभियोजन पक्ष मजिस्ट्रेट के फैसले के खिलाफ 6 महीने के भीतर अपील दायर करने की तैयारी में है. जैन का कहना है कि यह छोटा सा मामला होने के बावजूद शायद हाल के दिनों में सबसे लंबे समय तक चले मुकदमों में से एक था. (इनपुट: IANS)

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