तीन तलाक़ पर चल रही बहस के दौरान उच्चतम न्यायालय ने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) के वकील कपिल सिब्बल को सुझाव दिया कि क्या महिलाओं को निकाह के वक्त ये विकल्प दिया जा सकता है..?
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नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने बुधवार (17 मई) को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) से पूछा कि क्या महिलाओं को ‘निकाहनामा’ के समय ‘तीन तलाक’ को ‘ना’ कहने का विकल्प दिया जा सकता है. प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने यह भी कहा कि क्या सभी ‘काजियों’ से निकाह के समय इस शर्त को शामिल करने के लिए कहा जा सकता है. पीठ में न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन, न्यायमूर्ति यूयू ललित और न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर भी शामिल हैं.
CJI Khehar asks Kapil Sibal(lawyer for AIMPLB) that is it possible to give bride the right that she will not accept instant triple talaq?
— ANI (@ANI_news) May 17, 2017
न्यायालय ने पूछा, ‘क्या यह संभव है कि मुस्लिम महिलाओं को निकाहनामा के समय ‘तीन तलाक’ को ‘ना’ कहने का विकल्प दे दिया जाए?’ पीठ ने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) की ओर से पैरवी कर रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से जवाब मांगते हुए कहा, ‘हमारी तरफ से कुछ भी निष्कर्ष ना निकालें.’ तीन तलाक, बहुविवाह और ‘निकाह हलाला’ को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर पीठ के समक्ष चल रही सुनवाई का आज पांचवां दिन है. पीठ में हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी सहित विभिन्न धार्मिक समुदायों के सदस्य शामिल हैं.
इससे पहले तीन तलाक के मुद्दे की तुलना भगवान राम के अयोध्या में जन्म होने की पौराणिक मान्यता से करते हुए ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने मंगलवार (16 मई) को उच्चतम न्यायालय से कहा था कि ये आस्था का विषय है और संवैधानिक नैतिकता के आधार पर इसकी पड़ताल नहीं की जा सकती.
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एआईएमपीएलबी की ओर से पेश पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा, ‘अगर मेरी आस्था इस बात में है कि भगवान राम का जन्म अयोध्या में हुआ था तो यह आस्था का विषय है और इसमें संवैधानिक नैतिकता का कोई प्रश्न नहीं है और कानून की अदालत इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती.’ उन्होंने इस आस्था की तुलना तीन तलाक के मुद्दे से की.
सिब्बल ने प्रधान न्यायाधीश जे एस खेहर की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ से कहा, ‘तीन तलाक की प्रथा 637 ईसवी से है. इसे गैर-इस्लामी बताने वाले हम कौन होते हैं. मुस्लिम बीते 1,400 वर्षों से इसका पालन करते आ रहे हैं. यह आस्था का मामला है. इसलिए इसमें संवैधानिक नैतिकता और समानता का कोई सवाल नहीं उठता.’
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सिब्बल तीन तलाक के विरोध में पिछले दो दिन से रखी जा रही दलीलों पर जवाबी तर्क पेश कर रहे थे. सरकार ने भी कहा है कि अगर तीन तलाक समेत सभी तरह के तलाक की प्रथा को समाप्त किया जाता है तो मुस्लिम समुदाय में निकाह और तलाक के नियमन के लिए नया कानून लाया जाएगा.