सुप्रीम कोर्ट ने व्यभिचार कानून की संवैधानिक वैधता की जांच के लिये सुनवाई शुरू की
Advertisement

सुप्रीम कोर्ट ने व्यभिचार कानून की संवैधानिक वैधता की जांच के लिये सुनवाई शुरू की

इससे पहले केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफ़नामा दायर कर याचिका को खारिज करने की मांग की थी. 

फाइल फोटो

नई दिल्लीः व्याभिचार को लेकर भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ सुनवाई शुरू हो चुकी है. याचिका में व्यभिचार (Adultery) से जुड़े प्रावधान को इस आधार पर निरस्त करने की मांग की गई है कि विवाहित महिला के साथ विवाहेतर यौन संबंध रखने के लिये सिर्फ पुरुषों को दंडित किया जाता है. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि वह महिलाओं के लिये भी इसे अपराध बनाने के लिये कानून को नहीं छुएगी.

पीठ ने कहा, ‘‘हम इस बात की जांच करेंगे कि क्या अनुच्छेद 14 (विधि के समक्ष समानता) के आधार पर भारतीय दंड संहिता की धारा 497 अपराध की श्रेणी में बनी रहनी चाहिये या नहीं.’’ संविधान पीठ में न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, न्यायमूर्ति ए एम खानविल्कर और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा भी शामिल हैं.

इससे पहले केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफ़नामा दायर कर याचिका को खारिज करने की मांग की थी. केंद्र ने कहा कि ये कानून महिलाओं को सरक्षंण देता है , इस मुद्दे पर कानून आयोग द्वारा विचार-विमर्श किया जा रहा है, धारा 497 "विवाह संस्था की रक्षा, सुरक्षा और सरंक्षण करती है , 497 को रद्द करना अंतर्निहित भारतीय आचारों के लिए हानिकारक साबित होगा जो संस्था और विवाह की पवित्रता को सर्वोच्च महत्व देता है.
दरअसल IPC 497 के तहत व्याभिचार यानी Adultary के मामलों में क्या महिला के खिलाफ भी हो सकती कानूनी कार्रवाई ?

जनवरी में इस मामले की सुनवाई को पांच जजों की संविधान पीठ को भेज दिया गया था.कोर्ट ने कहा कि सामाजिक प्रगति, लैंगिक समानता लैंगिक संवेदनशीलता को देखते हुए पहले के सुप्रीम कोर्ट के फैंसलों पर फिर से विचार करना होगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा 1954 में चार जजों की बेंच और 1985 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सहमत नहीं जिसमें IPC 497 महिलाओं से भेदभाव नहीं करता.

सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने IPC के सेक्शन 497 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था. कोर्ट ने कहा जब संविधान महिला और पुरूष दोनों को बराबर मानता है तो आपराधिक केसों में ये अलग क्यों ? कोर्ट ने कहा कि जीवन के हर तौर तरीकों में महिलाओं को समान माना गया है तो इस मामले में अलग से बर्ताव क्यों ? जब अपराध को महिला और पुरुष दोनों की सहमति से किया गया हो तो महिला को सरंक्षण क्यों दिया गया ?

Adultery - आईपीसी की धारा 497 की वैधानिकता पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ मे बुधवार से सुनवाई शुरू हो गई है. सुप्रीम कोर्ट में याचिका में मांग की गई है कि इस धारा को खारिज किया जाए कयोकिं जब किसी दूसरे की पत्नी से शारीरिक संबंध बनाने पर पुरुष Adultery का अपराधी माना जाता है तो फिर किसी शादीशुदा पुरूष से शारीरिक संबंध बनाने पर विवाहित महिला को भी इस जुर्म का देषी क्यों न माना जाए, मौजूदा कानून में महिलाओं के लिए कोई अपराध नहीं है, महिलाएं इस कानून के दायरे से बाहर हैं

Trending news