Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने मृत्युदंड के लिए फांसी की सजा की जगह जहरीला इंजेक्शन जैसे वैकल्पिक तरीकों पर विचार करने की मांग वाली जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की अनिच्छा पर कड़ी टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा कि सरकार समय के साथ बदलाव के लिए तैयार नहीं दिख रही है.
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Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने मृत्युदंड के लिए फांसी की सजा की जगह जहरीला इंजेक्शन जैसे वैकल्पिक तरीकों पर विचार करने की मांग वाली जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की अनिच्छा पर कड़ी टिप्पणी की. जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने मौखिक रूप से कहा कि सरकार समय के साथ बदलाव के लिए तैयार नहीं दिख रही है. मामले की अगली सुनवाई 11 नवंबर को होगी.
सुनवाई के दौरान सुझाव दिया गया कि दोषी को फांसी या जहरीला इंजेक्शन में से किसी एक को चुनने का विकल्प दिया जा सकता है. हालांकि, केंद्र सरकार की ओर से वकील सोनिया माथुर ने दलील दी कि ऐसा करना व्यवहारिक रूप से संभव नहीं है और यह मामला नीतिगत निर्णय से जुड़ा है. केंद्र ने अपने हलफनामे में वैकल्पिक तरीकों को अपनाने से इनकार किया, जिस पर कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा कि यह एक पुरानी प्रक्रिया है और समय के साथ चीजें बदल गई हैं.
याचिका में फांसी को बताया गया है पीड़ादाय
याचिका वकील ऋषि मल्होत्रा ने दायर की है, जिसमें फांसी को अत्यधिक पीड़ादायक, अमानवीय और क्रूर बताते हुए आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 354(5) को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई. याचिका में तर्क दिया गया कि फांसी की प्रक्रिया में दोषी की मृत्यु घोषित होने में लगभग 40 मिनट लगते हैं, जबकि जहरीला इंजेक्शन या शूटिंग जैसे तरीकों से यह प्रक्रिया 5 मिनट में पूरी हो सकती है. याचिका में यह भी मांग की गई कि सम्मानजनक मृत्यु का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता प्राप्त हो. याचिका में संयुक्त राष्ट्र के उस प्रस्ताव का भी हवाला दिया गया, जिसमें कहा गया है कि मृत्युदंड को यथासंभव कम पीड़ा पहुंचाने वाले तरीके से लागू करना चाहिए. याचिकाकर्ता ने जहरीला इंजेक्शन, शूटिंग, इलेक्ट्रोक्यूशन या गैस चैंबर जैसे विकल्पों का सुझाव दिया, जो दोषी की मृत्यु को कम दर्दनाक और त्वरित बना सकते हैं. हालांकि, केंद्र सरकार के हलफनामे में कहा गया कि ऐसा करना व्यवहारिक रूप से संभव नहीं है.