पूर्व सांसदों और विधायकों के लिए SC से आई खुशखबरी, जीवनभर मिलती रहेगी पेंशन
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पूर्व सांसदों और विधायकों के लिए SC से आई खुशखबरी, जीवनभर मिलती रहेगी पेंशन

पूर्व सांसदों और पूर्व विधायकों को मिलने वाली आजीवन पेंशन के खिलाफ दायर याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है. कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि पेंशन दिए जाने की प्रक्रिया जारी रहेगी.

पिछले साल 22 मार्च को दायर हुई थी याचिका (फाइल फोटो)

नई दिल्ली: पूर्व सांसदों और पूर्व विधायकों को मिलने वाली आजीवन पेंशन के खिलाफ दायर याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है. कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि पेंशन दिए जाने की प्रक्रिया जारी रहेगी. जस्टिस जे चेमलेश्वर और जस्टिस संजय किशन कौल की बेंच ने इस केस पर फैसला सुनाया. फैसले से पहले सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि दुनिया में किसी भी लोकतंत्र में ऐसा नहीं होता कि कोर्ट नीतिगत मुद्दों पर फैसला दे और हम ये मानते हैं कि ये आदर्श हालात नहीं है, लेकिन कोर्ट ऐसे फैसले नहीं कर सकता है.

  1. सांसदों की पेंशन रोकने की याचिका कोर्ट में खारिज
  2. SC ने कहा, जारी रहेगी आजीवन पेंशन की व्यवस्था
  3. आजीवन पेंशन को रोकने की एनजीओ ने की थी मांग

आपको बता दें कि एनजीओ लोक पहरी की ओर से दायर याचिका में कहा गया था कि 82 फीसदी सांसद करोड़पति हैं, इसलिए उनको पेंशन और अन्य सुविधाओं की जरूरत नहीं है. उन्होंने आजीवन पेंशन को आर्टिकल 14 (समानता का अधिकार) के खिलाफ बताया था. याचिका में सांसदों द्वारा खुद ही अपना वेतन और भत्ते निर्धारित करने सहित अनेक मुद्दे भी उठाए गए थे.

पिछले साल 22 मार्च को दाखिला याचिका को मंजूर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार और चुनाव आयोग से इस मुद्दे पर जवाब मांगा था. लोकसभा और राज्यसभा के प्रधान सचिव को भी नोटिस जारी किए गए थे.

सरकार ने दी थी ये दलील
कोर्ट को जवाब देते हुए सरकार की ओर से कहा गया था कि पूर्व सांसदों को पेंशन और दूसरे लाभ का हकदार बनाना न्यायोचित है क्योंकि संसद सदस्य के रूप में कार्यकाल पूरा होने के बाद भी उनकी गरिमा बनाए रखनी होगी. पीठ के समक्ष अटार्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने सरकार का पक्ष रखते हुए कहा था कि, ‘‘संसद कानून बनाने वाली संस्था है. संसद को यह सुनिश्चित करना है कि जहां तक सांसदों का संबंध है वे प्रभावी तरीके से काम कर सकें. सांसदों को हर पांच साल में चुनाव में जाना पड़ता है और दौरे करने पड़ते हैं. अत: उन्हें पेशन देना न्यायोचित है.’’

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