राफेल प्रकरण: SC ने मंगलवार की सुनवाई टालने की पक्षकारों को पत्र देने की दी अनुमति
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राफेल प्रकरण: SC ने मंगलवार की सुनवाई टालने की पक्षकारों को पत्र देने की दी अनुमति

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ के समक्ष केन्द्र सरकार के वकील ने इस मामले का उल्लेख करते हुये वितरित करने की अनुमति मांगी.

केन्द्र का तर्क था कि तीन दस्तावेज अनधिकृत तरीके से रक्षा मंत्रालय से निकाले गये हैं

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने राफेल मामले में पुनर्विचार याचिकाओं पर मंगलवार को होने वाली सुनवाई स्थगित करने के बारे में केन्द्र को संबंधित पक्षकारों में पत्र वितरित करने की सोमवार को अनुमति दे दी. 

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ के समक्ष केन्द्र सरकार के वकील ने इस मामले का उल्लेख करते हुए वितरित करने की अनुमति मांगी. पीठ ने केन्द्र को पुनर्विचार याचिका दायर करने वाले याचिकाकर्ताओं सहित सभी पक्षकारों में इसे वितरित करने की अनुमति प्रदान कर दी.

 

पूर्व केन्द्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा और अरूण शौरी तथा अधिवक्ता प्रशांत भूषण के अलावा एक अन्य अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा ने राफेल सौदे के बारे में शीर्ष अदालत के 14 दिसंबर, 2018 के फैसले पर पुनर्विचार याचिकायें दायर कर रखी हैं. शीर्ष अदालत ने इस फैसले में फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने के सौदे को चुनौती देने वाली सारी याचिकायें खारिज कर दी थीं.

शीर्ष अदालत ने 10 अप्रैल को इस सौदे से संबंधित लीक हुये कुछ दस्तावेजों पर आधारित करने वाली अर्जियां स्वीकार कर लीं पुनर्विचार याचिका पर केन्द्र की प्रारंभिक आपत्तियों को अस्वीकार कर दिया जिससे केन्द्र को झटका लगा. केन्द्र ने इन दस्तावेजों पर विशेषाधिकार का दावा किया था. 

केन्द्र का तर्क था कि ये तीन दस्तावेज अनधिकृत तरीके से रक्षा मंत्रालय से निकाले गये हैं और याचिकाकर्ताओं ने 14 दिसंबर, 2018 के शीर्ष अदालत के फैसले के खिलाफ अपनी पुनर्विचार याचिकाओं के समर्थन में इनका इस्तेमाल किया है.

शीर्ष अदालत ने कहा था कि ये दस्तावेज ‘‘सार्वजनिक’’ हैं और एक प्रमुख समाचार पत्र द्वारा इनका प्रकाशन संविधान में प्रदत्त बोलने की आजादी के सांविधानिक अधिकार के अनुरूप है. 

शीर्ष अदालत ने यह भी कहा था कि संसद द्वारा बनाया गया ऐसा कोई भी कानून उसके संज्ञान में नहीं लगाया गया है जिसमे संविधान के अनुच्छेद 19(2) में उल्लिखित किसी भी आधार पर ऐसे किसी दस्तावेज का प्रकाशन विशेष रूप से प्रतिबंधित किया गया हो.

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