कांचा इलैया की किताब पर बैन से SC का इनकार, कहा, 'हर लेखक को बोलने का मौलिक अधिकार है'
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कांचा इलैया की किताब पर बैन से SC का इनकार, कहा, 'हर लेखक को बोलने का मौलिक अधिकार है'

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि किताब को प्रतिबंधित करने के किसी भी आग्रह की कड़ी समीक्षा होगी क्योंकि ‘‘हर लेखक को अपने विचार खुलकर व्यक्त करने का मौलिक अधिकार है’’और किसी लेखक के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को खत्म करने को हल्के तौर पर नहीं लिया जाना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘‘हम तथ्यों को विस्तार से नहीं बताना चाहते. यह कहना पर्याप्त है कि जब कोई लेखक किताब लिखता है तो यह उसके अभिव्यक्ति का अधिकार है.' (FILE)

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने दलित लेखक और बुद्धिजीवी कांचा इलैया की विवादास्पद किताब सामाजिक स्मगलुरू कोमाटोल्लु (वैश्य सामाजिक तस्कर हैं) पर प्रतिबंध लगाने से इनकार कर दिया और कहा कि हर लेखक को विचार व्यक्त करने का मौलिक अधिकार है. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर तथा डी वाई चंद्रचूड़ ने एक वकील की जनहित याचिका को खारिज कर दिया जिन्होंने किताब पर प्रतिबंध लगाने के लिए सरकार को निर्देश देने की मांग की थी.

  1. सुप्रीम कोर्ट का कांचा इलैया की किताब पर बैन से इनकार. 
  2. SC ने कहा कि किताब को प्रतिबंधित करने के किसी भी आग्रह की कड़ी समीक्षा होगी.
  3. SC ने कहा   कोई लेखक किताब लिखता है तो यह उसके अभिव्यक्ति का अधिकार है.

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि किताब को प्रतिबंधित करने के किसी भी आग्रह की कड़ी समीक्षा होगी क्योंकि ‘‘हर लेखक को अपने विचार खुलकर व्यक्त करने का मौलिक अधिकार है’’और किसी लेखक के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को खत्म करने को हल्के तौर पर नहीं लिया जाना चाहिए.

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पीठ ने कहा, ‘‘हम तथ्यों को विस्तार से नहीं बताना चाहते. यह कहना पर्याप्त है कि जब कोई लेखक किताब लिखता है तो यह उसके अभिव्यक्ति का अधिकार है. हमारा मानना है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत यह उचित नहीं है कि यह अदालत किताब को प्रतिबंधित करे.’’  इसने कहा, ‘‘उक्त अधिकार की शुचिता को ध्यान में रखकर और यह भी ध्यान रखते हुए कि इस अदालत ने इसे उच्च पायदान पर रखा है, हम याचिकाकर्ता के आग्रह को ठुकराते हैं.’’ 

वकील के वी वीरंजनायेलु की याचिका पर अदालत ने यह फैसला सुनाया जो आर्य वैश्य अधिकारी पेशेवर संगठन के सदस्य भी हैं. उनका आरोप है कि लेखक ने अपनी किताब में कुछ जातियों के खिलाफ ‘‘आधारहीन’’ आरोप लगाए हैं और समाज को जाति के आधार पर बांटने का प्रयास किया है.

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