फ्री वाले चुनावी वायदों पर कार्रवाई करने का मामला, SC ने केंद्र और EC से मांगा जवाब
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फ्री वाले चुनावी वायदों पर कार्रवाई करने का मामला, SC ने केंद्र और EC से मांगा जवाब

Free scheme promises in Elections: सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में सरकार और चुनाव आयोग (EC) को पार्टी बनाया गया था. याचिका में कहा गया था कि राजनीतिक दलों के फ्री स्कीम वाले वादे वोटरों को लुभाने जैसे होते हैं. ऐसा करने वाली पार्टियों की मान्यता रद्द होनी चाहिए.

फाइल फोटो

नई दिल्ली: चुनाव से पहले वोटरों को लुभाने के लिए मुफ्त उपहार बांटने या फ्री वाली स्‍कीम का वादा (Free scheme promises) करने वाले राजनीतिक दलों की मान्यता रद्द करने के मामले पर आज सुप्रीम कोर्ट (SC) में सुनवाई हुई.

  1. फ्री गिफ्ट देना और स्कीम का ऐलान स्वतंत्र-निष्पक्ष चुनाव में बाधक
  2. राजनीतिक पार्टियों द्वारा ऐसा किया जाना वोटरों को लुभाने के जैसा
  3. ऐसा करने वाले दलों की मान्यता रद्द करने की मांग पर SC का नोटिस

सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया नोटिस

इस याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग (EC) को नोटिस जारी किया है. अर्जी में याचिकाकर्ता ने कहा था कि राजनीतिक पार्टियों द्वारा सरकारी फंड से चुनाव से पहले वोटरों को उपहार देने का वादा करने या उपहार देने का मामला स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव को प्रभावित करता है.

सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों के मुफ्त उपहार देने से वादे पर चिंता जताई है. CJI एन वी रमना ने कहा कि यह एक गंभीर मुद्दा है, इसमें कोई संदेह नहीं है. मुफ्त बजट नियमित बजट से परे जा रहा है. कई बार सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि यह एक समान खेल का मैदान नहीं है. पार्टियां चुनाव जीतने के लिए और अधिक वादे करती हैं. सीमित दायरे में हमने EC को दिशानिर्देश तैयार करने का निर्देश दिया था, हमारे निर्देशों के बाद उन्होंने केवल एक बैठक की. उन्होंने राजनीतिक दलों से विचार मांगे और उसके बाद मुझे नहीं पता कि क्या हुआ.

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केंद्र और EC को बनाया था पार्टी

सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने अर्जी दाखिल कर केंद्र सरकार और भारतीय चुनाव आयोग को प्रतिवादी बनाते हुए कहा था कि पब्लिक फंड से चुनाव से पहले वोटरों को लुभाने के लिए मुफ्त उपहार देने का वादा करने या मुफ्त उपहार बांटना वोटरों को प्रभावित करने और लुभाने का प्रयास है. इससे चुनाव प्रक्रिया प्रदूषित होती है.

याचिका में दिया ये उदाहरण

इस याचिका में उदाहरण देते हुए कहा गया है कि अगर AAP पार्टी पंजाब की सत्ता में आती है तो उसे राजनीतिक वादों को पूरा करने के लिए हर महीने 12,000 करोड़ की जरूरत होगी. इसी तरह अकाली दल के सत्ता में आने पर प्रति माह 25,000 करोड़ रुपए और कांग्रेस के सत्ता में आने पर 30,000 करोड़ रुपए की जरूरत होगी, जबकि पूरे पंजाब का जीएसटी संग्रह मात्र 1400 करोड़ रुपए है. याचिका में कहा गया है कि वास्तव में कर्ज चुकाने के बाद पंजाब सरकार वेतन-पेंशन भी नहीं दे पा रही है तो वह 'उपहार' कैसे देगी?

याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने कहा था कि वह समय दूर नहीं है जब एक राजनीतिक दल कहेगा कि हम घर आकर आपके  लिए खाना बनाएंगे और दूसरा यह कहेगा कि  हम न केवल खाना बनाएंगे, बल्कि आपको खिलाएंगे. सभी दल लोकलुभावन वादों के जरिए दूसरे दलों से आगे निकलने की जुगत में है.

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