Common Man not Has Full Faith In Judiciary: आइए जानते हैं कि किस सुप्रीम कोर्ट के जज ने कहा कि आम आदमी को न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है, यह कहना पूरी तरह सही नहीं है. जानें पूरी खबर.
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Supreme Court Justice AS Oka: सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अभय एस ओका ने अपने एक बयान में भारतीय न्यायपालिका और न्याय व्यवस्था पर खुलकर बात की है. उन्होंने बताया कि देश में कितने केस पेंडिंग हैं और न्यायपालिका की वर्किंग कैसी है? उन्होंने यह भी बताया कि लोगों को भारतीय न्यायपालिका पर कितना भरोसा है? सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (एससीएओआरए) द्वारा आयोजित 'भारतीय संविधान के 75 वर्ष पूरे होने का जश्न' नामक कार्यक्रम में जज ओका ने अपनी खुलकर कई मामलों पर बयान दिया. न्यायमूर्ति ओका ने इस कार्यक्रम में विभिन्न अदालतों में लंबित मामलों की बढ़ती संख्या पर बात की और उन्होंने सवाल किया कि क्या यह दावा किया जा सकता है कि न्याय प्रदान करने वाली प्रणाली ने आम लोगों की उम्मीदों को पूरा किया है.
देश में कितने करोड़ मामले लंबित?
लंबित मामलों का जिक्र करते हुए न्यायमूर्ति ओका ने कहा कि उनका व्यक्तिगत विचार है कि यह पूरी तरह से सही बयान नहीं हो सकता कि आम आदमी को न्यायपालिका की संस्था पर बहुत भरोसा है. उन्होंने कहा कि देश भर की जिला अदालतों में 4.50 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं.
कानूनी बिरादरी को अपनी खामिया सुधारनी होगी
उन्होंने कहा कि जब तक कानूनी बिरादरी अपनी खामियों और प्रणाली की कमियों को स्वीकार नहीं करेगी, तब तक सुधार की कोई संभावना नहीं है. उन्होंने कहा कि इस मामले में कारण अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन लंबित मामलों की संख्या बहुत अधिक है. इसलिए न्यायपालिका की आलोचना करने की गुंजाइश है और हमें उस आलोचना को बहुत रचनात्मक तरीके से लेना चाहिए.
सीजेआई संजीव खन्ना ने न्यायपालिका पर क्या बोला?
वहीं इस मौके पर सीजेआई संजीव खन्ना ने कहा कि न्यायपालिका को जो बात विशिष्ट बनाती है, वह है लोगों के साथ हमारा सीधा जुड़ाव...लोगों के लिए सबसे आसान पहुंच तीनों संस्थाओं में से किसी एक में न्यायपालिका तक है. उन्होंने कहा कि यह न्यायपालिका ही है, जहां कोई भी व्यक्ति अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है और स्पष्टीकरण मांग सकता है, यहां तक कि नागरिक सरकार के खिलाफ और कानून की संवैधानिक शक्तियों को चुनौती देते हुए अदालतों का दरवाजा खटखटा सकते हैं. उन्होंने कहा, ‘‘आप संवैधानिक अधिकारों, वैधानिक अधिकारों के क्रियान्वयन की मांग कर सकते हैं, और किसी भी अदालत में जाना, वकील से संपर्क करना, व्यक्तिगत रूप से बहस करना बहुत आसान है. इसका मतलब है कि हम ही हैं जो सीधे नागरिकों के साथ जुड़ रहे हैं.’’ इनपुट भाषा से भी