नई दिल्ली: देश में जल्द ही एक देश- एक राशन कार्ड की व्यवस्था लागू हो सकती है. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शक्रवार को मामले की सुनवाई करते हुए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से इस स्कीम को लागू करने को कहा.   


इन राज्यों ने लागू नहीं की योजना


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जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एम आर शाह की अवकाशकालीन पीठ ने शुक्रवार को मामले की सुनवाई की. सुनवाई में केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि दिल्ली, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और असम जैसे राज्यों ने अब तक एक देश, एक राशन कार्ड (ONORC) योजना लागू नहीं की है.


दिल्ली के वकील ने किया विरोध


हालांकि, दिल्ली के वकील ने इस दलील का विरोध करते हुए कहा कि इसे लागू कर दिया गया है. पश्चिम बंगाल के वकील ने कहा कि आधार को जोड़े जाने को लेकर कुछ मुद्दे थे. इस पर पीठ ने तुरंत कहा, 'आपको इसे लागू करना चाहिए. यह उन प्रवासी श्रमिकों के कल्याण के लिए है. जिन्हें इसके जरिए हर राज्य में राशन मिल सकता है.’


पीठ (Supreme Court) ने कहा कि वह इस बात से चिंतित है कि जिन प्रवासी श्रमिकों के पास राशन कार्ड नहीं हैं, वे कल्याणकारी योजनाओं का लाभ कैसे उठा पाएंगे. कोर्ट ने केंद्र की ओर पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से पूछा, ‘असंगठित क्षेत्रों के श्रमिकों के पंजीकरण के बारे में क्या स्थिति है. एक सॉफ्टवेयर के विकास में इतना समय क्यों लग रहा है? आपने इसे शायद पिछले साल अगस्त में शुरू किया था और यह अभी भी खत्म नहीं हुआ है.’


'सॉफ्टवेयर बनाने में इतना समय क्यों'


पीठ ने केंद्र से पूछा कि उसे श्रमिकों का एक राष्ट्रीय डेटा तैयार करने वाले साफ्टवेयर को बनाने के लिये और महीनों की आवश्यकता क्यों है. कोर्ट ने कहा, ‘आपको अभी भी तीन-चार महीने की आवश्यकता क्यों है. आप कोई सर्वेक्षण नहीं कर रहे हैं. आप केवल एक मॉड्यूल बना रहे हैं ताकि उसमें डेटा डाले जा सकें.’


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यह याचिका सोशल एक्टिविस्ट अंजलि भारद्वाज, हर्ष मंदर और जगदीप चोकर की ओर से दायर की गई है. उनकी ओर से पैरवी करते हुए वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उन सभी तक पहुंचाया जाना चाहिए. जिनके पास राशन कार्ड नहीं हैं. पिछले साल की तुलना में इस साल समस्या ज्यादा गंभीर है.


कोर्ट ने सुरक्षित रखा फैसला


इसके जवाब में सोलिसिटर जनरल ने कहा कि प्रधान मंत्री गरीब कल्याण योजना का लाभ इस साल नवंबर तक बढ़ा दिया गया है. इसके तहत ऐसे परिवारों के प्रत्येक सदस्यों को पांच किलो खाद्यान्न हर महीने निशुल्क दिया जाएगा. इसके अलावा राज्यों द्वारा भी अन्य कल्याणकारी योजनाओं को अमल में लाया जा रहा है. सभी पक्षों की बात सुनने के बाद कोर्ट (Supreme Court) ने इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. 


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