प्रीम कोर्ट ने ऐसे कैदियों की रिहाई के बारे में केंद्र और राज्यों को विचार करने का निर्देश देने से इनकार कर दिया.
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नई दिल्ली: क्या कोरोना वायरस (coronavirus) के चलते 50 साल से अधिक उम्र के कैदियों को पैरोल या अंतरिम जमानत दे देनी चाहिए? सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे कैदियों की रिहाई के बारे में केंद्र और राज्यों को विचार करने का निर्देश देने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, श्वास संबंधी परेशानी और जीवन के लिये खतरा पैदा करने वाली दूसरी बीमारियों से ग्रस्त कैदियों के बारे में इस तरह का कोई आदेश देने से इनकार कर दिया है.
चीफ जस्टिस एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की पीठ ने कहा कि उसे नहीं पता इस मामले में सरकार क्या सोचती है लेकिन न्यायालय का मानना है कि यह मामले दर मामले पर निर्भर करना चाहिए. पीठ ने कहा, ‘‘हम इसके लिये कोई आदेश नहीं देंगे. आप अपने मामले के बारे में व्यक्तिगत रूप से सरकार के समक्ष प्रतिवेदन दें.’’
शीर्ष अदालत ने कहा कि वह व्यक्तिगत रूप से याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता अमित साहनी को इसे वापस लेने और ऐसी किसी भी बीमारी से ग्रस्त कैदियों को अपनी रिहाई के बारे में व्यक्तिगत रूप से सरकार के पास प्रतिवेदन करने की सलाह देने की छूट देती है.
पीठ ने कहा, ‘‘हमें एक सामान्य आदेश पारित करना न्यायोचित नहीं लगता.’’ साहनी ने अपनी याचिका में कहा था कि विश्व स्वास्थ संगठन के अनुसार वृद्ध और पहले से ही उच्च रक्तचाप, मधुमेह, हृदय और फेफड़ों की बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति कोरोना वायरस के संक्रमण से गंभीर रूप से प्रभावित हो सकते हैं.
याचिका में कहा गया है कि शीर्ष अदालत पहले ही कोरोना वायरस संक्रमण के मद्देनजर जेलों में क्षमता से ज्यादा कैदी होने के तथ्यों का संज्ञान ले चुकी है लेकिन 50 साल की आयु से ज्यादा उम्र के कैदियों सहित चुनिंदा श्रेणी में आने वाले व्यक्तियों की स्थिति की ओर उसका ध्यान आकर्षित नहीं किया गया.
शीर्ष अदालत ने 23 मार्च को केंद्र और सभी राज्य सरकारों को उच्च स्तरीय समिति गठित करने का निर्देश दिया था, जो सात साल तक की सजा से संबंधित अपराधों में सजा भुगत रहे कैदियों या इतनी ही सजा होने के अपराध के आरोप में विचाराधीन कैदियों को पैरोल या अंतरिम जमानत पर रिहा करने पर विचार करे.
(इनपुट: एजेंसी भाषा के साथ)