जानिए कब आएगा राम मंदिर पर फैसला, 6 अगस्त से रोज होगी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
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जानिए कब आएगा राम मंदिर पर फैसला, 6 अगस्त से रोज होगी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने 6 अगस्त (मंगलवार) से खुली अदालत में रोज़ाना सुनवाई शुरू करेगा. 

फाइल फोटो
फाइल फोटो

नई दिल्ली: अयोध्या पर मध्यस्थता विफल होने के बाद दो अगस्त को सुप्रीमकोर्ट के 5 जजों की बेंच ने मध्यस्थता पैनल को भंग कर दिया था. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने 6 अगस्त से खुली अदालत में रोज़ाना सुनवाई शुरू करने का निर्णय लिया था. मामले का 17 नवंबर 2019 तक फ़ैसला आ जाएगा. चीफ जस्टिस के रिटायर होने तक यानि फ़ैसला आने तक सुप्रीमकोर्ट के पास इस मामले को सुनने के लिए कुल 35 दिन का समय है. ये 35 दिन नॉन मिसलेनियस डे (Non Miscellaneous Day) हैं. जो कि हर हफ़्ते में मंगलवार, बुधवार और गुरूवार होते हैं जिनमें सुप्रीमकोर्ट रेगुलर केस यानि कि पुराने नियमित मामलों की सुनवाई करता है.

सोमवार और शुक्रवार के दिन मिसलेनियस डे (Miscellaneous Day) होते हैं, जिनमें नये मामलों की सुनवाई होती है. 6 अगस्त से चीफ जस्टिस के रिटायरमेंट के दिन 17 नवंबर 2019 तक शनिवार, रविवार और अन्य अवकाश के दिनों को हटाकर सुनवाई के 35 दिन है. इन दिनों में सुनवाई भी होनी है और फ़ैसला भी लिखा जाना है. सुप्रीम कोर्ट मामले के कुल 18 पक्षकारों में राम लला और निर्मोही अखाड़े की अपीलों को सबसे पहले सुनेगा. 

 

विवादित स्थल पर क्या पहले कोई मंदिर था और क्या उसे तोड़ कर मस्जिद बनाई गई थी, इस बात का जवाब विवादित स्थल की खुदाई करने वाले भारत पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की रिपोर्ट में मिलता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि विवादित ढांचे के नीचे मिली विशाल संरचना उत्तर भारत के मंदिर से मेल खाती है. यानी वहां पहले मंदिर था. एएसआई की यह रिपोर्ट वैज्ञानिक साक्ष्य है. हाईकोर्ट के फैसले में रिपोर्ट आधार बनी थी और अब सुप्रीम कोर्ट को फैसला करना है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेकर एक अगस्त 2002 और 23 अक्टूबर 2002 को विवादित स्थल के नीचे जियो रेडियोलाजिकल सर्वे का आदेश दिया था. तोजो विकास इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड ने ये सर्वे किया और 17 फरवरी 2003 को हाईकोर्ट को रिपोर्ट सौंपी. रिपोर्ट में जमीन के नीचे कुछ विसंगतियां पायी गईं जिसे देखते हुए हाईकोर्ट ने 5 मार्च 2003 को एएसआई को विवादित स्थल की खुदाई करने का आदेश दिया था.

एएसआई ने खुदाई करने के बाद 25 अगस्त 2003 को हाईकोर्ट में रिपोर्ट दी थी. राम जन्मभूमि मामले में हाईकोर्ट के सितंबर 2010 में दिये गए फैसले में इसी रिपोर्ट के आधार पर तीन में से दो न्यायाधीशों ने अपने फैसले में माना कि विवादित ढांचा हिन्दू मंदिर तोड़कर बनाया गया था.

एएसआई को खुदाई का आदेश देने वाली पीठ में शामिल रहे सेवानिवृत न्यायाधीश सुधीर नारायण कहते हैं कि उस वक्त कोर्ट के सामने कानूनी सवाल था कि पहले वहां मंदिर था कि नहीं. इसी का पता लगाने के लिए एएसआई को खुदाई का आदेश दिया था. एएसआई की रिपोर्ट आ गई है. वहवैज्ञानिक साक्ष्य है. अब मामला सुप्रीम कोर्ट में है और उसे फैसला लेना है.

एएसआई रिपोर्ट के निष्कर्ष में कहा गया है कि पुरातत्व साक्ष्यों को संपूर्णता में देखने से पता चलता है कि विवादित स्थल के ठीक नीचे एक विशाल संरचना थी और लगातार निर्माण के साक्ष्य हैं जो कि दसवीं शताब्दी से लेकर विवादित ढांचा बनने तक जारी रहा. यहां से नक्काशीदार ईंटे, देवताओं की युगल खंडित मूर्ति और नक्काशीदार वास्तुशिल्प, जिसमें पत्तों के गुच्छे, अमालका, कपोतपाली, दरवाजों के हिस्से कमल की आकृति, गोलाकार (श्राइन) पूजा स्थल जैसी चीज मिली है, जिसमें उत्तर की ओर निकला एक परनाला भी है. उस बड़े ढांचे में पचास खंबों का आधार मिला है. ये अवशेष उत्तर भारत के मंदिरों की खासियत से मेल खाते हैं.

एएसआई ने रिपोर्ट के चेप्टर चार में स्ट्रक्चर (संरचना या ढांचा) शीर्षक में खुदाई में मिली संरचना का विवरण देते हुए अलग से एक खंड विवादित ढांचे के नीचे विशाल ढांचा का दिया है. इसमें कहा गया है कि विवादित ढांचा पहले से मौजूद निर्माण पर खड़ा था. खुदाई में पता चला कि ढांचे के ठीक नीचे एक बड़ी संरचना मौजूद थी.

एएसआई रिपोर्ट का निष्कर्ष 1993 में राष्ट्रपति द्वारा रिफरेंस भेजकर सुप्रीम कोर्ट से पूछे गए सवाल का जवाब भी है. तत्कालीन राष्ट्रपति ने रिफरेंस भेजकर पूछा था कि क्या अयोध्या में विवादित ढांचे से पहले वहां हिन्दू मंदिर या हिन्दू धार्मिक स्थल था. सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने पूछे गए सवाल को बेकार और अनावश्यक बताते हुए बगैर जवाब दिये रिफरेंस वापस कर दिया था.

पांच में से दो न्यायाधीशों ने अलग से दिए फैसले में रिफरेंस वापस करते हुए यह भी कहा था कि ऐसा नहीं है कि कोर्ट सवाल का जवाब देने में सक्षम नहीं है. जवाब दिया जा सकता है अगर इस बारे में पुरातत्व और इतिहासकारों के विशेषज्ञ साक्ष्य हो और उन्हें जिरह में परखा जाए तो. अब वैज्ञानिक अध्ययन उपलब्ध है.

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