बीजेपी के लिए ये झटका इसलिए बड़ा माना जा रहा है क्योंकि आंध्र प्रदेश में 25 लोकसभा सीटें हैं और इस वक्त वहां की सियासत की मुख्य धुरी सत्तारूढ़ तेलुगु देसम और विपक्षी वाईएसआर कांग्रेस हैं.
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बीजेपी द्वारा मनाने की तमाम कोशिशों के बावजूद आंध्र प्रदेश में उसकी प्रमुख सहयोगी तेलुगु देसम (टीडीपी) ने एनडीए से बाहर निकलने का ऐलान कर दिया है. आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद विशेष राज्य का दर्जा की मांग कर रही टीडीपी की मांग जब केंद्र ने नहीं सुनी तो आखिरकार टीडीपी ने बाहर जाने का फैसला ले लिया. बुधवार को वित्त मंत्री अरुण जेटली ने स्पष्ट कर दिया था कि 14वें वित्त आयोग की अनुशंसा के मुताबिक ऐसे किसी राज्य को विशेष आर्थिक पैकेज देना संभव नहीं है. उसके साथ ही स्पष्ट हो गया था कि तेलुगु देसम के लिए अब बीजेपी के साथ रहना मुश्किल है. उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र में शिवसेना ने पहले ही ऐलान कर रखा है कि 2019 में वह बीजेपी के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेगी. उसके बाद अब टीडीपी के एनडीए से बाहर आने की घोषणा को बीजेपी के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है.
216 सीटों का गणित
तेलुगु देसम ने ये फैसला ऐसे वक्त लिया है जब त्रिपुरा समेत उत्तर-पूर्व के तीन राज्यों में सफलता के बाद बीजेपी जीत के जश्न में डूबी है. बीजेपी के लिए ये झटका इसलिए बड़ा माना जा रहा है क्योंकि आंध्र प्रदेश में 25 लोकसभा सीटें हैं और इस वक्त वहां की सियासत की मुख्य धुरी सत्तारूढ़ तेलुगु देसम और विपक्षी वाईएसआर कांग्रेस हैं. दरअसल बीजेपी दक्षिण, दक्षिण-पूर्व और उत्तर-पूर्व में किसी भी सूरत में 2019 में अपने प्रदर्शन को बेहतर करने के लिए मेहनत कर रही है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने इस सिलसिले में पिछले साल 105 दिनों का दौरा भी किया था. इन क्षेत्रों में से कुल मिलाकर 216 लोकसभा सीटें हैं. ऐसे में उसको तेलुगु देसम जैसे साथियों की बेहद जरूरत है. इस लिहाज से तेलुगु देसम का एनडीए से बाहर निकलना बीजेपी के लिए बड़ा झटका है क्योंकि इससे बीजेपी के दक्षिण के अभियान को चोट पहुंची है.
बीजेपी दरअसल हिंदी पट्टी में पहले ही लोकसभा सीटों के लिहाज से शिखर बिंदु तक पहुंच चुकी है. इसी कड़ी में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने उन राज्यों में इस बार अपना ध्यान केंद्रित कर रखा है जहां बीजेपी का कभी बड़ा जनाधार नहीं रहा है. इसलिए अप्रैल में होने जा रहे कर्नाटक चुनावों में भी वह कांग्रेस को कड़ी टक्कर देने के मूड में है. उसने कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार को उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया है.
उत्तर-पूर्व में कुल मिलाकर 25 लोकसभा सीटें हैं. यहां के मिजोरम को छोड़कर सभी राज्यों में एनडीए की सरकारें हैं. पिछली बार एनडीए को यहां से 11 सीटें मिली थीं और अबकी बार बीजेपी इस टैली को बढ़ाकर कम से कम 20 तक पहुंचाना चाहती है. इसी कड़ी में यदि देखा जाए तो अकेले आंध्र प्रदेश में 25 सीटें हैं.
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बड़ा नुकसान
उल्लेखनीय है कि 2014 लोकसभा चुनावों में बीजेपी और टीडीपी को कुल मिलाकर 17 लोकसभा सीटें मिली थीं और विपक्षी जगनमोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस को आठ सीटें मिली थीं. अब तेलुगु देसम गठबंधन से बाहर निकलकर आंध्र प्रदेश की भावनाओं की उपेक्षा का आरोप बीजेपी पर लगा सकती है. 2014 में आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद कांग्रेस पर भी इसी तरह राज्य के लोगों की भावना के साथ खिलवाड़ का आरोप लगा था. इसका नतीजा यह रहा कि कांग्रेस को लोकसभा चुनावों में एक भी सीट नहीं मिली.
वाईएसआर कांग्रेस
इस बात की भी चर्चा हो रही है कि टीडीपी के हटने के बाद बीजेपी, वाईएसआर कांग्रेस के साथ हाथ मिला सकती है. लेकिन जगनमोहन रेड्डी भी विशेष राज्य की मांग कर रहे हैं. उन्होंने पहले ही घोषणा कर रखी है कि उनके लोकसभा सदस्य अगले महीने इस मुद्दे पर लोकसभा से इस्तीफा देंगे. यानी इस मुद्दे पर टीडीपी और वाईएसआर कांग्रेस एक साथ हैं. ऐसे में फिलहाल संभव नहीं लगता कि बीजेपी और वाईएसआर कांग्रेस एक साथ आएं. हालांकि ये दोनों ही दल आंध्र प्रदेश की भावनाओं की अनदेखी का आरोप बीजेपी पर लगाकर 2019 के लिहाज से इसकी राह में रोड़ा अटका सकते हैं.