देश में जैसे-जैसे हिंदुत्व की लहर तेज हो रही है, वैसे-वैसे मंदिरों पर भीड़ उमड़ रही है. हाल ही में प्रयागराज की भीड़ ने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया था. मंदिरों पर बढ़ती भीड़ को देखते हुए ही ऐसे लोगों की जरूरत है जो न सिर्फ पूजा-पाठ के कर्मकांड कराएं, बल्कि भीड़ बढ़े तो पेशेवर तरीके से क्राउड कंट्रोल करने वाले कमांडो भी बन सकें.
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गर्मी की छुट्टियां आने वाली हैं. इन छुट्टियों में पहाड़, समंदर या फिर कोई अच्छा सा टूरिस्ट प्लेस लोगों की पसंदीदा जगह हुआ करती थी. लेकिन बीते कुछ वर्षों में इसमें बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. लोगों की दिलचस्पी अब ऐसे पर्यटन स्थलों की बजाए मंदिर और धार्मिक स्थलों में ज्यादा बढ़ गई है. महाकुंभ में उमड़े रेले से ये बात साबित भी होती है, जिसमें महज 45 दिनों के भीतर 66 करोड़ से ज्यादा भक्तों ने प्रयागराज के संगम में डुबकी लगा डाली.
अब जरा कुछ आंकड़ों पर गौर करते हैं. 2022 में राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (NSSO) के मुताबिक देश की मंदिर अर्थव्यवस्था देश की अर्थव्यवस्था में लगभग 3.02 लाख करोड़ रुपये का योगदान कर रही थी, जो उस समय GDP का 2.32% था.
45 दिनों के महाकुंभ से ही यूपी की अर्थव्यवस्था में तीन लाख करोड़ से भी ज्यादा का इजाफा हुआ है. योगी सरकार का कहना है कि महाकुंभ के आयोजन में लगभग 1500 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं.
महाकुंभ का असर आसपास के अन्य जिलों के धार्मिक स्थलों पर भी देखा गया. अयोध्या, मथुरा, काशी... इन सभी जगहों पर भी प्रयागराज की तरह ही बंपर भीड़ उमड़ी.
अयोध्या में तो मंदिर के उद्घाटन के बाद से ही हर साल 5 गुना से भी ज्यादा भक्तों की भीड़ बढ़ रही है. भक्तों की आस्था से अर्थव्यवस्था का चक्का भी बहुत तेजी से घूमता है. सिर्फ काशी विश्वनाथ मंदिर की बात करें तो यहां बीते साल मार्च के महीने में रिकार्डतोड़ 11.14 करोड़ रुपए भक्तों ने दान में दिए.
2023 में भारत ने 1.88 करोड़ इंटरनेशनल टूरिस्ट्स का स्वागत किया, जिससे पर्यटन से 28.07 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा आय हुई थी.
2028 तक पर्यटन और हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री से ही 50 हजार करोड़ रुपये से अधिक का राजस्व होने की उम्मीद है. खास बात ये है कि 60% पर्यटन सिर्फ धार्मिक और आध्यात्मिक स्थलों से जुड़ा हुआ है.
मंदिरों पर उमड़ती ये भारी भीड़ ही 'मंदिर प्रबंधन' में करियर के नए अवसर ला रही है. मंदिर प्रबंधन में प्रशिक्षित पेशेवरों की मांग बढ़ रही है, जो मंदिरों के संचालन, रखरखाव और प्रशासन का प्रबंधन कर सकें. इसी जरूरत को देखते हुए अब काशी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में मंदिर प्रबंधन का कोर्स शुरू करने की तैयारी है. विश्वविद्यालय में अगले साल अप्रैल से मंदिर प्रबंधन का नया कोर्स शुरू होने जा रहा है.
इस कोर्स में मंदिर निर्माण के सिद्धांत, मूर्ति प्रतिष्ठा और प्राण प्रतिष्ठा की विधियां, वास्तु शास्त्र, क्राउड मैनेजमेंट जैसी बातें बताई जाएंगी. कोर्स में कर्मकांड, ज्योतिष शास्त्र और मंदिर प्रशासन से जुड़े कौशल सिखाए जाएंगे. इसके अलावा मंदिर की आर्थिक व्यवस्था, श्रद्धालुओं की सुविधा, मंदिर की साफ-सफाई और सांस्कृतिक-धार्मिक विरासत के संरक्षण की बारीकियां इस कोर्स में सिखाई जाएंगी.
वैसे तो देश में कई विश्वविद्यालय और संस्थान पुजारी प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रदान करते हैं, जिनमें काशी हिंदू विश्वविद्यालय, हरिद्वार में गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, संस्कृत विद्यापीठ तिरुपति, रामकृष्ण मिशन बेलूर मठ और ओडिशा में श्रीश्री विश्वविद्यालय शामिल हैं. लेकिन ये कोर्स अपने आप में अनूठा है जो पहली बार शुरू हो रहा.
हालांकि दुनिया के कई देशों में अभी धार्मिक अध्ययन और धर्मशास्त्र से संबंधित कोर्स कराए जा रहे हैं, लेकिन मंदिर प्रबंधन पर ऐसी पढ़ाई देश में पहली बार कराई जा रही है. अमेरिका और यूरोप में क्रिश्चियन थियोलॉजी या चर्च मैनेजमेंट से जुड़े कोर्स पढ़ाए जाते हैं. कुछ देशों में हॉस्पिटैलिटी मैनेजमेंट या हेरिटेज मैनेजमेंट कोर्स कराए जा रहे हैं, जो सांस्कृतिक और धार्मिक स्थलों के संरक्षण और संचालन पर ध्यान देते हैं.
जापान में बौद्ध मंदिरों और शिंतो श्राइन के संचालन के लिए ट्रेडिशनल कोर्स होते हैं, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी संचालित होते हैं. हालांकि ये कोर्स मठों के भीतर ही होता है. इजरायल में रब्बी (Rabbi) ट्रेनिंग कोर्स होता है, जो यहूदी धार्मिक स्थलों (सिनागॉग) के संचालन और धार्मिक नेतृत्व से जुड़ा है.