काम आ रही 'नक्सलियों' के खिलाफ सरकारी रणनीति, लाल आतंक का हो रहा पलायन
Advertisement

काम आ रही 'नक्सलियों' के खिलाफ सरकारी रणनीति, लाल आतंक का हो रहा पलायन

छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में नक्सल प्रभावित इलाकों में केंद्र और राज्य सरकार की पहल नजर आने लगी है. सरकार ने स्थानीय युवक-युवतियों को भर्ती के ज्यादा से ज्यादा अवसर देना शुरू किया, जिससे नक्सलियों (Naxalites) को भर्ती के लिए लोग मिलने कम हो गए.  पिछले एक साल में 14 इनामी नक्सली मारे जा चुके हैं. इस दौरान 28 इनामी नक्सलियों सहित 170 गिरफ्तार किए जा चुके हैं. एक साल के अंदर 29 इनामी नक्सलियों (Naxalites) सहित 372 सरेंडर कर चुके हैं.

काम आ रही 'नक्सलियों' के खिलाफ सरकारी रणनीति, लाल आतंक का हो रहा पलायन

आलोक वर्मा, रायपुरः जी न्यूज को एक्सक्लूसिव तौर पर एक स्मारिका हाथ लगी है. यह स्मारिका नक्सलियों (Naxalites) ने छपवाई है. 108 पन्ने की इस स्मारिका में लाल आतंक के संचालकों ने अपनी काली सच्चाई का खुद बखान किया है. ‘दीर्घकालीन लोक युद्ध में जनमुक्ति छापामार सेना का विकास’ के नाम से छपी इस स्मारिका में बाल नक्सलियों की भर्ती, गुरिल्ला युद्ध में जीत, PLGA के संविधान आदि का बखान किया गया है. सबसे बड़ी बात यह कि स्मारिका में बच्चों को कल का नक्सल (Naxalites) बताया गया है और उन्हें भर्ती करने पर जोर दिया गया है. 

  1. छत्तीसगढ़ में नक्सलियों की टूट रही कमर
  2. लाल आतंक का हो रहा सफाया
  3. सरकार ने उठाए कई महत्वपूर्ण कदम

सड़कों का हो रहा निर्माण

नक्सलियों (Naxalites)ने स्मारिका में 18 आर्टिकल के जरिए अपनी मौजूदगी का अहसास कराने की कोशिश की है. बस्तर के IGP सुंदरराज के मुताबिक, विश्वास-विकास-सुरक्षा योजना के तहत पूरे बस्तर संभाग में अब तक 39 सुरक्षा कैंप स्थापित किए गए हैं. इनके माध्यम से स्वीकृत 1305 किलोमीटर सड़क में से 986 किमी सड़क का निर्माण कार्य पूरा हो चुका है. नक्सली इलाके के युवाओं को भड़काकर अपने गुट में शामिल करते थे, लेकिन सरकार ने स्थानीय युवक-युवतियों को भर्ती के ज्यादा से ज्यादा अवसर देना शुरू किया, जिससे नक्सलियों (Naxalites) को भर्ती के लिए लोग मिलने कम हो गए.

fallback

ग्रामीण भी हो रहे जागरूक

नक्सल विरोधी अभियान संचालक और सुकमा के समाज सेवी फारूख अली कहते हैं कि बस्तर में नक्सलियों का वर्चस्व अब समाप्त हो चला है. नक्सली अपने स्वार्थ के लिए ग्रामीणों को मौत के मुंह में धकेलते हैं. इस बात को ग्रामीण अब समझने लगे हैं. ग्रामीण अब विकास की राह पर हैं और बस्तर नक्सल (Naxalites) से मुक्ति की ओर बढ़ रहा है. फारूख अली का यह दावा यूं ही नहीं है. पिछले साल 3 अप्रैल को छतीसगढ़ के सुकमा-बीजापुर सीमा पर 2 दर्जन से ज्यादा जवानों के मारे जाने की वीभत्स घटना का एक साल पूरा होने वाला है.

fallback

सरकार कर रही तेजी से काम 

पहली बार देश का कोई गृह मंत्री घटना स्थल के अलावा नक्सल (Naxalites) से बुरी तरह प्रभावित अंदरूनी इलाकों में गया था. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ना केवल अस्पताल में भर्ती घायल जवानों से मिलने और शहीदों को श्रद्धांजलि भी दी. इस घटना के बाद ही केंद्र के साथ राज्य की भूपेश बघेल सरकार ने भी नक्सल इलाकों में विकास के लिए कमर कस ली. पिछले एक साल के दौरान छत्तीसगढ़ के नक्सलियों में, उनके खिलाफ हो रही कार्रवाई और उनकी रणनीति में और क्षेत्र के विकास में कई बदलाव आए हैं. बड़ी बात ये है कि लाल आतंक का खौफ समाप्त करने के लिए राज्य की भूपेश बघेल सरकार भी तेजी से काम कर रही है.

fallback

नक्सली कर रहे सरेंडर

सुकमा-बीजापुर अटैक के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कई कदम उठाए. बस्तर और दूसरे नक्सल (Naxalites) से प्रभावित इलाकों में सुरक्षा कैंप खोले जाने लगे. ग्रामीणों को भी साथ लिया गया. पिछले एक साल में 14 इनामी नक्सली मारे जा चुके हैं. इस दौरान 28 इनामी नक्सलियों सहित 170 गिरफ्तार किए जा चुके हैं. एक साल के अंदर 29 इनामी नक्सलियों सहित 372 सरेंडर कर चुके हैं. नक्सल के खिलाफ की कार्रवाई लाल आतंक की कमजोर कर रही है. लाल आतंक के जोर को कम करना ऐसे संभव नहीं था. लाल आतंक यानि नक्सलियों को ग्रामीणों के एक बड़े वर्ग का समर्थन प्राप्त था. सरकारी पहल पर पुलिस ने सुकमा (Sukma) में पिछले साल 9 अगस्त को पुलिस अधीक्षक के नेतृत्व में पूना नर्कोम अभियान (नई सुबह नई शुरूआत) चलाया गया. इस अभियान के तहत लोगों के बीच जाकर उनको सांस्कृतिक कार्यक्रमों में शामिल किया गया. इसके साथ ही रोजमर्रा की जरूरतों को जानने का प्रयास किया गया.इसका मकसद सुरक्षा बलों में आम नागरिक के विश्वास को बढ़ाना था.

स्व रोजगार के लिए प्रोत्साहित

बस्तर के IGP सुंदरराज के मुताबिक, प्रत्येक सुरक्षा बेस कैंप को एक समग्रित विकास केंद्र के रूप में तब्दील किया जा रहा है. 'मनवा नवां नार' कार्य योजना तैयार की जा रही है, जिसका मतलब है 'हमारा नया गांव.' इस कार्य योजना के तहत विभिन्न विकास कार्यों के अलावा ग्रामीणो को स्व रोजगार के लिए प्रोत्साहित करना है. पिछले साल अगस्त में महिलाओं की सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए दुर्गा फाइटर्स का गठन हुआ. दुर्गा फाइटर्स (Durga Fighters) में शामिल महिलाएं नक्सलियों से जमकर लोहा ले रही हैं.

fallback

टूटी नक्सलियों की कमर

लाल आतंक पर चौतरफा दबाव और कोरोना महामारी ने नक्सलियों की कमर तोड़ दी है. इनमें आपस में झगड़े होने लगे हैं. सुरक्षा बलों और आम जनमानस में अपना अस्तित्‍व बरकरार रखने के लिए नक्सलियों को 108 पन्ने की स्मारिका छापनी पड़ी. छतीसगढ़ के नक्सल इलाकों में सरकारी अभियानों के चलते लाल आतंक पर दवाब इतना बढ़ा कि उन्हें बस्तर के इलाकों से शिफ्ट होने का फैसला लेना पड़ा. बस्तर (Bastar) से लाल आतंक (Red Terror) अब पलायन करने लगा है, इस बाबत नक्सिलयों ने दो नए कॉरीडोर बनाए हैं. यानी नक्सल बस्तर छोड़ सुरक्षित ठिकाने के लिए भटक रहे हैं.

fallback

गांव में मोबाइल टावर

पिछले एक साल में बेहद अंदरूनी और अतिसंवेदनशील इलाकों में 11 मोबाइल टावर लगाए जा चुके हैं. अभी 105 टावर और लगाए जाने हैं. दूरसंचार की इस क्रांति ने ग्रामीणों को बाहरी दुनिया से जोड़ दिया है और वे लाल आतंक की काली सच्चाई से वाकिफ होने लगे हैं. प्रशासन के साथ मिलकर पुलिस उन गांवों में भी बिजली पहुंचाने का काम कर रही है, जहां सालों से अंधेरा था. पुलिस की मदद से एक साल में सुकमा के अंदरूनी हिस्सों के गांवो में सड़क पहुंच चुकी है. 68 किलोमीटर से ज्यादा की पक्की सड़क और 140 किलोमीटर से ज्यादा लंबी मिट्टी की सड़क लोगों को सौंप दिया गया है.

fallback

बन रहे पुल

कई ऐसे पुल हैं, जिन्हें नक्सली सालों से बनने नहीं दे रहे थे, वो अब बन चुके हैं. अंदरूनी गांवों में जहां नक्सली अक्सर जवानों पर हमले करते थे, अब प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत यहां सड़के बनने लगी हैं. नक्सलियों का गढ़ सिलगेर गांव जहां ग्रामीण भी लाल आतंक का ही समर्थन करते थे, अब वहां सड़क ही नहीं बनी बल्कि मूलभूत सुविधाएं भी पहुंच चुकी हैं. लॉकडाउन के दौरान वहां 450 किलोमीटर सड़कें बनाई गईं. दूरदराज के गांवों को करीब 700 किलोमीटर की सड़कों से जोड़ा जा रहा है. यही वजह है कि छतीसगढ़ में लाल आतंक कमजोर पड़ रहा है.
LIVE TV 

Trending news