तस्लीमा नसरीन बोलीं- भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों की हालत काफी बेहतर
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तस्लीमा नसरीन बोलीं- भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों की हालत काफी बेहतर

इंदौर लिटरेचर फेस्टिवल में हिस्सा लेने आयीं तस्लीमा ने विशेष साक्षात्कार में मीडिया से कहा, "बांग्लादेश में हिंदुओं और बौद्धों पर बहुत अत्याचार होता है. मैं हालांकि पाकिस्तान कभी नहीं गयी. लेकिन मैंने वहां भी धार्मिक अल्पसंख्यकों के जबरन धर्मांतरण और उन पर ढाये जाने वाले दूसरे जुल्मो-सितम के बारे में पढ़ा है."

बांग्लादेशी मूल की लेखिका तस्लीमा नसरीन ने भारतीय कानून-व्यवस्था की तारीफ करते हुए कहा कि राजस्थान में मुस्लिम मजदूर की हत्या के मामले के आरोपी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया (फाइल फोटोः Wion- AFP)

इंदौरः विवादास्पद लेखन के लिये मशहूर कलमकार तस्लीमा नसरीन ने पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी मुल्कों के मुकाबले भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों की हालत को काफी बेहतर बताया है. अपनी मातृभूमि बांग्लादेश से निर्वासन का दंश झेल रहीं 55 वर्षीय लेखिका का कहना है कि भारत उन्हें अपने घर की तरह लगता है.

  1. बांग्लादेश में हिंदुओं और बौद्धों पर बहुत अत्याचार होता हैः तस्लीमा
  2. तस्लीमा नसरीनः भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों की हालत काफी बेहतर है
  3. 'मैं यूरोप की नागरिक हूं. लेकिन भारत मुझे घर की तरह लगता है'

इंदौर लिटरेचर फेस्टिवल में हिस्सा लेने आयीं तस्लीमा ने विशेष साक्षात्कार में मीडिया से कहा, "बांग्लादेश में हिंदुओं और बौद्धों पर बहुत अत्याचार होता है. मैं हालांकि पाकिस्तान कभी नहीं गयी. लेकिन मैंने वहां भी धार्मिक अल्पसंख्यकों के जबरन धर्मांतरण और उन पर ढाये जाने वाले दूसरे जुल्मो-सितम के बारे में पढ़ा है."

उन्होंने कहा, "इन दोनों मुल्कों के मुकाबले भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों की हालत काफी बेहतर है. भारत का आइन (संविधान) सबके लिये समान है. हालांकि, मैं यह नहीं कह रही हूं कि भारत में अल्पसंख्यक समुदाय की सारी दुश्वारियां खत्म हो गयी हैं." विवादग्रस्त बांग्ला उपन्यास "लज्जा" की लेखिका ने कहा, "मैं यूरोप की नागरिक हूं. लेकिन भारत मुझे घर की तरह लगता है. मैं भारत सरकार की शुक्रगुजार हूं कि उसने मुझे इस देश में रहने की इजाजत दी. मैं भारतीय समाज की बेहतरी के लिये काम करना चाहती हूं."

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बांग्लादेश की निर्वासित लेखिका के लिये विवादों में रहना कोई नयी बात नहीं है. इन दिनों उन्हें एक ऑनलाइन पत्रिका में प्रकाशित हालिया लेख के विवादास्पद अंश को लेकर सोशल मीडिया पर खासी आलोचना झेलनी पड़ रही है. इस अंश में राजस्थान में एक मुस्लिम मजदूर की हत्या के वीडियो को सोशल मीडिया पर पोस्ट किये जाने की सनसनीखेज वारदात की आतंकी संगठन आईएसआईएस के हिंसक कृत्यों से कथित तौर पर तुलना की गयी है.

तस्लीमा ने आरोप लगाया कि भारतीय लेखिका मधु किश्वर और कुछ अन्य लोग सोशल मीडिया पर "घोर घृणा" दिखाते हुए उनके लेख के संबंधित अंश की गलत व्याख्या कर रहे हैं और लोगों को उनके खिलाफ "जान-बूझकर" भड़का रहे हैं. उन्होंने कहा, "यह कहना सरासर गलत है कि मैंने अपने लेख में समूचे हिन्दू समुदाय की आईएसआईएस से तुलना की है. मैंने बस एक विशिष्ट घटना (मुस्लिम मजदूर की हत्या के वीडियो को सोशल मीडिया पर पोस्ट किया जाना) का जिक्र किया है. मैं इस मामले में अपने खिलाफ लगाये जा रहे झूठे आरोपों से बेहद परेशान हूं."

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तस्लीमा ने भारतीय कानून-व्यवस्था की तारीफ करते हुए कहा कि राजस्थान में मुस्लिम मजदूर की हत्या के मामले के आरोपी शंभूलाल को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है. इसके साथ ही, अफसोस जताया कि उनके अपने मुल्क बांग्लादेश में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर अत्याचार करने वाले ज्यादातर लोग कथित रूप से आजाद घूम रहे हैं.

धार्मिक कट्टरपंथियों की कई धमकियों का सामना कर चुकीं लेखिका ने कहा, "आप जिस समाज और परिवेश से प्रेम करते हैं, उसे हिंसा और घृणा से मुक्त देखना चाहते हैं. इसलिये मैं हर धर्म के अतिवादियों के खिलाफ समान भाव से कलम चलाती हूं." दुनिया भर में समान नागरिक संहिता के विचार की जोरदार पैरवी करते हुए तस्लीमा ने कहा कि धार्मिक कानूनों की वजह से खासकर म​हिलाओं को सामाजिक प्रताड़ना और भेदभाव झेलने पड़ रहे हैं.

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