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नई दिल्ली: आजकल ज्यादातर इलेक्ट्रिक डिवाइस में थ्री प्लग का इस्तेमाल होता है. इसका उपयोग आमतौर पर उन इलेक्ट्रिक डिवाइस में होता है, जिसमें सामान्य से ज्यादा विद्युत की जरूरत पड़ती है, जैसे- फ्रिज, इंडक्शन चूल्हा, प्रेस और माइक्रोवेब आदि. लेकिन आपने कभी इस प्लग को देखा हो तो आपको पता होगा कि इसके तीन पिनों में से दो पिन तो समान्य होते हैं लेकिन एक पिन दोनों से बड़ा और ज्यादा मोटा होता है. आइए बताते हैं इसके पीछे की वजह.
आपको बता दें कि प्लग में दो पिन तो मैन होते हैं, जिससे करंट डिवाइस के अंदर जाते हैं. लेकिन जो तीसरी बड़ी पिन होती है उसे अर्थिंग पिन कहा जाता है. इलेक्ट्रिक प्लग में एक पॉजिटिव और दूसरा नेगेटिव पिन होता है. लेकिन जो सबसे ऊपर तीसरा या जिसे पहला पिन कहा जा रहा है, अर्थिंग का होता है. अर्थिंग यानी वह वायर जो इलेक्ट्रिक पोल में नहीं बल्कि जमीन के नीचे जाकर एक विशेष प्रक्रिया के तहत कनेक्ट किया गया है.
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जब भी प्लग को कनेक्ट किया जाता है, तो ये लंबी पिन में कनेक्शन स्थापित होने से पहले जो भी करंट बच जाता है उसे अर्थ तक पहुंचा देती हैं. इस तरह कनेक्ट करते वक्त हमारा डिवाइस सबसे पहले अर्थ से कनेक्ट होता है और बाद में बिजली के मेन्स (फेज और न्यूट्रल) पिन से. मान लीजिए अगर इस पिन को लंबा और बड़ा नहीं बनाया गया तो ये अर्थिंग मिलने से पहले ही यंत्र को नुकसान पहुंचा सकता है.
इसके अलावा पिन बड़ा होने की वजह से शेष दोनों पिनों को इलेक्ट्रिक फीमेल प्लग में फिक्स बनाए रखने में सहायता होती है.
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डिस्कनेक्ट करते वक्त कई बार डिवाइस में किसी कारण से कुछ करंट बचा रह जाता है. ऐसे में प्लग को डिस्कनेक्ट करते वक्त मेन्स की पिनें पहले बाहर निकलती हैं. जबकि लंबी और बड़ी पिन बाद में सॉकेट से बाहर निकलती है. ऐसे में बचे रह गए या लीक हो रहे करंट को ये अर्थ में भेज देती है.
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