DNA Analysis: असम के अवैध मदरसों का 'टेरर मॉडल'! समझें कैसे जगह ले रहा है आतंक?
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DNA Analysis: असम के अवैध मदरसों का 'टेरर मॉडल'! समझें कैसे जगह ले रहा है आतंक?

DNA Analysis: असम में अवैध मदरसों पर चल रहे बुलडोजर की ऐसी तस्वीरें वायरल हो जाती हैं. अवैध निर्माण पर हो रही सख्त कार्रवाई को धर्म के चश्मे से देखा जाता है. लेकिन आपका ये जानना जरूरी है कि असम में सरकारी फंड पर चलने वाले मदरसे बंद हो चुके हैं.

DNA Analysis: असम के अवैध मदरसों का 'टेरर मॉडल'! समझें कैसे जगह ले रहा है आतंक?

DNA Analysis: इन दिनों असम की चर्चा अवैध मदरसों पर हो रही कार्रवाई को लेकर हो रही है. लेकिन ये बात छिपी रह गई कि जिस मदरसे पर कार्रवाई हुई, उसका कनेक्शन दो आतंकियों से था, जिनको पुलिस ने कल गिरफ्तार किया था. असम पुलिस ने सोरभोग इलाके से अकबर अली और अबुल कलाम नाम के 2 लोगों को गिरफ्तार किया. इनका संबंध AQIS यानी अलकायदा इंडियन सब कॉन्टिनेंट, और अंसारुल्लाह बांग्ला टीम नाम के आतंकी संगठनों से था. पुलिस के मुताबिक ये दोनों आतंकी, मदरसे की फंडिंग करते थे और इनके पास जो पैसा आता था वो जिहादी गतिविधियों को चलाने के लिए बाहर से आता था.
 
असम में मदरसों का कुछ ऐसा है हाल

असम में अवैध मदरसों पर चल रहे बुलडोजर की ऐसी तस्वीरें वायरल हो जाती हैं. अवैध निर्माण पर हो रही सख्त कार्रवाई को धर्म के चश्मे से देखा जाता है. लेकिन आपका ये जानना जरूरी है कि असम में सरकारी फंड पर चलने वाले मदरसे बंद हो चुके हैं. इसीलिए फिलहाल जितने भी मदरसे चल रह हैं, वो प्राइवेट फंडिग के सहारे चल रहे हैं. जिस मदरसे को तोड़ा जा रहा है वो सरकारी जमीन पर बना अवैध मदरसा था और दोनों आतंकियों के पैसे से चलाया जा रहा था. पुलिस का दावा है कि इस मदरसे के जरिए बच्चों को कट्टर जिहाद की ट्रेनिंग दी जाने की कोशिश थी. दरअसल असम पिछले काफी समय से मदरसो और आतंकी गतिविधियों को लेकर अतिसंवेदनशील हो गया है.

मदरसे बन रहे आतंक के अड्डे?
असम में आतंक के 2 मॉड्यूल का पता चला है. इनको आप बारपेटा और मोरीगांव मॉड्यूल कह सकते हैं. ये दोनों मॉड्यूल AQIS यानी अलकायदा इंडियन सब कॉन्टिनेंट चला रहा है. AQIS असम में अपनी आंतकी गतिविधियां अंसारुल्लाह बांग्ला टीम के जरिए अंजाम दे रहा है. ये मॉड्यूल एक खास मोबाइल ऐप इस्तेमाल करता है. जिसकी चैट को ट्रैक करना मुश्किल है. अभी तक जितने भी लोग पकड़े गए हैं, वो अंसारुल्लाह बांग्ला टीम या AQIS से जुड़े हुए थे. अब इसे आप इत्तेफाक कहिए या साजिश, सभी का कनेक्शन या तो किसी मदरसे से जुड़ा था, या फिर वो किसी मस्जिद के इमाम थे.

कुछ समय पहले असम के मुख्यमंत्री हेमंता बिस्वा सरमा ने अवैध मदरसों को लेकर चिंता जताई थी. उन्होंने ये कहा था, कि उनके प्रदेश में अवैध रूप से बन रहा कोई भी निर्माण गिरा दिया जाएगा. ये कार्रवाई बड़े पैमाने पर अवैध मदरसों पर भी की गई थी. देखा जाए तो करीब 700 सरकारी मदरसे बंद किए जा चुके हैं. जो प्राइवेट मदरसे चलाए जा रहे हैं, उनकी निगरानी की जा रही है. प्रदेश के मुख्यमंत्री के आदेश पर ऐसी सख्ती किया जाना, राजधर्म की तरह देखा गया है. हालांकि इसका खूब विरोध हुआ. सच्चाई ये है कि असम में पिछले कुछ समय से आतंकी संगठन अलकायदा और अंसारुल्ला बांग्ला टीम काफी सक्रिय हुए हैं. NRC की चर्चा के बाद से ही असम, अलकायदा का प्राइम टारगेट बन गया था. सीधे तौर पर अलकायदा भारत में अपनी गतिविधियां अंजाम नहीं दे सकता था, इसीलिए उसने अंसारुल्ला बांग्ला टीम से हाथ मिला लिया. जहां तक अलकायदा की बात है तो उसने भारतीय उपमहाद्वीप में सक्रिय होने के लिए AQIS यानी अलकायदा का इंडियन सबकॉन्टिनेंट विंग तैयार किया है. 2015 में इस संगठन को आतंकी हमले के लिए बनाया गया था. अल जवाहिरी ने कई स्थानीय आतंकी संगठनों को जोड़कर ये बनाया था. AQIS मुख्य तौर पर पाकिस्तान और बांग्लादेश में काफी सक्रिय है. 2014 में इसने पाकिस्तान में कराची नेवल डॉकयार्ड पर हमला किया था. 2016 में ये बांग्लादेश में नास्तिक मुस्लिम लेखकों की हत्या में शामिल था. नुपुर शर्मा के मामले में भी AQIS ने आत्मघाती हमलों की धमकी दी थी.

AQIS को कहां से मिलता है सपोर्ट?

AQIS के लिए लॉजिस्टिक सपोर्ट देने और स्लीपर सेल बनाने का काम, उसकी B टीम अंसारुल्ला बांग्ला टीम करने लगी. अंसारुल्ला बांग्ला टीम जिसे ABT भी कहते हैं, वो बांग्लादेश का आतंकी संगठन है. इसे वर्ष 2015 में बनाया गया था. बांग्लादेश में इस आतंकी संगठन पर प्रतिबंध है. भारत में ये पश्चिम बंगाल और असम में सक्रिय है. बांग्लादेश के नास्तिक मुस्लिम लेखकों की हत्या में ये शामिल रहा है. भारतीय मूल के अमेरिकी लेखक अविजीत रॉय की हत्या में भी ये शामिल था. रोहिंग्याओं में भी ये संगठन घुसपैठ कर चुका है.

ये दोनों संगठन, असम के मुख्यमंत्री ही नहीं देश के लिए भी बड़ी चिंता का सबब बन गए हैं. असम में हाल फिलहाल में AQIS और ABT से जुड़े 37 आतंकी पकड़े जा चुके हैं. ये सभी लोग आम जिंदगी में, सामान्य काम कर रहे थे. 28 जुलाई को मोरीगांव में 2 लोगों को आतंकी गतिविधियों के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. इन दोनों लोगों में एक व्यक्ति मदरसे का मुफ्ती था, और दूसरा उसका सहयोगी था. 4 अगस्त को इन्हीं लोगों से संबंधित अवैध मदरसे को तोड़ा गया है, जिसको लेकर विवाद हो गया था. इसी तरह से 12 अगस्त को मोरीगांव में पुलिस ने फिर एक बड़ी कार्रवाई की, जिसमें उन्होंने मस्जिद के एक इमाम को गिरफ्तार किया था. अहमद अली नाम के इस इमाम पर मस्जिद की आड़ में आतंकी गतिविधयां चलाने और ट्रेनिंग देने का आरोप था. इसके बाद 21 अगस्त को ग्वालपाड़ा में अब्दुस सुभान और जलालुद्दीन शेख नाम के दो इमाम गिरफ्तार किए गए. इन दोनों पर स्लीपर सेल ट्रेनिंग देने का आरोप है. इन पर ये भी आरोप है कि इन्होंने 2019 में धर्मसभा की, जिसमें इन लोगों ने अलकायदा से जुड़े बांग्लादेशी नागरिकों को गेस्ट के तौर पर बुलाया था.

गिरफ्तारी के बाद इन सभी ने ये स्वीकार किया ये लोग फरार बांग्लादेशी नागरिकों को आश्रय देते थे और ABT के आतंकियों की लॉजिस्टिक सपोर्ट मुहैय्या करवाते थे. इन्हीं से हुई पूछताछ में ये भी पता चला कि इन लोगों का मुख्य काम, अलकायदा के लिए स्लीपर सेल तैयार करना था.

बात सिर्फ मदरसे की नहीं
अब आप समझ रहे होंगे कि असम में क्या चल रहा है. मदरसों पर हो रही कार्रवाई के पीछे वजह क्या है, और कैसे इस मामले को धर्म के एंगल से जोड़कर, अलग माहौल बनाया जा रहा है. मदरसों का टूटना अखबारों की सुर्खियां बन रही हैं. मदरसों का टूटना धर्म के नाम पर उबाल की वजह बन रहा है. लेकिन अवैध मदरसों के टूटने की वजह, और उसके नाम पर चल रही साजिश के बारे मे चर्चा कम है. 

धर्म की शिक्षा दिया जाना गलत नहीं है. लेकिन धर्म की शिक्षा की आड़ में आतंकी एजेंडा चलाना गलत है. असम में हो यही रही है कि धर्म की शिक्षा के नाम पर, कुछ शिक्षक, अवैध मदरसों से आतंकियों का एजेंडा चला रहे हैँ. मदरसों की दी जा रही शिक्षा को लेकर विवाद बहुत पुराना है. और कई इस्लामिक स्कॉलर ये मानते हैं कि मदरसों की शिक्षा का आधुनिकीकरण जरूरी है. इसके अलावा मदरसों में दी जा रही शिक्षा के स्तर को लेकर स्टेट बोर्ड तो हैं, लेकिन अवैध मदरसों में दी जा रही शिक्षा पर उनका नियंत्रण नहीं है. सच्चाई ये है कि देश के सभी मदरसों की शिक्षा की कोई गवर्निंग बॉडी नहीं है जो, इनकी शिक्षा पद्धति या कोर्सेज़ पर नजर रख सके.

कुछ ऐसा है मदरसों का हाल
फिलहाल देश में चल रहे मदरसों की शिक्षा को लेकर एक खास जानकारी हम आपके देना चाहते हैं. PHD छात्रों की Theses का Digitalization करने वाली संस्था शोध गंगा के मुताबिक, मदरसों में पढ़ने वाले सिर्फ 2 प्रतिशत छात्र भविष्य में उच्च शिक्षा हासिल करना चाहते हैं. 42 प्रतिशत छात्रों का उद्देश्य भविष्य में धर्म का प्रचार करना होता है. 16 प्रतिशत छात्र शिक्षक के रूप में धर्म की शिक्षा देना चाहते हैं. 8 प्रतिशत छात्र इस्लाम की सेवा करना चाहते हैं, 30 प्रतिशत का मकसद..मदरसों से शिक्षा हासिल करने के बाद सामाजिक कार्य करना होता है. जबकि 2 प्रतिशत छात्र भविष्य में धर्म गुरू बनना चाहते हैं .

यानी मदरसों से पढ़ने के बाद विज्ञान या Technology के क्षेत्र में सफल होने की इच्छा नाम मात्र के छात्रों की होती है. हालांकि इसके लिए छात्र नहीं बल्कि वो व्यवस्था दोषी है जो धार्मिक शिक्षा के नाम पर छात्रों को आधुनिक शिक्षा से वंचित कर रही है. ये हाल तब है जब भारत में रहने वाले 20 करोड़ मुसलमानों की साक्षरता दर, अनुसूचित जाति और जनजाति और OBC से भी कम है. यानी आजादी के बाद लंबे समय तक जिन सरकारों ने मुस्लिमों का तुष्टीकरण किया, उन्हीं को शिक्षा, स्वास्थ्य और समृद्धि के मामले में सबसे पीछे धकेल दिया गया. बचपन से ही धार्मिक शिक्षा की ओर ढकेलने वाली प्रथा का बड़ा असर पड़ता है.

वर्ष 2015 में 1200 बच्चों पर एक शोध किया गया. इसमें 24 प्रतिशत ईसाई, 43 प्रतिशत मुस्लिम और 27 प्रतिशत धर्म को ना मानने वाले बच्चे शामिल थे .
इस शोध में पाया गया कि जिन बच्चों के परिवार बहुत धार्मिक थे, वो बच्चे अपनी चीज़ों को दूसरों के साथ आसानी से बांटने के लिए तैयार नहीं होते थे. ऐसे बच्चे दूसरे बच्चों का आंकलन उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति के आधार पर कर रहे थे. धार्मिक परिवारों से आने वाले बच्चे शरारत करने वाले दूसरे बच्चों को सख्त सज़ा देने के पक्ष में थे. जिन बच्चों के परिवार वाले किसी भी धर्म में नहीं मानते थे, वो ज्यादा मिलनसार, अपनी चीजों को बांटने वाले और दूसरे बच्चों को सजा ना देने के पक्ष में थे. इस समय दुनिया की आबादी करीब 750 करोड़ है और इनमें से 84 प्रतिशत यानी 630 करोड़ लोग खुद को किसी का किसी धर्म से जुड़ा मानते हैं और ज्यादातर जगहों पर धर्म के नाम पर हिंसा हो रही है. अब ये फैसला करना जरूरी है कि बच्चों को धार्मिक कट्टरता की ओर ले जाना है, या फिर उन्हें धर्म के असली मायने समझाते हुए एक बेहतर इंसान बनाना है.

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