West Bengal में दीदी की जीत के 5 फैक्टर, कैसे तीसरी बार किला बचाने में सफल हुईं ममता
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव (West Bengal Assembly Election 2021) में तृणमूल कांग्रेस (TMC) की धमाकेदार जीत को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने साम्प्रदायिक सौहार्द को बचाए रखने की अपनी लड़ाई की जीत करार दिया है. बीजेपी के सियासी चक्रव्यूह को आखिर ममता ने कैसे भेदा, अब इसकी चर्चा हो रही है
नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव (West Bengal Assembly Election 2021) में तृणमूल कांग्रेस (TMC) की धमाकेदार जीत को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने साम्प्रदायिक सौहार्द को बचाए रखने की अपनी लड़ाई की जीत करार दिया है. ममता बनर्जी ने जीत के बाद कहा, ‘मैं जनता को देश और साम्प्रदायिक सौहार्द की रक्षा करने के लिए धन्यवाद देती हूं. मुझे बंगाल पर गर्व है. यह शानदार जीत है, इस पर कोई कुछ नहीं कह सकेगा. उन्होंने (भाजपा) 200 सीटें जीतने का दावा किया था. क्या इसके बाद वे अपना चेहरा दिखा सकेंगे?’
कैसे टूटा बीजेपी का चक्रव्यूह?
लंबे चुनावी कार्यक्रम और बंगाल में बीजेपी के सियासी चक्रव्यूह को आखिर ममता बनर्जी ने कैसे भेदा, अब इसकी चर्चा हो रही है ऐसे में क्या रहे टीएमसी की जीत के फैक्टर और मायने आइये जानते हैं. साफ हो चुका है कि बंगाल की सीएम ने इस बार भी 200 से ज्यादा सीट लेकर पूरे दमखम से अपना गढ़ बचाया है. बीजेपी के सियासी चक्रव्यूह को तोड़ कर ममता बनर्जी ने साफ कर दिया कि बीजेपी के तमाम आरोपों के बावजूद वो ही पश्चिम बंगाल की सर्वमान्य नेता हैं.
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1. 'दीदी' पर भरोसा बरकरार
विधानसभा चुनाव में टीएमसी को इस बार पहले से बड़ी कामयाबी मिली है. साफ है कि बंगाल की जनता ने एक बार फिर ममता बनर्जी पर भरोसा जताया है. नतीजों ने ये भी बता दिया है कि एक अलग रणनीति पर चली ममता अपनी मुहिम में कामयाब रहीं. लोकतंत्र में जनता ही जनार्दन होती है, जिसने साफ किया कि कई भरोसेमंद और मजबूत नेताओं के पार्टी छोड़ने के बाद भी टीएमसी ने अपना हौसला नहीं खोया.
2. 'बंगाली बनाम बाहरी'
चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी का फोकस जहां तोलाबाजी और कटमनी पर रहा वहीं टीएमसी शुरुआत से ही चुनावी हवा को बंगाली बनाम बाहरी की तरफ मोड़ने में कामयाब रही. TMC ने पीएम मोदी और लंबे समय से बंगाल में डटे बीजेपी नेताओं को टूरिस्ट गैंग करार दिया था. वहीं ममता बनर्जी की टीम ने 2021 के चुनाव को बंगाल की बेटी बनाम अन्य बनाने की पूरी कोशिश की जो कामयाब रही, ये कुछ वैसा ही रहा जैसे 2016 में मां, माटी और मानुष का नारा काम कर गया था.
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3.'सहानुभूति कार्ड'
अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस की मुखिया और 'फ्रायर ब्रांड' नेता, ममता बनर्जी को उनकी आक्रामकता, दो टूक लहजे और अक्सर गुस्से के लिए भी जाना जाता है. ऐसे में ममता बनर्जी को जब नंदीग्राम में चोट लगी, वो प्लास्टर लगवाने के बाद लंबे समय तक व्हीलचेयर पर प्रचार करती रहीं. उन्होंने व्हीलचेयर पर कई रैलियों को संबोधित किया और रोड शो भी निकाले. नतीजे ये भी बताते हैं कि इस तरह ममता बनर्जी का सहानुभूति कार्ड भी काम कर गया.
4.'बेअसर रहे बीजेपी के आरोप'
बीजेपी नेताओं ने सीएम ममता बनर्जी पर तुष्टीकरण का आरोप लगाया. चुनाव का ऐलान होने से पहले ही बीजेपी कोयला घोटाले को लेकर उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी पर हमलावर रही. वहीं तोलाबाजी, कटमनी और बीजेपी कार्यकर्ताओं की हत्या जैसे कई हमलों के बावजूद नतीजे TMC के पक्ष में गए. यानी बीजेपी का हमला और उसका आक्रामक प्रचार दोनों बेअसर रहा.
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5.'सॉफ्ट हिंदुत्व'
बीजेपी ने जहां चुनाव में जय श्रीराम के नारे को लेकर लगातार ममता और टीएमसी पर निशाना साधा. इसी दौरान ममता ने इसकी काट ढूंढते हुए सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पकड़ ली. बंगाल में नेता जी सुभाष चंद्र बोस से जुडे़ कार्यक्रम में भी जब जय श्री राम का नारा लगा तो ममता ने नाराजगी जताते हुए अपना संबोधन चंद शब्दों में समाप्त कर दिया.
दुर्गा पूजा की टाइमिंग और मुस्लिमों पर ममता लुटाने जैसे आरोपों के बीच ओवैसी और फुरफुरा शरीफ के पीरजादा की मौजूदगी भी ममता के इरादों को डिगा नहीं पाई. असदुद्दीन ओवैसी और फुरफुरा शरीफ दरगाह के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी की पार्टी ने भी चुनाव में ताल ठोकी थी. ऐसे में TMC की लैंड स्लाइड विक्ट्री से यह साफ हो गया है कि बंगाल में ओवैसी-पीरजादा फैक्टर पूरी तरह फेल रहा.
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