तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पलानीस्वामी ने केंद्र सरकार की नई शिक्षा नीति (NEP) में तीन भाषा वाले फॉर्मूले को राज्य में लागू करने से इनकार कर दिया है.
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चेन्नई: तमिलनाडु (Tamil Nadu) के मुख्यमंत्री पलानीस्वामी (Palaniswami) ने केंद्र सरकार की नई शिक्षा नीति (NEP) में तीन भाषा वाले फॉर्मूले को राज्य में लागू करने से इनकार कर दिया है. राज्य सरकार ने केंद्र सरकार से स्थानीय भाषा नीति (तमिल और अंग्रेजी) पर चलने के संकेत देते हुए फैसले पर दोबारा विचार करने की अपील की है.
पलानीस्वामी ने कहा, "नई शिक्षा नीति में तीन भाषा का फॉर्मूला दुखद और पीड़ादायी है. इसलिए राज्यों को अपनी नीति लागू करने की छूट देनी चाहिए. तमिलनाडु की जनता और सूबे के सभी राजनीतिक दल यहां लागू दो भाषा वाली नीति के पक्षधर हैं. इसलिए तमिलनाडु में ये फैसला लागू नहीं होगा."
पलानीस्वामी ने अपने बयान में कहा कि “NEP के मसौदे को लेकर उन्होंने जून 2019 में भी पीएम मोदी को चिठ्ठी लिखकर जनभावना की जानकारी दी थी और स्वतंत्रता दिवस के भाषण समेत विधानसभा सत्र के दौरान कई बार मैंने राज्य की 2 भाषा की नीति पर अटल रहने पर जोर दिया है."
हाल ही के दिनों में तमिलनाडु सरकार, राज्य की की विपक्षा पार्टियों से NEP के विरोध को लेकर साथ आने की रणनीति पर काम कर रही है. जिसमें केंद्र सरकार की 3 भाषा वाली पॉलिसी का सामूहिक विरोध करने के साथ हिंदी थोपने की मंशा का विरोध करने का फैसला हुआ. हालांकि, रविवार को केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक (Ramesh Pokhriyal Nishank) ने कहा था कि केंद्र सरकार किसी भी राज्य पर कोई भाषा लागू करने का दबाव नहीं डालेगी. इसे लेकर तमिल भाषा में एक ट्वीट भी किया गया था.
तमिलनाडु में 2 भाषा नीति का इतिहास
पलानीस्वामी ने राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और पहली द्रविड़ पार्टी के नेता सीएन अन्नादुरई (CN Annadurai) का हवाला देते हुए कहा कि विधानसभा में 1968 में ही 2 भाषा (तमिल और अंग्रेजी) आधारित शिक्षा नीति लागू करने का फैसला हो गया था. इसी दौरान ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (AIADMK) संस्थापक एमजी रामचंद्रन (MG Ramachandran) के मुख्यमंत्री काल के दौरान 1986 में 2 भाषा पर आधारित शिक्षा नीति को और मजबूत बनाने की बात कही गई थी. वहीं पूर्व सीएम जे जयललिता ( Ex Chief Minister Jayalaltihaa) ने भी कहा था कि गैर हिंदी भाषी राज्यों पर हिंदी भाषा को थोपना सही नहीं है. गौरतलब है कि तमिलनाडु में 1965 के दौरान व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए थे, जब राज्य की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने हिंदी को राज्य की अधिकारिक भाषा का दर्जा देने की कोशिश की थी.