मध्य प्रदेश: एक किलो टमाटर खरीदने के लिये पांच किलो उड़द बेचने को मजबूर हैं किसान
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मध्य प्रदेश: एक किलो टमाटर खरीदने के लिये पांच किलो उड़द बेचने को मजबूर हैं किसान

फसलों के लाभकारी मूल्य की मांग को लेकर इसी साल किसानों के हिंसक आंदोलन के गवाह मध्य प्रदेश में एक बार फिर यह मुद्दा गरमाने की आहट है

उपज के सही दाम नहीं मिलने पर कुछ महीने पहले किसानों ने उग्र प्रदर्शन किया था

इंदौर: फसलों के लाभकारी मूल्य की मांग को लेकर इसी साल किसानों के हिंसक आंदोलन के गवाह मध्य प्रदेश में एक बार फिर यह मुद्दा गरमाने की आहट है. हालत यह है कि दमोह जिले के किसान सीताराम पटेल ने हाल ही में कीटनाशक पीकर कथित तौर पर इसलिये जान देने की कोशिश की, क्योंकि मंडी में उड़द की उनकी उपज को औने-पौने दाम पर खरीदने का प्रयास किया जा रहा था. कारोबारियों ने पटेल की उड़द के भाव केवल 1,200 रुपये प्रति क्विंटल लगाये थे, जबकि सरकार ने इस दलहन का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 5,400 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है. पटेल सूबे के उन हजारों निराश किसानों में शामिल हैं, जिन्होंने इस उम्मीद में दलहनी फसलें बोयी थीं कि इनकी पैदावार से वे चांदी काटेंगे. लेकिन तीन प्रमुख दलहनों की कीमतें औंधे मुंह गिरने के कारण किसानों का गणित बुरी तरह बिगड़ गया है और खेती उनके लिये घाटे का सौदा साबित हो रही है. 

  1. उड़द के भाव मंडी में मिल रहे हैं केवल 1200 रुपये प्रति क्विंटल
  2. सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य 5,400 रुपये प्रति क्विंटल तय किया
  3. दलहनों की कीमत गिरने से किसानों का गणित बिगड़ गया
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प्रदेश की मंडियों में उड़द के साथ तुअर (अरहर) और मूंग एमएसपी से नीचे बिक रही हैं. फसलों के लाभकारी मूल्य की मांग को लेकर जून में किसानों का हिंसक आंदोलन झेल चुके सूबे में कृषि क्षेत्र के संकट का मुद्दा फिर गरमाता नजर आ रहा है. गैर राजनीतिक किसान संगठन आम किसान यूनियन के संस्थापक सदस्य केदार सिरोही ने बताया कि प्रदेश की थोक मंडियों में इन दिनों उड़द औसतन 15 रुपये प्रति किलोग्राम बिक रही है, जबकि खुदरा बाजार में टमाटर का दाम बढ़कर 70 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंच गया है. यानी किसानों को एक किलो टमाटर खरीदने के लिये पांच किलो उड़द बेचनी पड़ रही है.

...तो इन वजहों से पैदा हुआ मध्यप्रदेश में किसान आंदोलन

सिरोही ने कहा कि दलहनों के भाव में भारी गिरावट के चलते सूबे के तुअर (अरहर) और मूंग उत्पादक किसानों की भी हालत खराब है. उन्होंने केंद्र और प्रदेश के स्तर पर सरकारी नीतियों को विरोधाभासी बताते हुए कहा कि एक तरफ केंद्र सरकार ने विदेशों से सस्ती दलहनों का बड़े पैमाने पर आयात कर लिया है, तो दूसरी ओर घरेलू बाजार में दलहनों के दाम गिरने के बाद प्रदेश सरकार किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य दिलाने के नाम पर बड़ी-बड़ी बातें कर रही है.

प्रदेश सरकार ने किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाने के मकसद से महत्वाकांक्षी भावांतर भुगतान योजना पेश की है. इस योजना में तीन दलहनों समेत आठ फसलों को शामिल किया गया है. योजना के तहत प्रदेश सरकार किसानों को इन फसलों के एमएसपी और मंडियों में इनके वास्तविक बिक्री मूल्य के अंतर का भुगतान करेगी ताकि अन्नदाताओं के खेती के घाटे की भरपाई हो सके. प्रदेश सरकार के एक प्रवक्ता ने बताया कि भावांतर भुगतान योजना के पहले चरण में प्रदेश के 1.25 लाख किसानों को 197 करोड़ रुपये की भावांतर राशि प्रदान की जायेगी. इन किसानों ने 16 से 31 अक्तूबर के बीच मंडियों में अपनी फसल बेची थी.

इस बीच, कारोबारियों पर भी आरोप लग रहे हैं कि भावान्तर भुगतान योजना शुरू होने के बाद उन्होंने अपने फायदे के लिये दलहनों के दाम गिरा दिये हैं. लेकिन दाल मिलों के प्रमुख संगठन ऑल इंडिया दाल मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेश अग्रवाल दलहनों के दामों में गिरावट को लेकर इस योजना पर सवाल उठाते हैं. अग्रवाल ने कहा कि भावान्तर भुगतान योजना का लाभ लेने के लिये सूबे के दलहन उत्पादक किसान भारी हड़बड़ी दिखा रहे हैं. इससे मंडियों में दलहनों की आवक इतनी ज्यादा बढ़ गयी है कि इनके दाम गिरना स्वाभाविक है. इस गिरावट के लिये कारोबारियों को बदनाम करना उचित नहीं है.

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