'कमर बांध लो भावी घुमक्कड़ों, संसार तुम्हारे स्वागत के लिए बेकरार है'
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'कमर बांध लो भावी घुमक्कड़ों, संसार तुम्हारे स्वागत के लिए बेकरार है'

राहुल सांकृत्यायन का मानना था कि घुमक्कड़ी मानव-मन की मुक्ति का साधन होने के साथ-साथ अपने क्षितिज विस्तार का भी साधन है. 

राहुल सांकृत्यायन का दार्जिलिंग में 14 अप्रैल 1963 को उनका निधन हो गया.(फोटो-YouTube )

नई दिल्ली: राहुल सांकृत्यायन की आज 125वीं जयंती हैं. राहुल सांकृत्यायन का मानना था कि घुमक्कड़ी मानव-मन की मुक्ति का साधन होने के साथ-साथ अपने क्षितिज विस्तार का भी साधन है. उन्होंने कहा भी था कि- 'कमर बांध लो भावी घुमक्कड़ों, संसार तुम्हारे स्वागत के लिए बेकरार है.' राहुल ने अपनी यात्रा के अनुभवों को आत्मसात करते हुए ‘घुमक्कड़ शास्त्र’ भी रचा. वे एक ऐसे घुमक्कड़ थे जो सच्चे ज्ञान की तलाश में था और जब भी सच को दबाने की कोशिश की गई तो वह बागी हो गए. उनका सम्पूर्ण जीवन अन्तर्विरोधों से भरा पड़ा है.

  1.  राहुल सांकृत्यायन के बचपन का नाम केदारनाथ पांडेय था.
  2.  राहुल सांकृत्यायन के पिता का नाम गोवर्धन पांडेय किसान था.
  3.  उनके बचपन में ही माता कुलवंती का देहांत गया. 

राहुल सांकृत्यायन घुमक्कड़ी के बारे में कहते हैं, 'मेरी समझ में दुनिया की सर्वश्रेष्ठ वस्तु है घुमक्कड़ी. घुमक्कड़ से बढ़कर व्यक्ति और समाज का कोई हितकारी नहीं हो सकता. दुनिया दुख में हो चाहे सुख में, सभी समय यदि सहारा पाती है तो घुमक्कड़ों की ही ओर से.' राहुल सांकृत्यायन के जीवन का मूलमंत्र घुमक्कड़ी यानी गतिशीलता थी. राहुल सांकृत्यायन को हिंदी यात्रा साहित्य का जनक माना जाता है. हिंदी में राहुल साकृत्यायन जैसा विद्वान, घुमक्कड़ व महापंडित की उपाधि से स्मरण किया जाने वाला कोई अन्य साहित्यकार नहीं मिलेगा.

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घुमक्कड़ी उनके लिए वृत्ति नहीं वरन उनका धर्म था. वे एक प्रतिष्ठित बहुभाषाविद् थे और बीसवीं सदी के पूर्वार्ध में उन्होंने यात्रा वृतांत/यात्रा साहित्य तथा विश्व-दर्शन के क्षेत्र में साहित्यिक योगदान दिए हैं. उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के पंदहा गांव में 9 अप्रैल, 1893 को जन्मे राहुल सांकृत्यायन के बचपन का नाम केदारनाथ पांडेय था. उनके पिता गोवर्धन पांडेय किसान थे. उनके बचपन में ही माता कुलवंती का देहांत गया. उनका पालन-पोषण उनके नाना-नानी ने किया था. प्राथमिक शिक्षा के लिए उन्हें गांव के ही एक मदरसे में भेजा गया. उनका विवाह बचपन में ही कर दिया गया था, लेकिन अपनी यायावरी स्वभाव के कारण ये वहां भी टिक नहीं पाये.

चौदह वर्ष की अवस्था में ये कलकत्ता भाग आए. इनके मन में ज्ञान की भूख में वह निरंतर घूमते रहते. राहुल जी का पूरा जीवन ही रचनाधर्मिता की यात्रा थी. वे जहां भी गए वहां की भाषा और बोलियों को सीखकर वहां के लोगों में रच बस गए. उस जगह की संस्कृति, समाज व साहित्य का गूढ़ अध्ययन किया. 

राहुल सांकृत्यायन की प्रमुख कृतियां
राहुल सांकृत्यायन ने अपने जीवन काल में अलग-अलग देशों की यात्रा की. इस कारण वे बहुभाषी बने. उन्होंने हिंदी, संस्कृत, पालि, भोजपुरी, उर्दू, पर्शियन, अरबी, तमिल, कन्नड़, तिब्बती, फ्रेंच और रूसी आदि भाषाओं में कई किताबें लिखीं. 

कहानी संग्रह : सतमी के बच्चे, वोल्गा से गंगा, बहुरंगी मधुपुरी, कनैला की कथा. 
उपन्यास : बाईसवीं सदी, जीने के लिए, सिंह सेनापति, जय यौधेय, भागो नहीं, दुनिया को बदलो, मधुर स्वप्न, राजस्थानी रनिवास, विस्मृत यात्री, दिवोदास
आत्मकथा : मेरी जीवन यात्रा. 
जीवनी : बचपन की स्मृतियां, सरदार पृथ्वीसिंह, नए भारत के नए नेता, अतीत से वर्तमान, लेनिन, स्तालिन, कार्ल मार्क्स, माओ-त्से-तुंग, घुमक्कड़ स्वामी, मेरे असहयोग के साथी, जिनका मैं कृतज्ञ, वीर चंद्रसिंह गढ़वाली, सिंहल घुमक्कड़ जयवर्धन, कप्तान लाल, महामानव बुद्ध और सिंहल के वीर पुरुष. 
यात्रा साहित्य : मेरी तिब्बत यात्रा, मेरी लद्दाख यात्रा, किन्नर देश की ओर, चीन में क्या देखा, तिब्बत में सवा वर्ष, रूस में पच्चीस मास, घुमक्कड़-शास्त्र
सम्मान
साहित्य अकादमी पुरस्कार, पद्म भूषण, त्रिपिटिकाचार्य
निधन : राहुल सांकृत्यायन का दार्जिलिंग में 14 अप्रैल 1963 को निधन हो गया. 

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