त्रिपुरा: 25 साल में BJP को नहीं मिली कोई सीट, इस बार बनाई नई रणनीति
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त्रिपुरा: 25 साल में BJP को नहीं मिली कोई सीट, इस बार बनाई नई रणनीति

इस साल भाजपा 51 सीटों पर माकपा को चुनौती देने को तैयार है हालांकि पिछले साल पार्टी ने 50 सीटों पर चुनाव लड़ी थी लेकिन 49 सीटों पर जमानत जब्त हो गई.

2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को पहली बार त्रिपुरा में छह प्रतिशत वोट मिले (फाइल फोटो)

त्रिपुरा विधानसभा चुनाव इस बार बीजेपी के लिए बेहद अहम हैं. राज्‍यों के विधानसभा चुनावों में लगातार जीत दर्ज कर रही बीजेपी इस बार त्रिपुरा में अपनी दमदार उपस्थिति दिखाना चाहती है. वैसे यदि पिछले 25 सालों के रिकॉर्ड पर यदि नजर डाली जाए तो बीजेपी अभी तक यहां खाता नहीं खोल पाई है. लेकिन इस बार इसलिए पार्टी को बेहतर प्रदर्शन की उम्‍मीद है क्‍योंकि 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को इस राज्‍य में पहली बार सर्वाधिक छह प्रतिशत वोट मिले थे, जोकि दूसरी बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस के करीब थे. इसलिए बीजेपी को इस बार उम्‍मीद है कि वह त्रिपुरा में दमदार प्रदर्शन करेगी. इसके लिए पार्टी ने पिछले एक साल पहले ही कैडर बनाने के लिए अपनी रणनीति बनाई थी. पीएम मोदी की हालिया रैलियों में उमड़ी भीड़ यह बता रही है कि बीजेपी की जड़ें यहां जम रही हैं.

  1. 25 साल में भाजपा नहीं जीत पायी है एक भी सीट
  2. आदिवासियों के बीच बढ़ा है भाजपा का जनाधार
  3. माणिक सरकार हैं देश के सबसे गरीब सीएम

त्रिपुरा में 25 सालों से सीपीएम के नेतृत्‍व में लेफ्ट सरकार है. माणिक सरकार 20 सालों से राज्य के मुख्यमंत्री पद को संभाल रहे हैं. माणिक सरकार की स्‍वच्‍छ छवि और माकपा का दबदबा बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती है. हालांकि बीते कुछ सालों में संघ और आदिवासियों के बीच कुछ तालमेल अच्छा रहा है जिससे भाजपा को इसका लाभ मिल सकता है. इस साल भाजपा 51 सीटों पर माकपा को चुनौती देने को तैयार है हालांकि पिछले साल पार्टी ने 50 सीटों पर चुनाव लड़ी थी लेकिन 49 सीटों पर जमानत जब्त हो गई.

माकपा का है हर गांव में दबदबा
त्रिपुरा की राजनीति पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों की तुलना में अलग है. यहां मुख्यमंत्री माणिक सरकार स्वच्छ छवि के लिए जाने जाते हैं. यहां सरकारी योजनाओं का लाभ हर पंचायत तक पहुंचा है. राज्य में हर गांव में माकपा का संगठन बनाया गया है और हर गांव में संगठन फैले होने के कारण उनका काफी दबदबा है. यहां सरकारी योजनाओं की गुणवत्ता की जांच पंचायत स्तर के पदाधिकारी करते हैं. इसके अलावा हर माह योजनाओं की समीक्षा की जाती है और हर जरूरतमंदों की सूची तैयारी की जाती है.

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भाजपा का जनाधार और आदिवासियों के बीच पैठ
बीते 4 सालों में भाजपा को यहां अपना जनाधार बनाने में सफलता मिली है. दरअसल संघ की वजह से भाजपा का जनाधार राज्य के मूल आदिवासियों के बीच बढ़ा है. इसके अलावा बांग्लादेश से आकर बसे बंगालियों की वजह से मूल आदिवासी अल्पसंख्यक हो गए हैं. संघ से जुड़े एकल विद्यालय, वनवासी कल्याण आश्रम जैसे संगठन इन आदिवासियों के बीच पिछले कई सालों से काम कर रहे हैं. इस वजह से भाजपा को यहां काफी संख्या में कार्यकर्ता मिले हैं.

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पुरूषों से आगे हैं यहां महिलाएं
बीते दो विधानसभा चुनाव में महिलाओं की वोटिंग प्रतिशत पुरूषों के मुकाबले अच्छी रही है. साल 2013 में 91.82% वोटिंग हुई जिसमें महिलाओं की वोटिंग प्रतिशत 92.94 थी, जबकि पुरूषों की वोटिंग प्रतिशत 90.73 रही थी. वहीं साल 2008 में 91.22% वोटिंग हुई जिसमें पुरूषों की वोटिंग 90.74% और महिलाओं की वोटिंग 91.72% रही थी.

माणिक सरकार हैं देश के सबसे गरीब सीएम
त्रिपुरा में साल 1998 से माणिक सरकार मुख्यमंत्री पद को संभाल रहे हैं. उनके पास 1520 रूपए कैश इन हैंड और 2410 रूपए उनके बैंक खाते में है. उन्हें मुख्यमंत्री की सैलरी के तौर पर 25 हजार रूपए मिलते हैं, लेकिन माकपा के नियमों के तहत पार्टी को दे देते हैं और उन्हें स्टाइपेंड के रूप में 9 हजार रूपये मिलते हैं. इसके अलावा माणिक सरकार के पास न तो उनका खुद का मोबाइल है और न कार, यहां तक की उनके पास खुद का घर भी नहीं है. माणिक सरकार देश के सबसे गरीब सीएम हैं. राज्य के मुख्यमंत्री बनने के बाद से उनकी निजी संपत्ति में लगातार कमी आई है.

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