Maharashtra: उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) नेता अनिल परब ने मांग की है कि मुंबई के नए हाउसिंग प्रोजेक्ट्स में 50 प्रतिशत घर मराठी भाषी लोगों के लिए आरक्षित किए जाएं. उनका कहना है कि मराठी भाषी लोगों को मुंबई में घर देने से इंकार किया जा रहा है. जिसके बाद वह बाहर जाने को मजबूर हो रहे हैं. 


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शिवसेना (यूबीटी) विधायक अनिल परब जो विधान परिषद में मुंबई स्नातक सीट के लिए विपक्षी महा विकास अघाड़ी के उम्मीदवार भी हैं, उनका कहना है कि राज्य में में बनने वाले नए भवनों में महाराष्ट्रियों के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण हो. इसके लिए उन्होंने एक विधेयक भी पेश किया है. परब ने कहा कि मुंबई में महाराष्ट्रियों का प्रतिशत घट रहा है. अब महाराष्ट्रियों को मुंबई में घर नहीं दिए जा रहे हैं. महाराष्ट्रियों के


विधान परिषद में रखी थी मांग
शिवसेना (यूबीटी) नेता ने कहा कि पिछले साल उन्होंने विपक्षी सदस्य के रूप में विधान परिषद में एक गैर आधिकारिक विधेयक प्रस्तुत किया था, जिसमें नई आवासीय परियोजनाओं में उनके लिए 50 प्रतिशत आरक्षण की मांग की गई थी.


मानसून सत्र में आ सकता है विधेयक
विधेयक के 27 जून से शुरू होने वाले मानसून सत्र में चर्चा के लिए आने की संभावना है. परब ने कहा कि बड़े घरों के अलावा 500 वर्ग फीट तक के छोटे अपार्टमेंट का निर्माण भी किया जाना चाहिए, जिससे मराठी भाषी लोग उन्हें खरीद सकें.


मराठों को नहीं मिल रहा घर?
शिवसेना नेता ने परब ने कहा कि ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जब डेवलपर्स ने महाराष्ट्रीयनों को उनके खाने की पसंद या धर्म के आधार पर घर देने से मना कर दिया. उन्होंने कहा, "डेवलपर्स द्वारा महाराष्ट्रीयनों को जानबूझकर घर देने से मना करने का एक स्पष्ट पैटर्न है. धर्म या खाने की पसंद के आधार पर कोई भी भेदभाव असंवैधानिक है."


मांसाहारी होने पर नहीं दिया घर
परब ने एक घटना का जिक्र करते हुए बताया कि हाल ही में विले पार्ले में एक बिल्डर द्वारा महाराष्ट्रीयनों को सिर्फ इसलिए घर नहीं दिया कि वह नॉनवेज खाता था. जिसके बाद "विले पार्ले में महाराष्ट्रीयनों ने बिल्डर के खिलाफ विरोध प्रदर्शन भी किया. लेकिन सरकार ने इस मुद्दे पर कोई संज्ञान नहीं लिया. मीडिया द्वारा इस मुद्दे को उजागर किए जाने के बाद ही डेवलपर ने माफ़ी मांगी."


कानून बनाने की मांग
परब ने एक ऐसे कानून बनाने की मांग की है, जिसके तहत अगर डेवलपर मराठी लोगों को 50 प्रतिशत आरक्षण नहीं देता है तो उसे छह महीने की जेल या 10 लाख रुपये का जुर्माना या दोनों सजा के तौर पर मिले. यह आरक्षण सुनिश्चित करेगा कि मुंबई में महाराष्ट्रीयनों का प्रतिशत और कम न हो.