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नई दिल्ली: आज वो तमाम लोग, जो यूक्रेन के साथ सहानुभूति दिखा रहे हैं, उन्हें हम ये याद दिलाना चाहेंगे कि यूक्रेन ने ना तो परमाणु परीक्षण के मुद्दे पर भारत का साथ दिया है और ना ही आतंकवाद के मुद्दे पर कभी भारत के साथ खड़ा हुआ है. लेकिन आज वही यूक्रेन चाहता है कि भारत इस संघर्ष में उसकी मदद करे. भारत में यूक्रेन के राजदूत ने प्रधानमंत्री मोदी से इस मामले में हस्तक्षेप की मांग की है और कहा है कि अगर भारत चाहे तो इस तनाव को कम करने में यूक्रेन की काफी मदद कर सकता है. इसके अलावा, अमेरिका भी भारत पर इस बात के लिए दबाव बना रहा है कि उसे रूस के हमले की निंदा करनी चाहिए.
अमेरिका और पश्चिमी देश चाहते हैं कि भारत इस मामले में उनका साथ दे. लेकिन यहां एक बड़ा सवाल ये है कि इन देशों ने आज तक आतंकवाद के मुद्दे पर भारत को कोई सहयोग नहीं दिया. कश्मीर पर भारत के लिए कुछ नहीं किया. जब गलवान में चीन ने सोची समझी साजिश के तहत हमला किया, तब भी ये देश भारत की मदद के लिए नहीं आए. तो आज भारत इन देशों का साथ क्यों दे?
आज हमारे देश के लोगों को यूक्रेन के लोगों से ये सीखना चाहिए कि देश की रक्षा करने की जिम्मेदारी सिर्फ सेना की नहीं होती. कोई भी देश, केवल सेना से नहीं बनता. वो सेना, सरकार और नागरिकों की संगठित शक्ति से बनता है. अगर किसी देश के नागरिक ये सोचते हैं कि उनकी रक्षा की जिम्मेदारी सिर्फ सैनिकों की है और सैनिक तो बने ही मरने के लिए हैं तो उस देश को कोई नहीं बचा सकता.
दूसरी सीख ये है कि किसी भी देश के लिए आत्मनिर्भर होना जरूरी है. जो देश कमजोर होते हैं और दूसरे देशों पर निर्भर होते हैं, उनका हाल यूक्रेन और अफगानिस्तान के जैसा ही होता है. इस युद्ध से पहले तक यूरोप में ये धारणा बन चुकी थी कि 21वीं सदी, युद्ध की सदी नहीं है. ये आधुनिक युग है और इसमें अब युद्ध होने लगभग नामुमकिन हैं. ये धारणा इतनी गलत भी नहीं थी. क्योंकि यूरोप में दूसरे विश्व युद्ध के बाद से कोई बड़ा युद्ध नहीं लड़ा गया. लेकिन इस संघर्ष से ये सीख मिलती है कि युद्ध कभी भी और कहीं भी भी शुरू हो सकता है. इसके लिए आपको हमेशा तैयार रहना चाहिए.
चौथी सीख ये है कि किसी भी देश को अपने फैसले, अपने विवेक से लेने चाहिए. आज अगर यूक्रेन ने अमेरिका और ब्रिटेन के कहने अपने परमाणु हथियार नष्ट नहीं किए होते तो शायद इस युद्ध में उसकी स्थिति थोड़ी अलग होती. जबकि एक समय भारत के सामने भी यही चुनौती थी, जब हमने वर्ष 1998 में पोखरण में परमाणु परीक्षण किया था और अमेरिका चाहता था कि भारत अपने इन हथियारों को नष्ट कर दे. लेकिन भारत ने ऐसा नहीं किया और यही वजह है कि आज भारत की गिनती दुनिया के मजबूत देशों में होती है.
इस समय भारतीय छात्रों को पोलैंड और रोमानिया के रास्ते यूक्रेन से निकालने की कोशिश की जा रही है. यूक्रेन के अलग-अलग इलाकों से भारतीय छात्र रोमिनिया में पहुंच चुके हैं और अब इन्हें बसों में रोमानियां की राजधानी Bucharest (बुखारेस्ट) ले जाया जा रहा है. जहां से इन्हें भारत लाया जाएगा.
आज हमारे देश में इस बात पर भी बहस हो रही है कि इस युद्ध में भारत को अपनी भूमिका स्पष्ट करनी चाहिए और उसे यूक्रेन के समर्थन में रूस के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराना चाहिए. ये बात इस आधार पर कही जा रही है कि अगर भविष्य में रूस की तरह चीन ने भारत पर हमला कर दिया, तब भारत दूसरे देशों से किस तरह के पक्ष की उम्मीद करेगा. आज हम ऐसे लोगों को यूक्रेन के भारत विरोधी रोल के बारे में भी बताना चाहते हैं.
वर्ष 1998 में जब भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण किया था, उस समय संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में भारत पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाने के लिए एक प्रस्ताव लाया गया था. इस प्रस्ताव को दुनिया के जिन 25 देशों ने पेश किया था, उनमें यूक्रेन प्रमुख था. यूक्रेन ने तब संयुक्त राष्ट्र के मंच से ये मांग की थी कि भारत के परमाणु कार्यक्रम को बन्द करवा देना चाहिए और उस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगा कर उसे अलग-थलग कर देना चाहिए. यूक्रेन उस समय पाकिस्तान की भाषा बोल रहा था. इसलिए आज जब ये बात कही जा रही है कि भारत को यूक्रेन का समर्थन करना चाहिए, तब ये बात आपको भूलनी नहीं चाहिए कि भारत के परमाणु कार्यक्रम को रोकने के लिए यूक्रेन, पाकिस्तान के साथ जाकर खड़ा हो गया था.
यूक्रेन, पिछले तीन दशकों से पाकिस्तान को हथियार बेचने वाले सबसे बड़ा देश बना हुआ है. यानी पाकिस्तान की हथियारों की जरूरत यूक्रेन ही पूरा करता है. पिछले 30 वर्षों में पाकिस्तान यूक्रेन से 12 हजार करोड़ रुपये के हथियार खरीद चुका है. आज पाकिस्तान के पास जो 400 टैंक हैं, वो यूक्रेन के द्वारा ही उसे बेचे गए हैं. इसके अलावा यूक्रेन इस समय Fighter Jets की Technology और स्पेस रिसर्च में भी पाकिस्तान की पूरी मदद कर रहा है. यानी भविष्य में पाकिस्तान स्पेस में जो भी विस्तार करेगा, उसके पीछे यूक्रेन का हाथ होगा.
सोचिए, जो देश, भारत विरोधी प्रस्ताव लाता है, पाकिस्तान का सबसे बड़ा हमदर्द है, क्या भारत को ये सबकुछ भूल कर, इस लड़ाई में उसके लिए कूद जाना चाहिए? ये जानते हुए कि अगर भारत ने यूक्रेन का साथ दिया भी, तब भी यूक्रेन पाकिस्तान के लिए ही वफादार रहेगा. क्योंकि वो कभी नहीं चाहेगा कि पाकिस्तान किसी भी वजह से उससे हथियार खरीदने बन्द कर दे.
हमें यूक्रेन के नागरिकों के साथ पूरी सहानुभूति है. क्योंकि इस युद्ध में उनकी कोई गलती नहीं है. लेकिन आज आप को यूक्रेन का भारत विरोधी रुख भी याद रखना चाहिए और ये बात समझनी चाहिए कि यूक्रेन एक ऐसा देश है, जिसने कभी भारत का साथ नहीं दिया.