1.01 करोड़ की आबादी वाले उत्तराखंड में सर्दियों में केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री से सटे गांव के लोग कम ऊंचाई वाले इलाकों पर चले जाते हैं और बर्फबारी रुकने के साथ मौसम सुधरने पर वापस लौट आते हैं.
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नई दिल्ली: 1.01 करोड़ की आबादी वाले उत्तराखंड में सर्दियों में केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री से सटे गांव के लोग कम ऊंचाई वाले इलाकों पर चले जाते हैं और बर्फबारी रुकने के साथ मौसम सुधरने पर वापस लौट आते हैं. ऐसा सदियों से होता आया है लेकिन बीते एक दशक से कुछ उलटा ही हो रहा है. कुछ गांव में लोग नहीं लौट रहे हैं. इससे गांव के गांव खाली हो गए हैं. इन खाली पड़े गांवों को लोग 'भूतिया गांव' कहने लगे हैं. उत्तरखंड सरकार ने आबादी के इस पलायन पर सितंबर 2017 में पलायन आयोग बनाया था. आयोग के उपाध्यक्ष एसएस नेगी ने बताया कि पिछले एक दशक में 700 गांव खाली हो चुके हैं और करीब 1.19 लाख लोगों ने अपना पुश्तैनी घर छोड़ दिया. इनमें 50 फीसदी ने आजीविका के कारण अपना गांव छोड़ा और अन्य ने खराब शिक्षा व स्वास्थ्य कारणों से ऐसा किया.
6 साल में 734 गांव पूरी तरह खाली हुए
बीते साल उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने कहा था कि हमारे गांव धीरे-धीरे खाली हो रहे हैं. लोग अपने जीवनयापन के लिए हमेशा के लिए पहाड़ छोड़ रहे हैं. इस समस्या पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है.'
2011 की जनगणना और 2017 के बीच पलायन आयोग ने पाया कि 734 गांव पूरी तरह खाली हो चुके थे जबकि अन्य 565 में आबादी घटकर 50 फीसदी पर आ गई थी. नेगी ने कहा कि ये आंकड़े हैरान कर देने वाले हैं. क्योंकि लोग मूलभूत सुविधाओं के अभाव में गांव छोड़ रहे हैं. ज्यादातर गांव अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित हैं.
स्कूल-अस्पताल गांवों से कई किमी दूर
गृह मंत्री राजनाथ सिंह बीते साल उत्तराखंड के सीमांत गांवों के दौरे पर गए थे. तब उन्होंने कहा था कि वह इसका अध्ययन कराएंगे. यहां के बाशिंदों की जरूरतों पर स्टडी होगी. सीमा क्षेत्र में विकास के प्रोग्राम बढ़ेंगे. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, ऐसे 3 गांवों का जब दौरा किया गया तो पाया गया कि यहां अस्पताल और प्राइमरी स्कूल गांव से काफी दूर हैं.
मसलन बलूनी, नीति और सैना गांव से अस्पताल क्रमश: 5 किमी, 8 किमी और 7 किमी दूर स्थित है. यहां बिजली तो है, लेकिन नौकरी नहीं है. सैना में सिर्फ मनरेगा के तहत रोजगार हैं जबकि नीति में भेड़ पालने और खेती करने का काम होता है. बलूनी गांव तक वाहन के लिए जो रोड है अक्सर भूस्खलन से बंद हो जाती है. सैना गांव से वाहनों के आने-जाने का रोड 1 किमी दूर है.