निर्मोही अखाड़ा की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सुशील जैन ने कहा था कि हम देवस्थान का प्रबंधन करते हैं और पूजा का अधिकार चाहते हैं और जन्मस्थान का पजेशन न तो देवता के नेक्स्ट फ्रेंड को दिया जा सकता है न ही पुजारी को.
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नई दिल्ली: अयोध्या मामले लेकर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में 13वें दिन की सुनवाई आज होगी. सोमवार को 12वें दिन की सुनवाई में निर्मोही अखाड़ा की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सुशील जैन ने कहा था कि हम देवस्थान का प्रबंधन करते हैं और पूजा का अधिकार चाहते हैं और जन्मस्थान का पजेशन न तो देवता के नेक्स्ट फ्रेंड को दिया जा सकता है न ही पुजारी को. यह केवल जन्मस्थान के कर्ता-धर्ता को दिया जा सकता है और निर्मोही अखाड़ा जन्मस्थान का देखरेख करता है. कोर्ट ने कहा था कि आप दो मुद्दों पर बहस कीजिए पहला पूजा कैसे होगी यानी उसका नेचर क्या होगा और दूसरा कि आप बाहर या भीतर कहां पूजा करना चाहते हैं? इससे पहले पिछले शुक्रवार को 11वें दिन की सुनवाई में पूरे दिन निर्मोही अखाड़ा के वकील सुशील जैन ने बहस की थी. उन्होंने निर्मोही को जन्मस्थान का शेबेट (देवता की सेवा करने वाला) बताया था.उन्होंने कहा था कि रामलला के नाम पर किसी और को याचिका करने का हक नहीं है और जगह हमारे हवाले की जाए.
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इससे पहले गुरुवार को याचिकाकर्ता गोपाल सिंह विशारद की ओर से पेश वरिष्ठ वकील रंजीत कुमार ने कहा था कि मैं श्री राम उपासक हूं और मुझे जन्मस्थान पर उपासना का अधिकार है. यह अधिकार मुझसे छीना नहीं जा सकता. उन्होंने 80 साल के अब्दुल गनी की गवाही का हवाला देते हुए कहा था कि बाबरी मस्जिद राम जन्मस्थान पर बनी है. ब्रिटिश राज में मस्जिद में सिर्फ जुमे की नमाज़ होती थी, हिन्दू भी वहां पर पूजा करने आते थे. रंजीत कुमार ने कहा था कि मस्जिद गिरने के बाद मुस्लिमों ने नमाज़ पढ़ना बंद कर दिया, लेकिन हिंदुओं ने जन्मस्थान पर पूजा जारी रखी.
अयोध्या केस: 'मैं श्रीराम उपासक हूं और मुझे जन्मस्थान पर उपासना का अधिकार है'
रामलला विराजमान
इससे पहले बुधवार को रामलला विराजमान के वकील सीएस वैद्यनाथन ने अपनी बहस पूरी कर ली थी. उन्होंने कहा था कि विवादित भूमि पर मंदिर रहा हो या न हो, मूर्ति हो या न हो, लोगों की आस्था होना काफी है, यह साबित करने के लिए कि वही रामजन्म स्थान है. वैद्यनाथन ने कहा था कि जब संपत्ति भगवान में निहित होती है तो कोई भी उस संपत्ति को ले नहीं सकता और उस संपत्ति से ईश्वर का हक नहीं छीना जा सकता. ऐसी संपत्ति पर एडवर्स पजेशन का कानून लागू नहीं होगा.
रामलला के वकील ने कहा था कि मंदिर में विराजमान रामलला कानूनी तौर पर नाबालिग का दर्जा रखते हैं. नाबालिग की संपत्ति किसी को देने या बंटवारा करने का फैसला नहीं हो सकता. हज़ारों साल से लोग जन्मस्थान की पूजा कर रहे हैं. इस आस्था को सुप्रीम कोर्ट को मान्यता देना चाहिए. उन्होंने कहा था कि 1949 में विवादित इमारत में रामलला की मूर्ति पाए जाने के बाद 12 साल तक दूसरा पक्ष निष्क्रिय बैठा रहा. उन्हें कानूनन दावा करने का हक नहीं है. कोर्ट जन्मस्थान को लेकर हज़ारों साल से लगातार चली आ रही हिंदू आस्था को महत्व दे.