मुहर्रम: ताजियों को दफन करने की दी जाए इजाजत, असर फाउंडेशन ने हाईकोर्ट में दाखिल की अर्जी
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मुहर्रम: ताजियों को दफन करने की दी जाए इजाजत, असर फाउंडेशन ने हाईकोर्ट में दाखिल की अर्जी

अर्जी में बताया गया है कि मुहर्रम कोई ऐसा पर्व नहीं है, जिसमे खुशियां मनाई जाती हैं. यह गम को प्रकट करने का मौका होता है इसलिए अकीदतमंद खुद ही अनुशासन के दायरे में रहते हैं. 

इलाहाबाद हाईकोर्ट (फाइल फोटो).

मो. गुफरान/प्रयागराज: मुहर्रम के मौके पर ताजिये दफन किये जाने की अनुमति की मांग को लेकर असर फाउंडेशन ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में पीआईएल दायर की है. जिस पर गुरूवार या शुक्रवार को सुनवाई हो सकती है. असर फाउंडेशन के चेयरमैन शौकत भारती की ओर से दाखिल याचिका में कोविड प्रोटोकाल का पालन करते हुए ताजियों को 20 लोगों की मौजूदगी में दफनाने की अनुमति दिए जाने की मांग की गई है.

असर फाउंडेशन के मुताबिक, सरकार ने कोविड की गाइडलाइन में किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर 20 लोगों की मौजूदगी में अंतिम संस्कार की छूट दे रखी है. ताजिये भी प्रतीक होते हैं और इन्हें भी दफन किया जाता है, इसलिए समूचे उत्तर प्रदेश में चुनिंदा लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए घरों से बाहर निकलने और बीस लोगों की मौजूदगी में ताजियों को दफनाने की अनुमति दी जानी चाहिए.

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अर्जी में बताया गया है कि मुहर्रम कोई ऐसा पर्व नहीं है, जिसमे खुशियां मनाई जाती हैं. यह गम को प्रकट करने का मौका होता है इसलिए अकीदतमंद खुद ही अनुशासन के दायरे में रहते हैं. ताजिये ईराक के कर्बला के वाकये के प्रतीक के तौर पर होते हैं. ताजिये के बहाने हजरत इमाम हुसैन समेत कर्बला के बहत्तर शहीदों की कुर्बानियों को याद किया जाता है.

बता दें कि कोरोना खतरे को देखते हुए घरों में ताजिया रखने और सोशल डिस्टेंसिंग के साथ बाहरी लोगों की मौजूदगी के बिना मजलिस व मातम करने और दूसरी अन्य रस्में अदा करने की अनुमति है, लेकिन ताजियों को लेकर बाहर निकलने और उन्हें कर्बला तक ले जाकर दफन करने की अनुमति नहीं है.

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