अयोध्या केसः मध्यस्थता पैनल ने सुप्रीम कोर्ट को लिखी चिट्ठी, मामला सुलझाने की पेशकश की जानकारी दी
राजीव धवन ने कहा मूर्ति की पूजा हमेशा बाहर के चबूतरे पर होती थी. 1949 में मंदिर के अंदर शिफ्ट किया जिसके बाद यह पूरी ज़मीन पर कब्ज़े की बात करने लगे.
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नई दिल्लीः अयोध्या मामले (Ayodhya Case) में मध्यस्थता पैनल के प्रमुख जस्टिस कलीफुल्ला ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि मध्यस्थता के लिए सुन्नी वक्फ़ बोर्ड और निर्वाणी अखाड़ा ने उन्हें चिट्ठी लिखी है.उन्होंने कहा कि दोनों पक्ष मध्यस्थता को दोबारा शुरू करना चाहते है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट इसपर निर्णय लें. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के आदेश से ही मध्यस्थता पैनल का गठन और बाद में मध्यस्थता बंद हुआ था.
उधर मुस्लिम पक्ष के राजीव धवन ने आज सुनवाई को दौरान कहा कि जब देवता अपने-आपको प्रकट करते है तो किसी विशिष्ट रूप में प्रकट होते है और उसकी पवित्रता होती है. जस्टिस बोबडे ने पूछा कि क्या आप कह रहे हैं कि एक देवता का एक रूप होना चाहिए?
राजीव धवन ने कहा कि हां, देवता का एक रूप होना चाहिए जिसको भी देवत माना जाए, भगवान का कोई रूप नहीं है, लेकिन एक देवता का एक रूप होना चाहिए. धवन ने कहा कि पहचान के उद्देश्य से एक सकारात्मक कार्य होना चाहिए, वह सकारात्मक अभिव्यक्ति के लिए दावा नहीं कर रहे हैं वह विश्वास के आधार पर दावा कर रहे हैं. राजीव धवन ने कहा मूर्ति की पूजा हमेशा बाहर के चबूतरे पर होती थी. 1949 में मंदिर के अंदर शिफ्ट किया जिसके बाद यह पूरी ज़मीन पर कब्ज़े की बात करने लगे.
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राजीव धवन ने कहा कि आप मंदिर या मस्जिद की भूमि का अधिग्रहण कर सकते हैं, लेकिन आप एक देवता भूमि नहीं प्राप्त कर सकते हैं.धवन ने आरोप लगाया कि रामजन्मभूमि न्यास पूरी ज़मीन पर कब्ज़ा करना चाह रहा है और एक नया मन्दिर बनने की बात कर रहा है
राजीव धवन ने कहा कि 1949 तक विवादित ढांचे के बाहरी आंगन में पूजा की जाती थी, मूर्ति अंदरूनी हिस्से पर किसी भी तरह का दावा नही किया गया था, बाहरी हिस्सा VHP द्वारा ज़मर्दस्ती कब्ज़े में लिया गया था.धवन ने कहा कि अगर 1885 से भी प्रारंभिक अधिकार मांग को माना को देंखे तो उन्होंने बाहरी आंगन की मांग की है क्यों मठरी बाहरी आंगन में रखी हुई थे.
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