Ayodhya 84 Kosi Parikrama: भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या से 84 कोसी परिक्रमा की पावन यात्रा का शुभारंभ हो चुका है. यह यात्रा कुल 21 दिनों तक चलती है. आइए आपको बताते है 84 कोसी परिक्रमा का मान्यताओं के बारे में...
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Ayodhya Latest News: अयोध्या की प्राचीन और परंपरागत 84 कोसी परिक्रमा अपने पूर्ण शबाब पर है. 12 अप्रैल को अयोध्या से प्रारंभ हुई यह धार्मिक यात्रा अब अपने सातवें दिन में प्रवेश कर चुकी है. कुल 22 दिनों तक चलने वाली इस परिक्रमा का समापन 4 मई को अयोध्या स्थित पवित्र सीता कुंड पर होगा.
पांच जिलों से गुजरती है ये यात्रा
84 कोसी परिक्रमा की शुरुआत बस्ती जिले के मखभूमि मखौड़ा धाम से हुई थी. 13 अप्रैल से यात्रा विधिवत आरंभ हुई जो कुल 240 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए पांच जिलों अयोध्या, बस्ती, गोंडा, अंबेडकरनगर और बाराबंकी से गुजरती है. परिक्रमा के दौरान कुल 21 स्थानों पर रात्रि विश्राम की व्यवस्था की गई है.
सभी स्थानों पर श्रद्धालुओं, साधु-संतों और परिक्रमावासियों का गर्मजोशी से स्वागत किया जा रहा है. सीताकुंड जैसे धार्मिक स्थलों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ रही है, जिससे क्षेत्र में भक्तिमय माहौल बना हुआ है.
यात्रा को लेकर प्रशासन ने क्या बताया?
कमिश्नर गौरव दयाल और आईजी रेंज अयोध्या प्रवीण कुमार ने जानकारी दी कि परिक्रमा की सभी प्रशासनिक तैयारियां पूरी कर ली गई हैं और यात्रा पूर्ण रूप से सकुशल संपन्न हो रही है. परिक्रमा के दौरान सुरक्षा, चिकित्सा और अन्य आवश्यक सेवाओं की पर्याप्त व्यवस्था सुनिश्चित की गई है.
इस पवित्र यात्रा का आयोजन विश्व हिंदू परिषद की संस्था हनुमान मंडल दल द्वारा किया जा रहा है, जो प्रतिवर्ष इस आध्यात्मिक परंपरा को जीवंत बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती है. 84 कोसी परिक्रमा न केवल एक धार्मिक यात्रा है, बल्कि यह सनातन परंपरा, श्रद्धा और सामाजिक समरसता का भी प्रतीक है. जैसे-जैसे यात्रा अपने अगले पड़ाव की ओर बढ़ रही है, श्रद्धालुओं में उत्साह और भक्ति की भावना और अधिक प्रगाढ़ होती जा रही है.
क्या है 84 कोसी परिक्रमा का महत्व?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह परिक्रमा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है. शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि मन, वचन और कर्म से इस यात्रा को पूर्ण करने वाला व्यक्ति पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो जाता है. मान्यता यह भी है कि त्रेतायुग में भगवान राम जिन मार्गों से वनगमन करते हुए ऋषि-मुनियों के आश्रमों में पहुंचे थे, उन्हीं पथों को मिलाकर यह परिक्रमा निर्धारित की गई है.
श्रद्धालुओं का विश्वास है कि इस यात्रा में शामिल होने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं, कष्ट समाप्त होते हैं और बैकुंठ धाम की प्राप्ति संभव होती है. इसके साथ ही मनोकामनाओं की पूर्ति, सुख-शांति और समृद्धि में भी वृद्धि होती है.
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