बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक जफरयाब जिलानी ने कहा, ''हमने अपने वकील राजीव धवन के साथ चर्चा की है. उनका भी विचार है कि हमें मस्जिद के अवशेष पर दावा करना चाहिए. लिहाजा हम अगले सप्ताह दिल्ली में बैठक कर इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाएंगे.''
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अयोध्या: बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी (बीएमएसी) ने बाबरी मस्जिद के अवशेष पर दावा करने के लिए उच्चतम न्यायालय का जाने का फैसला किया है. मुस्लिम पक्ष राम मंदिर निर्माण शुरू होने से पहले 1992 में गिराई गई बाबरी मस्जिद के अवशेष उस स्थान से हटवाना चाहता है.
बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक जफरयाब जिलानी ने कहा, ''हमने अपने वकील राजीव धवन के साथ चर्चा की है. उनका भी विचार है कि हमें मस्जिद के अवशेष पर दावा करना चाहिए. लिहाजा हम अगले सप्ताह दिल्ली में बैठक कर इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाएंगे.'' जफरयाब जिलानी ने कहा, ''मुझे अयोध्या के लोगों ने आश्वास्त किया है कि वे बाबरी मस्जिद के मलबे को रखने के लिए जमीन की व्यवस्था करेंगे.''
उन्होंने कहा कि शरियत के मुताबिक मस्जिद का मलबा किसी भी दूसरे निर्माण में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता और न ही इसका अनादर किया जा सकता है. जफरयाब जिलानी ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने साल 1992 में बाबरी ढांचे के विध्वंस को असंवैधानिक माना है. मलबे के संबंध में सुप्रीम कोर्ट का कोई स्पष्ट आदेश नहीं है.
इसलिए इसके मलबे और दूसरी निर्माण सामग्री जैसे पत्थर, खंभे आदि को मुस्लिमों को सौंप देना चाहिए. इसके लिए प्रार्थना पत्र देकर सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया जाएगा. आपको बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए गत 4 फरवरी को संसद में 'श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट' के गठन की घोषणा की थी.
उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुरूप मस्जिद के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को 5 एकड़ जमीन भी आवंटित कर दी है. उत्तर प्रदेश सरकार के प्रवक्ता श्रीकांत शर्मा ने गत बुधवार को पत्रकारों को बताया था कि राज्य सरकार ने लखनऊ राजमार्ग पर अयोध्या में सोहावाल तहसील के धन्नीपुर गांव में मस्जिद के लिए जमीन का आवंटन पत्र सुन्नी वक्फ बोर्ड को दे दिया है.
मुस्लिम पक्षकारों ने रामकोट स्थित श्रीरामजन्मभूमि से 25 किमी दूर रौनाही थाने के पीछे दी गई भूमि को मस्जिद के लिए अनुपयुक्त बताया है और आरोप लगाया कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिए गए आदेश के मुताबिक मस्जिद निर्माण के लिए भूमि उपयुक्त जगह पर नहीं दी गई है. वहां अयोध्या के लोग नमाज पढ़ने नहीं जा सकते.